जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ‘चिपको आंदोलन – जन इतिहास’ की गूँज

जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2021 ने शेखर पाठक की नई किताब ‘चिपको ए पीपल’स हिस्ट्री’ पर एक सत्र का आयोजन किया| ये किताब उत्तराखंड के लोगों द्वारा सदी के सबसे शांतिपूर्ण आंदोलन के सफ़र को दर्शाती है, जिसे उन लोगों ने अपने पर्यावरण को बचाने के लिए शुरू किया था । सत्र में शामिल थे: इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा, शेखर पाठक और मनीषा चौधरी । सत्र संचालन किया लेखक और पत्रकार मुकुल शर्मा ने|

सत्र हाल ही घटित उत्तराखंड त्रासदी और फरवरी 2021 में नंदा देवी सैंक्चुरी में आई बाढ़ पर केन्द्रित रहा।ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में हुई वनों की निरंकुश कटाई और शहरीकरण का ही परिणाम हैं।         

शेखर पाठक ने वर्तमान खतरे के प्रति राज्य और उद्योग की उदासीनता के बारे में बात की।इस सत्र में ग्रामीणों और स्थानीय निवासियों के सामने आने वाली कठिनाइयों पर चर्चा हुई, जिनकी आजीविकाऔर घर उन क्षेत्रों में हैं, जहाँ अक्सर जंगलों की कटाई, बाँध-निर्माण और सड़कों के लिए पहाड़ काटने का काम होता है|

रामचंद्र गुहा द्वारा लिखी गई इस किताब की भूमिका में शेखर पाठक के समर्पण और विद्वता के प्रति सम्मान झलकता है| पाठक के कार्य को सराहते हुए, रामचंद्र गुहा कहते हैं, “पाठक ने उन सामान्य, और अधिकतर अनपढ़ पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने वन अधिकारों के संघर्ष को आकार दिया।”

उत्तराखंड में आंदोलनों के सदियों पुराने इतिहास की बात करते हुए, गुहा ने 1940 में नमक सत्याग्रह की चर्चा की, जो गांधी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह के समर्थन में था| साथ ही अलग राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए भी उत्तराखंड वासियों को भारी संघर्ष का सामना करना पड़ा|

“भारत में, आधुनिक पर्यावरण आंदोलन का उद्घाटन 1973 में एक जमीनी स्तर के संघर्ष, चिपको आंदोलन द्वरा हुआ अपने नए अहिंसक तरीकों से चिपको आंदोलन ने दुनियाभर का ध्यान आकर्षित किया| इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले गांधीवादी लोग थे, जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं शामिल थीं| इस आंदोलन की कर्मभूमि हिमालय एक गहन अध्यात्मिक महत्व का प्रतीक है,” गुहा ने कहा|

मनीषा चौधरी ने इसके अनुवाद पर बात की| उन्होंने बताया कि कैसे इस किताब के माध्यम से वो अपने बचपन की उन यादों को फिर से ताज़ा कर पाईं, जो उन्होंने उत्तराखंड में लम्बे समय तक रहने के दौरान संजोई थीं| उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं के योगदान के विषय में पाठक की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया| मनीषा ने पाठक को एक मास्टर – इतिहासकार, काल-क्रम को लिखने वाले, निरीक्षक, प्रतिभागी और विद्वान माना|

सत्र ने हिमालय के पारिस्थितिक महत्व और शहरीकरण के प्रभाव स्वरुप वनों की कटाई और अन्य पहलुओं के बारे में बहुत सी जिज्ञासाएं और सवाल अपने श्रोताओं के मन में छोड़े|  

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2021 का आयोजन 28 फरवरी तक विशेष वर्चुअल प्लेटफार्म पर किया जायेगा|