सुरक्षा, संसाधन और संस्कृति को खतरा है अवैध प्रवासी – मुरारी गुप्ता

मुरारी गुप्ता
मुरारी गुप्ता

पहलगाम हमले के बाद एक बार फिर से अवैध प्रवासी चर्चा में है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए इनके खिलाफ विशेष अभियान चलाया जा रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सभी राज्य सरकारों को विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने के निर्देश दिया था। इसके बाद गुजरात और राजस्थान सहित सभी राज्यों में अवैध प्रवासियों को खदेड़ने का काम शुरू किया गया। ये अवैध बांग्लादेशी नागरिक देश की सुरक्षा के लिए कितने खतरनाक है इस बात का अंदाजा गुजरात के गृहराज्य मंत्री हर्ष संघवी के बयान से चलता है। उन्होंने बताया कि अवैध बांग्लादेशी नागरिकों में कई ड्रग्स और मानव तस्करी में शामिल थे। गिरफ्तार किए गए चार बांग्लादेशी नागरिकों में दो अलकायदा के स्लीपर सेल के तौर पर काम करते थे। राजस्थान के कई शहरों और कस्बों तक से अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहुंच के समाचार आने लगे हैं।

अवैध बांग्लादेशी नागरिकों का प्रत्यार्पण अभियान पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़ी सुरक्षा चिंताओं का ही परिणाम है। वर्ष 2010 में मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान द्वारा अजीत कुमार डोवाल की अध्यक्षता में आयोजित एक सत्र “भारत में अवैध बांग्लादेशीः आंतरिक सुरक्षा पर असर” में भारत में अवैध प्रवास और उसके प्रभाव पर विस्तार से चर्चा हुईं। उस सत्र में यह बात निकलकर आई थी कि भारत में एक से दो करोड़ के बीच अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं। यह भारत के संसाधनों पर बोझ से ज्यादा देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। वर्ष 2004 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने संसद में बताया था कि देश में लगभग एक करोड़ बीस लाख अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं, जिसमें से अकेले पश्चिम बंगाल में 57 लाख हैं। हालांकि यह आंकड़ा बाद में विवादित हो गया था। बहुत सी रिपोर्टों के अनुसार यह संख्या दो करोड़ तक हो सकती है। अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के साथ-साथ बर्मा में हुए आंतरिक संघर्ष के बाद बड़ी संख्या में रोहिंग्या भारत में घुसकर कानून व्यवस्था के लिए चुनौति बन रहे हैं। देश के कई हिस्सों में रोहिंग्याओं और स्थानीय नागरिकों के बीच झड़पों की खबरों आती रहती हैं। स्थानीय प्रशासन के लिए भी अवैध रोहिंग्या मुसीबत बन गए हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार भारत में लगभग 75 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से रह रहे हैं। लेकिन यह संख्या पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। ये लोग मुख्य रूप से दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद, नूंह और अन्य शहरों में बसे हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली में कानून व्यवस्था में रोहिंग्याओं की भूमिका संदिग्ध रही है। दिल्ली की पिछली सरकार का रोहिंग्याओं के प्रति खास तरह का स्नेह था, जिसकी भाजपा सहित कई पार्टियां आलोचना करती रही हैं।

जरा हम नजर डालें भारत के पूर्वोत्तर में मौजूद पड़ौसी छोटे से खूबसूरत देश भूटान पर। यह दुनिया के उन आठ देशों में शामिल हैं, जहां की नागरिकता प्राप्त करना बहुत कठिन है। इसके बाद चीन, कतर, स्वीट्जरलैंड, वेटिकन सिटी और जापान का नंबर आता है। इन देशों की नागरिकता प्राप्त करने के लिए किसी भी व्यक्ति को कई मापदंडों से गुजरना होता है। हाल में अमरीका में ट्रंप सरकार ने किस तरह अवैध प्रवासियों को अपमानजनक हालात में उनके देशों में भेजा, यह भी दुनिया ने देखा। हम भले ही ट्रंप के इस व्यवहार की आलोचना करें, लेकिन कोई भी राष्ट्र क्यों अपने नागरिकों की कीमत पर अवैध प्रवासियों को बोझ उठाएं। दुर्भाग्य से भारत में व्यवस्था की “कुछ अव्यवस्थाओं” से गुजरकर अवैध प्रवासी भारत की नागरिकता को छीन रहे हैं। यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है, जिस पर केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर बिना किसी मतभेद के कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। अवैध प्रवासी सिर्फ संसाधन ही नहीं चुराते, बल्कि वे स्थानीय संस्कृति को दूषित भी करते हैं।

राजस्थान की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या अवैध बांग्लादेशी स्थानीय एजेंटों के जरिए महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार करने में कामयाब हुए हैं। पिछले साल जयपुर में पुलिस ने भांकरोटा क्षेत्र में बारह अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा था। इनके पास वह सब मौजूद था, जो किसी भी भारतीय नागरिक के पास होना चाहिए। पेन कार्ड से लेकर आयुष्मान भारत स्वास्थ्य कार्ड, बैंक में खाता, आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड तक उनकी पहुंच आसान हो गई है। दुर्भाग्य से व्यवस्था में और समाज में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं जो चांदी के चंद सिक्कों के लालच में राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र की अस्मिता से भी समझौता करने को तैयार रहते हैं। सरकार और प्रशासन को व्यवस्था में दीमक की तरह घुन लगा रहे ऐसे लोगों की पहचान कर पहले उन पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।

हालांकि भारत और बांग्लादेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा भी भौगोलिक दृष्टि से अपने आप में एक पेचीदा तत्व है। भारत और बांग्लादेश के बीच कुल 4096 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जिसमें से 3196.7 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाढ़ का काम पूरा हो चुका है। भारत और बांग्लादेश सीमा पर लगभग 54 छोटी बड़ी नदिया भारत और बांग्लादेश के बीच बहती हैं, जिन पर बाढ़ का काम असंभव है। ये ही वो जगह हैं जहां से बांग्लादेश से अवैध प्रवास भारत में होता है।

भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अवैध घुसपैठ को लेकर गंभीर है और लगातार इसकी निगरानी की जा रही है। इसके लिए डिप्लोमैटिक प्रयास भी किये जा रहे हैं। भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अनेक राष्ट्रीय और सामाजिक संगठन समय समय पर अवैध प्रवासियों के मुद्दे को गंभीरता से उठाते रहे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने वर्ष 2014 में कहा था कि अवैध प्रवासियों के कारण जनसंख्या असंतुलन हो रहा है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। देश में अनेक ऐसे हिस्से पनप चुके हैं जिन्हें दबी जुबान में मिनी बांग्लादेश कहा जाता है। इसके अलावा संघ ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को पूरे देश में लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि अवैध प्रवासियों की पहचान की जा सके और उन्हें देश से बाहर निकाला जा सके। उच्चतम न्यायालय ने भी हाल में फैसला सुनाया कि भारत में रहने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है और रोहिंग्या मुसलमानों को यह अधिकार नहीं है। इससे रोहिंग्या समुदाय के निर्वासन का रास्ता साफ हुआ है। नागरिकता कानून 1955 में सरकार को देश के प्रत्येक नागरिक की पहचान के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने की बात कही गई थी। सरकार को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के माध्यम भारतीय नागरिकों की पहचान सुनिश्चित करनी चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि अवैध प्रवासियों की समस्या से निपटने के लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता है। इसमें सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, अवैध प्रवासियों की पहचान, पंजीकरण और उनके मूल देशों के साथ प्रत्यावर्तन समझौते शामिल हैं।

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