
आए दिन बहुत से लोग कब्ज की समस्या से परेशान रहते हैं। जाहिर ऐसी कुछ भी समस्या होने पर आप तुरंत लैक्सेटिव ले लेते हैं। डॉक्टर आपको कब्ज से राहत के लिए सिरप, कैप्सूल, पाउडर और सपोसिटरी आदि के रूप में लैक्सेटिव दे सकते हैं। बेशक इनके सेवन से आपको तत्काल राहत मिल जाती है लेकिन नियमित रूप से इनका सेवन करना केवल अस्वस्थ ही नहीं है बल्कि आपको इनकी लत भी लग सकती है। वास्तव में कुछ लोग इन पर इतना निर्भर हो जाते हैं कि उन्हें हल्के कब्ज के लिए भी इन्हें लेना पड़ता है। बहुत से लोग खाने के बाद हल्का महसूस करने के लिए भी लैक्सेटिव लेते हैं। आपको बता दें कि इस पर निरभर रहने से आपको कई नुकसान हो सकते हैं। चलिए जानते हैं अधिक मात्रा में लैक्सेटिव के नुकसान हो सकते हैं।
लैक्सेटिव्स के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल के साइड इफेक्ट्स
आंतों को नुकसान

लैक्सेटिव्स के जरूरत से ज्यादा और लंबे समय तक इस्तेमाल से आंतों को नुकसान पहुंच सकता है। स्टिमुलेंट लैक्सेटिव्स जैसे – सेन्ना या बिसाकोडिल, बाउल मूवमेंट को बढ़ाने के लिए आंतों की परत पर इस तरह रिएक्शन करते हैं कि यहां थोड़ा दर्द या बेचैनी पैदा हो, लेकिन ज्यादा समय तक ऐसा होने पर सूजन या अल्सर की परेशानी पैदा हो सकती है या आंतों की बनावट को नुकसान भी पहुंच सकता है।
डायरिया
लैक्सेटिव्स, खासकर ऑस्मोटिक और स्टिमुलेंट लैक्सेटिव्स के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से डायरिया हो सकता है। इस बीमारी में लूज मोशन होते हैं और बाउल मूवमेंट बढ़ जाता है। लंबे समय तक डायरिया बने रहने से डिहाइड्रेशन हो सकता है, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बिगड़ सकता है और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
पेट में ऐंठन और बेचैनी

लैक्सेटिव्स के ज्यादा इस्तेमाल से पेट में ऐंठन, पेट फूलने और बेचैनी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसका कारण आमतौर पर आंतों की मांसपेशियों में ज्यादा स्टिमुलेशन होता है, जिसका नतीजा ऐंठन और बहुत ज्यादा संकुचन के रूप में सामने आता है।
रेक्टल ब्लीडिंग
लैक्सेटिव्स के बहुत ज्यादा इस्तेमाल के कारण बाउल मूवमेंट के दौरान पडऩे वाले खिंचाव से रेक्टल ब्लीडिंग की परेशानी हो सकती है। इसकी वजह यह है कि खिंचाव के कारण एनस या रेक्टम के नाजुक टिश्यूज फट जाते हैं और इनसे खून निकलने लगता है।
बाउल मसल्स का कमजोर होना
लैक्सेटिव्स का लंबे समय तक प्रयोग करने से बाउल की नैचुरल मसल टोन कमजोर हो जाती है, जिससे इसकी स्टूल को आगे ले जाने की क्षमता कम हो जाती है। इस स्थिति को लेजी बाउल सिंड्रोम या कैथरेटिक कोलोन कहा जाता है। इससे लगातार कब्ज बना रहता है और लैक्सेटिव्स पर निर्भरता और ज्यादा बढ़ जाती है।
दवाइयों का सही तरीके से शरीर में नहीं पहुंचना
लैक्सेटिव्स, पाचन-तंत्र के ट्रांजिट टाइम को कम करके दवाइयों के शरीर में पहुंचने की प्रक्रिया में रुकावट पैदा कर सकते हैं। इससे कुछ दवाइयों के असर में कमी आ सकती है। यह ध्यान देना जरूरी है कि लैक्सेटिव्स का प्रयोग कभी-कभार कब्ज होने पर कुछ समय के लिए ही करना चाहिए। अगर लगातार यह समस्या बनी हुई है या बाउल मूवमेंट से जुड़ी परेशानी है, तो हेल्थकेयर प्रोफेशनल से सलाह लेनी चाहिए। वे समस्या का मूल कारण जानने में मदद कर सकते हैं और इसके बाद उचित सलाह देकर सही इलाज भी शुरू कर देते हैं।
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