मोबाइल की लत से बच्चों को बचाना है तो यह तरीका अपनाएं

मोबाइल की लत
मोबाइल की लत

डिजिटल एरा एक ऐसा दौर है जिसके फायदे और नुकसान दोनों को ही नकारा नहीं जा सकता। यह आजकल के माता पिता के लिए एक दुविधाजनक स्थिति है, जब डिजिटल होना सुखद भी है, लेकिन बच्चों के साथ यह मुश्किल भी हो जाता है। आज मोबाइल एक ऐसा शक्तिशाली औजार है जिसके बिना जीवन मुश्किल हो गया है। यह एक तरह का राशन है, जिसे हर महीने के बजट में रिचार्ज कराना जरूरी हो गया है। मोबाइल के बिना किसी का गुजारा नहीं है, फिर चाहे बच्चे ही क्यों न हों। जी हां, आजकल छोटे बच्चों को भी मोबाइल की लत लग जाती है, जो पैरेंटिंग कि लिए एक चिंताजनक विषय बन चुका है।

आइए जानते हैं कि बच्चों को कैसे संभालें इस डिजिटल एरा में

लत न लगाएं

किसी भी चीज की लत लगाना पूरी तरह से माता-पिता के हाथों में होता है। बच्चे को बिजी रखने के लिए या फिर उन्हें खाना खिलाने के लिए अक्सर मां-बाप उन्हें मोबाइल पकड़ा देते हैं। जो एक खतरनाक लत की शुरुआत होती है। नन्हें हाथों और दिमाग में मोबाइल ऐसा बस जाता है, जो आगे चल कर किसी कैफीन के नशे से कम नहीं होता। हम एक से तीन साल की उम्र में ही सही कदम उठा लें और बच्चे को जितना हो सके इस नशे से दूर रखें तो इस लत से बचा जा सकता है।

पैरेंटल लॉक लगाएं

कम उम्र में ही बच्चे मोबाइल चलाना सीख लेते हैं, भले ही उन्हें एबीसी न आए, लेकिन शब्दों या पैटर्न के आकार उनके दिमाग में छप जाते हैं और वे खुद से ही सबकुछ सीख लेते हैं। इसलिए जरूरी है कि मोबाइल में फिंगरप्रिंट लॉक लगाएं और हर एप में पैरेंटल लॉक लगाएं जिसे बच्चा न खोल पाए।

बच्चों को जागरूक करने वाले वीडियो दिखाएं

बच्चों को जागरूक करने वाले वीडियो दिखाएं
बच्चों को जागरूक करने वाले वीडियो दिखाएं

बच्चे जब मोबाइल में वीडियो देख रहे हों, तो आप खुद रिमोट ले कर उसमें बच्चों के लिए मोबाइल के दुष्प्रभाव बताते हुए कार्टून वीडियो लगाएं जिसे देख कर बच्चे जागरूक हों और बिना किसी दबाव के खुद ही इनसे दूरी बनाने के बारे में सोचें।

डांटे या मारे नहीं

डांटे या मारे नहीं
डांटे या मारे नहीं

बच्चे जब मोबाइल या टीवी देख रहे हों तो तुरंत झटके से इनसे मोबाइल न छीनें या टीवी स्विच ऑफ न करें। ऐसे में वे आक्रामक हो सकते हैं या फिर मन ही मन निराश होंगे जो आगे चल कर उनकी पर्सनेलिटी पर असर डाल सकता है। ऐसे में उनके पास जाएं और प्यार से आंख में आंख डाल कर बोलें कि अगले पांच या दस मिनट के बाद मोबाइल रख देना या टीवी बंद कर देना। ऐसे उस दस मिनट में वे खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लेते हैं कि अब स्क्रीन टाइम बंद होने वाला है और फिर शांति से दस मिनट के बाद इसे बंद करने के लिए तैयार हो जाते हैं।

खुद को भी ढालें

अपनी पीढ़ी और अपने बचपन से अपने बच्चों की तुलना न करें। आपका बचपन आपके माता पिता के बचपन से बहुत अलग रहा है, वैसे ही आपके बच्चों का बचपन आपसे काफी अलग रहेगा। समय के साथ बदलें और बदलावों को स्वीकार करें। आज के युग में बिना मोबाइल या टीवी के जीवन अधूरा है। कई मायनों में डिजिटल होना अच्छी बात है जैसे पेमेंट से लेकर फौरन किसी को फोन लगाना हो या किसी भी चीज के बारे में तुरंत जानकारी लेनी हो। इसके फायदे बच्चों को समझाएं और डिजिटल होने के फायदों को इस्तेमाल करें। बच्चों को अच्छी चीजें दिखाएं, योग या डांस जैसा कुछ नया सिखाएं, समय सीमा निर्धारित करें और सुकून से हैप्पी पैरेंटिंग करें।

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