भरे पेट वाले भूखे

ऐसे लोगों को उपमा-उपाधि देने की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए तो भांत-भांत की उपाधियां रूपी-‘चीढ़े सामने आ सकती है। प्रत्येक प्रतिभागी के अपने विचार-हरेक प्रतियोगी की अपनी सोच। आप की प्रतिक्रिया अलग-इनकी-उनकी अलग। हमारे जेहन में जो खदबदाहट हुई उसे हैडिंग बना के टांग दिया। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
हमें नही लगता है ऐसे या वैसे लोगों को कोई उपमा दी जाए या कि किसी उपाधि से विभूषित किया जाए, हां ‘चीढ़ जरूरी पाड़ी जा सकती है। कोई हमारे बीते दिन लौटा दें तो कसम पापड़ वाले की उन्हें चिढ़ा-चिढ़ा कर इतना चितबंगा कर दें कि खुद के बाल नोचने लग जाएं। खुद के हाथ से खुदी के कपड़े ना फड़वा दें तो आप की जूती-पड़ोसी की चांद। कई बार एक कहावत को लेकर मन में कई तरह के सवाल उठक-बैठक लगाते हैं।

एक सवाल उठता है-दूसरा बैठता है-तीसरा दंड पेलने लग जाता है। सवाल इसी कहावत पर कौंधते हों, ऐसा नहीं है। ऐसी भतेरी कहावतें-आडिएं-ओखाणे-दुहे हैं जिन को लेकर कभी दो-कभी तीन चार तो कभी चार-छह धाराएं फूटती हैं। अपने आप सवाल पैदा हो जाते हैं। हम ऐसा करना नही चाहते। आप कोई भी सवाल कर लो, हम यथासंभव सही जवाब देने का प्रयास करेंगे। हमने कभी कोई गलत सवाल खड़े नही किए। छोड़ो ना भाई, अपन को ऐसा करके क्या करना है। किस-किस पे, कैसे-कैसे सवाल करोगे। यहां तो सवालों का सागर पहले से ही हिलोरे मार रिया है। किसे इतनी फुरसत जो खामखां मगजमारी करें। दो जून की रोटी की जुगत से फुरसत मिले तो घर में ही इतने काम पड़े हैं कि लगे रहो। इसके बावजूद कहावतों के विरोधाभासों की ओर तिरछी नजर पड़ ही जाती है। कोई उसे सवाल समझे तो समझे। हमारी तरफ से सवाल भी और जिज्ञासा भी। धार भी और धारा भी।
हम कहते हैं कि ‘क्षमा वीरस्य भूषणम। हम भी इसके कट्टर समर्थक। क्षमा मांगना और क्षमा कर देना छोटी बात नही है। आज-कल लोग अमचूर की तरह अकड़े रहते है। ऐसा लगता है मानों कलप के पानी मे से निकाले गए हों। मुंह में दांत नहीं-पेट में आंत नहीं..चला मांगीलाल हीरो बनने। हमें पता है कि भाईसेणों ने मांगीलाल की जगह मुरारी को बिठाया था तो उस का क्या। मुरारी बैठे-बैठे उकता गया लिहाजा उसे उठाकर मांगीलाल को बिठा दिया। मुरारी की थकान उतर जाएगी तो वापस बिठा देंगे। ज्यादा चूं-चप्पड़ की तो ऐसी की तैसी मुरारी की। देश में सत्ता बदल गई। शासन-प्रशासन बदल गए। कलक्टर-कमिश्नर बदल जाते हैं। ये तो मुरारी है। ढंग से रहेेगा तो मांगीलाल को उठाकर मुरारी को विराजमान कर देंगे। धौंस दिखाई तो मैदान खुल्ला पड़ा है। वहां कोई किसी को क्षमा करने वाला नहीं।
हम मानते है कि क्षमा मांगना और क्षमा कर देना बहुत बड़ी बात है। दोनों बड़प्पन की निशानी है। दोनों महानता कही जाते है। लोग तो गलती-गुनाह करने के बावजूद टांग ऊपर रखने से बाज नही आते। अहम-अहंकार छोड़ कर फलों से लदी डाली की तरह झुकना हर किसी के बूते की बात नहीं। यही बात क्षमा करने वालों पर लागू होती है। वो भी महान जो हंस कर सामने वाले को माफ कर देते हैं। उससे मिलती-जुलती कहावत-‘क्षमा बडऩ को चाहिए.. छोटन को उत्पात के रूप में परोसी जाती है। हमारा सवाल-जिज्ञासा ये कि तो फिर उनके सामने, जैसे को तैसा खड़ा क्यूं किया। इसे देख कर ऐसा लगता है मानो वो क्षमा-माफी को ‘चीढ़ा रहा हो।
अब तो खैर ‘चिढऩा-चिढ़ाना लुप्त सा हो गया वरना बचपने में हम अड़ोसियों-पड़ोसियों को खूब चिढ़ाया करते थे। किसी की ‘चीढ़ आंबो, किसी की भिंडी। कोई ‘थैलीÓ के संबोधन से चिढ़ता, तो कोई ‘टुणिए के संबोधन से। देखते कि फलाण चंद जी आ रहे हैं तो हम बच्चा लोग ‘आंबो के सुर बिखेर कर भाग जाते। आगे हम-पीछे वो। बात घर तक पहुंचती तो ठुकाई-सुड़ाई भी होती मगर शरारतें नही छूंटे राम। उन्हें देख कर कोई बचपन की बातें दोहराने को कहे तो भुख्या, भिखारी या मंगता ही निकलेगा। यदि कोई भूखा रोटी-बाटी के लिए रिरियाए या जिद करें तो समझ में आता है। भरे पेट वाले अगर मृत्यु भोज की मांग करे तो उनके लिए यह परिभाषाएं भी कम है।
हवा दौसा के महुआ क्षेत्र से आई। वहां साथां इलाके के पंच-पटेलों ने एक व्यक्ति की इस वास्ते सुड़ाई कर दी कि उसने अपने पिता की मौत के बाद भोज के नाम पर कुछ लोगों को बुला कर जिमा दिया, जबकि वो लोग आठ गांवों के लोगों को भोज देने की मांग कर रहे थे। हम इक्कीसवीं सदी में विचरण कर रहे हैं और ये लोग मृत्युभोज मे अटके हुए हैं। आठ गांव के लोगों को न्यौतने का मतलब कम से कम चार-पांच हजार लोगों का खाना। एक तो इतनी महंगाई। दूसरा कोरोनाकाल। तीसरा घर के सदस्य का जाना। चौथा मृत्यु भोज गैर कानूनी। इसके बावजूद कढी-पुडी और नुक्ति-पकोडे के लिए किसी गमजदा मजबूर परिवार को कौमबदर करने की धमकी देना उचित नहीं। हांलांकि पीडि़त परिवार ने मामला पुलिस में दर्ज करवा दिया। अब वहा कोई जीमण होणा है, ना अमल गळणा है। हां बच्चा पार्टी उन्हें भुख्या-मंगता या और कुछ कह के चिढ़ाए तो गलत
नही है।