जिनपिंग की यूरोप को साधने की कोशिशें नाकाम, यूरोप ने भी दिखाए चीन को तेवर

वॉशिंगटन। अमेरिका और भारत से बिगड़ते संबंधों के बीच चीन की यूरोप को साधने की कोशिशें अब नाकाम होती दिख रही हैं। पिछले हफ्ते पांच यूरोपीय देशों के दौरे पर गए न सिर्फ  चीनी विदेश मंत्री वांग यी को जनाक्रोश का सामना करना पड़ा बल्कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यूरोपीय राष्ट्राध्यक्षों से ऑनलाइन मुलाकात भी फीकी ही रही।

विशेषज्ञों का कहना है कि पहले निवेश साझेदारी को लेकर जिनपिंग को काफी ‘फेवर मिल रहा था लेकिन अब उनकी नीतियों और मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ यूरोप के कमोबेश हरेक देश में बड़ा रोष है।

वहां के लोग, नेता और बुद्धिजीवी तबका न सिर्फ हांगकांग और ताइवान का खुलकर समर्थन कर रहा है बल्कि चीनी नेताओं की जमकर आलोचना भी की जा रही है। ऐसे में अमेरिका से तल्ख रिश्तों के बाद यूरोप के साथ साझेदारी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था सुधारने का जिनपिंग का सपना चकनाचूर हो सकता है।

खुद लताड़ का शिकार चीनी विदेश मंत्री

इस माह ताइवान दौरे पर गए चेक गणराज्य के एक नेता को फटकार लगाने के बाद जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी यूरोप पहुंचे तो खुद लोगों की लताड़ के शिकार हो गए। यूरोप निवासियों ने उनके लिए भद्दी भाषा तक लिख डाली।

इससे पता लगता है कि चीन के यूरोप के साथ रिश्तों में कितनी गिरावट आ चुकी है। पराग्वे के जिला मेयर पावेल नोवोत्नी ने यी के लिए लिखा कि आपको शर्म आनी चाहिए। नोवोत्नी ने चीनियों को विचारहीन और जोकर तक करार दे दिया। साथ ही उन्हें दुनिया से माफी मांगने की भी नसीहत दी।

टूटेगी जिनपिंग की महत्वाकांक्षा

विश्लेषक कहते हैं कि यूरोप का बदलता रुख जिनपिंग के लिए कड़ी चुनौती साबित हो सकता है। इससे लघु अवधि में उनकी अर्थव्यवस्था को उबारने की जुगत कमजोर पड़ सकती है क्योंकि अमेरिका यूरोप को चीन में निवेश न करने के लिए पाबंद कर रहा है। वहीं, दीर्घावधि में दुनिया में व्यापार और प्रशासन क्षेत्र में अमेरिका का विकल्प बनने की जिनपिंग की महत्वाकांक्षा भी टूट सकती है।

घटिया मास्क कूटनीति से लेकर अधिनायकवाद निशाने पर

जानकारों के मुताबिक, यूरोप में कोरोना के बाद चीन के खिलाफ लोगों का गुबार फूटने लगा है। पहले, चीन की महामारी रोकने में विफलता और फिर घटिया मास्क कूटनीति उलटी पड़ गई है। खासतौर पर नीदरलैंड और स्पेन जैसे देशों को दोयम दर्जे के मास्क और सुरक्षा उपकरण बेचने के बाद तो वहां सरकार और लोगों की भावनाएं भड़की हुई हैं।

इस वक्त यूरोप में यह भाव जौर पकडऩे लगा है कि चीन का अधिनायकवाद यूरोप के राजनीतिक मूल्यों से मेल नहीं खा सकता। यही वजह है कि यूरोप में कई देश हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के बाद चीन के खिलाफ काफी मुखर हो रहे हैं।

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