दुःख और अंधकार है अज्ञान : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाश्रमण

देउलगांव मही की कन्याओं व ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति द्वारा की अभ्यर्थना

प्रात व सांयकाल सहित लगभग सत्रह कि.मी. का महातपस्वी ने किया विहार

ठाकरखेड भागिले (बुलढाणा)। जन-जन का कल्याण करने के लिए महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को प्रातः देउलगांव राजा के बाहरी भाग में स्थित समर्थ एग्रीकल्चर कॉलेज परिसर से मंगल प्रस्थान किया। महाराष्ट्र में आरसीसी सड़कों का मानो जाल-सा बिछा हुआ है। राजमार्ग व अन्य राजकीय मार्ग भी आरसीसी पद्धति से ही निर्मित हैं। ये मार्ग सूर्य के ताप से और अधिक गर्म हो रहे हैं।

आज विहार के दौरान सूर्य सम्मुखीन था। इस कारण सूर्य का ताप और भी अधिक प्रभावित कर रहा था, किन्तु मानव कल्याण के दृढ़संकल्पी आचार्यश्री निरंतर बढ़ते जा रहे थे। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री ठाकरखेड़ भागिले गांव में स्थित जिला पंचायत उच्च प्राथमिकशाला में पधारे। प्राथमिकशाला परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है।

आचार्यश्री महाश्रमण
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सम्यक् ज्ञान का अति महत्त्व है। जीवन का एक भाग ज्ञान व दूसरा भाग चारित्र, आचरण व संस्कार। ज्ञान के अभाव में भी आदमी गलतियां कर सकता है। अज्ञान एक कारण है गलतियों के होने का। अज्ञान दुःख और अंधकार भी है। अज्ञान के कारण आदमी अपने हित और अहित का बोध नहीं कर पाता है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में सम्यक् ज्ञान के विकास का प्रयास करना चाहिए। तत्त्वज्ञान की बातें हम जान लेते हैं तो कुछ रास्ता भी प्राप्त हो सकता है। ज्ञान जब अच्छा हो जाता है तो आदमी चारित्र की दिशा में गति कर सकता है। इसलिए आदमी को ज्ञान के अर्जन का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने एक कथानक के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा ज्ञान चक्षु के समान होता है। जिस प्रकार आदमी के स्वयं का नेत्र नहीं होने से जीवन अंधकारमय हो जाता है। उसी प्रकार ज्ञान भी स्वयं का हो तो जीवन में प्रकाश रह सकता है। आदमी का खुद का ज्ञान ही काम आता है। ज्ञान के बाद चारित्र अच्छा हो तो जीवन सफल हो सकता है। आचार्यश्री ने मुनि मृदुकुमारजी को ज्ञान का विकास करने की प्रेरणा प्रदान की।

शिक्षण संस्थान ज्ञान आदान-प्रदान के अच्छे माध्यम हैं। शिक्षा के साथ अच्छे चारित्र व संस्कार आदि प्रदान करने का प्रयास हो। जिला पंचायत प्राथमिकशाला के शिक्षक श्री सुभाष बायार ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। देउलगांव मही की तेरापंथ कन्या मण्डल तथा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन से पूर्व ही आज सांयकाल ही विहार कर देउलगांव मही में पधारने की घोषणा की तो देउलगांव मही के श्रद्धालु हर्षविभोर हो उठे। सांय लगभग साढे पांच बजे आचार्यश्री ने ठाकरखेड भागिल से मंगल प्रस्थान किया और लगभग चार किलोमीटर का विहार कर देउलगांव मही में स्थित डी.आर.बी. इण्टरनेशनल स्कूल में पधारे। निर्धारित समय से पूर्व ही अपने आराध्य को अपने गांव में पाकर देउरगांव मही की जनता अभिभूत नजर आ रही थी।

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