
क्या आपने कभी सोचा है कि भारत जैसा देश, जहां साल के ज्यादातर समय चिलचिलाती धूप खिली रहती है, वहां भी लोग विटामिन-डी की कमी से क्यों जूझ रहे हैं? जी हां, यह पढक़र आपको हैरानी जरूर हो सकती है, लेकिन असल में यही कड़वी सच्चाई है। आपको जानकर और भी हैरानी होगी कि इसके पीछे कुछ ऐसी वजहें हैं जिन पर शायद ही आपने पहले ध्यान दिया हो। आइए जानते हैं आखिर क्या हैं भारतीयों में विटामिन-डी की कमी के कारण।
इनडोर रहने की आदत

आजकर का लाइफस्टाइल पहले से काफी बदल चुका है। जी हां, हम में से ज्यादातर लोग अपना दिन ऑफिस में, घर के अंदर या एयर कंडीशनर कमरों में बिताते हैं। इसके अलावा, बच्चों का भी बाहर खेलने से ज्यादा समय इंडोर गेम्स या स्क्रीन के सामने बीतता है। सूरज की रोशनी में न निकलने के कारण शरीर को पर्याप्त विटामिन-डी बनाने का मौका ही नहीं मिल पाता।
प्रदूषण की मोटी परत
बड़े शहरों में बढ़ता प्रदूषण भी एक बड़ी वजह है। हवा में मौजूद धुंध और कण सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों को हम तक पहुंचने से रोकते हैं। ऐसे में, धूप में खड़े होने पर भी शरीर को उतनी मात्रा में विटामिन-डी नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए।
गलत समय पर धूप लेना
कई लोग सोचते हैं कि दिन में किसी भी समय धूप लेने से विटामिन-डी मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है। विटामिन-डी के लिए सबसे अच्छी धूप सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच की मानी जाती है, जब सूरज की ङ्क-क्च किरणें सबसे तेज होती हैं, लेकिन इसी समय पर हम में से ज्यादातर लोग अपने कामों में बिजी होते हैं या धूप से बचने की कोशिश करते हैं। शाम की धूप तो त्वचा को रंगत दे सकती है, लेकिन विटामिन-डी के लिए उतनी असरदार नहीं होती।
स्किन टोन भी है वजह
डार्क कॉम्प्लेक्शन वाले लोगों को फेयर स्किन टोन वालों की तुलना में विटामिन-डी बनाने के लिए ज्यादा देर धूप में रहना पड़ता है। इसके अलावा, धूप में बिल्कुल न निकलना या शरीर को पूरी तरह ढक कर रखना विटामिन-डी की कमी का एक बड़ा कारण हो सकता है।
खान-पान में कमी
विटामिन-डी सिर्फ धूप से ही नहीं मिलता, बल्कि कुछ फूड आइटम्स में भी मौजूद होता है, जैसे फैटी फिश (सैल्मन, मैकेरल), अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड मिल्क और अनाज, लेकिन भारतीयों के खान-पान में इन चीजों की अक्सर कमी देखी जाती है, जिससे विटामिन-डी की डेफिशियेंसी और भी बढ़ जाती है।
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