देश की पहली स्वदेसी वैक्सीन का हूमन ट्रायल शुरू

नई दिल्ली। एम्स दिल्ली में सोमवार को देश की पहली स्वदेसी वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो रहा है। एम्स दिल्ली देश के उन 14 इंस्टीट्यूट में से एक है जिसे आईसीएमआर ने पहले और दूसरे चरण के ट्रायल की अनुमति दी है।

पहले चरण में वैक्सीन का ट्रायल 375 वॉलंटियर्स पर होगा। इनमें से 100 वॉलंटियर्स एम्स से शामिल होंगे। ट्रायल में स्वस्थ लोगों को ही शामिल किया जाएगा। इनकी उम्र 18 से 55 साल के बीच होगी। ये ऐसे वॉलंटियर्स होंगे जिन्हें अब तक कोविड-19 का संक्रमण नहीं हुआ।

सबसे पहली मंजूरी दिल्ली-एनसीआर के लोगों को

एम्स की एथिक्स कमेटी ने COVAXIN के पहले ह्यूमन ट्रायल को मंजूरी दे दी है। ट्रायल में शामिल होने के लिए 10 घंटे में 10 हजार से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। अभी केवल दिल्ली-एनसीआर के लोगों के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी दी जाएगी।

ट्रायल में शामिल होने के लिए ऐसे कराएं रजिस्ट्रेशन

एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. संजय राय के मुताबिक, जो लोग वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल में शामिल होना चाहते हैं वो मोबाइल नम्बर 07428847499 पर अपना नाम रजिस्टर्ड करा सकते हैं। या चाहें तो रजिस्ट्रेशन के लिए [email protected] पर मेल भी कर सकते हैं।

जिस शख्स पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल होगा उसका पहले कोविड टेस्ट होगा। ट्रायल स्वस्थ लोगों पर होगा। मेडिकल चेकअप में ब्लड, बीपी, किडनी और लिवर से जु?ी बीमारियां न पाए जाने के बाद ही वैक्सीन की डोज दी जाएगी।

जानवरों पर वैक्सीन का ट्रायल पूरा

जब से भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन के नाम की घोषणा की है, हर तरफ एक ही सवाल है- कोरोना वायरस की यह वैक्सीन कब आयेगी? इस वैक्सीन के निर्माण में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के वैज्ञानिक भी भारत बायोटेक के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

वैक्सीन के ट्रायल को लेकर आईसीएमआर के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ. रमन आर गंगाखेडकर का कहना है कि कोवैक्सिन का जानवरों पर ट्रायल हो चुका है। अब ह्यूमन ट्रायल शुरू होगा।

आम लोगों तक वैक्सीन आने में कितना वक्त लग सकता है?

इस सवाल पर डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि कोविड के पहले तक वैक्सीन के ट्रायल में 7-10 साल तक लगते थे। चूंकि कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है इसलिए इस संक्रमण को कम करने के लिए अलग-अलग तरह से वैक्सीन के ट्रायल हो रहे हैं। भारत में भी बनने में करीब डेढ़ से दो साल का समय लगेगा।

अभी जो भारत की वैक्सीन है, उसका फेज वन का ट्रायल 15 अगस्त तक पूरा हो जाएगा। उसमें पता चल जाएगा कि इस वैक्सीन से एंटीबॉडी बन रहे हैं या नहीं और यह सेफ है या नहीं। उसके बाद दूसरे स्टेज का ट्रायल होगा।

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शायद कंपनी ने सोचा है कि अगर ये वैक्सीन काम करेगी तो इसका प्रोडक्शन शुरू कर देंगे, ताकि पूरे ट्रायल के बाद अगर सफल हुई, तो भारत में इतनी बड़ी आबादी तक जल्द से जल्द पहुंच जाये। अगर यह करागर नहीं हुई तो पैसे का नुकसान भी हो सकता है।

चीन और अमेरिकी वैक्सीन भी भारत के स्तर की हैं

डॉ. गंगाखेडकर ने बताया कि वैक्सीन का ट्रायल अलग-अलग फेज़ में होता है। फेज वन में करीब 40 से 50 लोगों पर ट्रायल किया जाता है। फेज 2 में 200-250 लोगों पर ट्रायल होता है। फेज 3 में बड़ी संख्या में लोग पार्टिसिपेट करते हैं।

लेकिन जो भी परिणाम आते हैं उसके आधार पर ही कैल्कुलेशन करके सैंपल लिया जाता है। उन्होंने बताया कि अभी दो ही वैक्सीन हैं जो फेज टू ट्रायल में हैं। एक ऑक्सफ़ोर्ड में बनी वैक्सीन है जिसका नाम केडॉक्स है। दूसरी चीन की वैक्सीन है जो साइनोवैक कंपनी ने बनाई है। ये दोनों ही भारत बायोटेक द्वारा निर्मित ष्टह्रङ्क्रङ्गढ्ढहृ के स्तर की हैं।