खटका… तेरा खटका….

कल तक जो लोग चस्का … मेरा चस्का … का राग आलापा करते थे। आज वो खटका… तेरा खटका … के सुर लहरा रहे हैं। खटके भी ऐसे कि, खटकों-खटकों में लाखों का घोळ हो गया। चढ़ाने वालों ने उस पर दान का मुलम्मा चढ़ा दिया। शहर की एक हथाई पर आज इसी के चर्चे हो रहे थे।

कोई अगर ये पूछे कि खटके कहां नहीं होते? तो जवाब मिलेगा खटके सभी जगह होते हैं। बिन खटका सब सून। संसद से लेकर-पंचायत भवन तक खटके ही खटके। सदन में माननीय सदस्य टांग खिंचाई करते मिल जाएंगे। हंगामा होना तो रोजमर्रा की बात। आप ने सरकारी नींद केंद्र देखे? सदन की कुर्सियों पर ऐसे केंद्र दिख जाएंगे। जिन पर माननीय सांसद। आदरजोग विधायक और श्री पार्षद ऊंघते नजर आ जाएंगे। सदन के बाहर यारी और अंदर नजरें खारी। जैसे एक-दूसरे को खा जाएंगे। यह भी तो अपने आप में खटके है।


इसी तरह दफ्तरों के अपने खटके। स्कूलों से लेकर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक खटके ही खटके। अस्पतालों में। गांव-गली-गुवाड़ी में। चौक में। चौबारों में। बाजारों में। खेतों-खलिहानों में। खेल के मैदानों में। दुकानों में। मॉल्स में। नदी-नालों में। सूखे में। बरसात में। नमकीन में। मीठे में। फूल में। गुल में। गुल-ए-गुलजार में। जित देखो-तित खटके। थानों-चौकियों में खाकी वर्दी संप्रदाय के खटके सब से निराले। भिखारी के अपने खटके। डॉक्टरों के अपने। खाकी वर्दी संप्रदाय काले को गोरा और गोरे को काला बनाने में हैड मास्टर। सफेद कोट और खाकी वर्दी का संगम हो जाए तो समझो, खटके बन गए खटकानाथ।


उस दिन खाकी वर्दी संप्रदाय का एक सदस्य शराब में चूंच एक व्यक्ति को डॉक्टरी करवाने अस्पताल ले गया। शराबी तो नशे में था ही पुलिसजी भी टंच। डॉक्टर ने पहले इसे देखा। फिर उसे। दोनों को ऊपर से नीचे तक देखा। घुरा। फिर पूछा- ‘डॉक्टरी तुम्हारी करनी है, या उस की? यह भी अपने आप में एक खटका। पुलिसजी चोर मांगीलाल की जगह दूधिए मांगीलाल गुद्दी पकड़ के थाने ले आए। यह भी खटका। डागदर बाबू ऑपरेशन के बाद मरीज के पेट में नेपकीन। रूई। कैंची या ग्लब्स छोड़ दे, यह भी एक खटका। मास्टर जी के अपने खटके। विद्यार्थियों के अपने। दुकानदार-ग्राहक के अपने। ग्राहक ने ऊंची आवाज में पूछा- ‘भाई साहब, कुत्ते वाले बिस्कुट है क्या? दुकानदार भी कम नहीं। उसने उसी वोल्यूम में जवाब दिया- ‘यहीं खाओगे या घर ले जा कर।


इसी प्रकार शराब और शराबियों के अपने खटके। एक बार एक शराबी आधी रात को चौराहे पर खड़ा हो गया। पुलिसजी ने हड़काया-‘क्यंू बे, यहां काहे को खड़ा है। तांगिएं खाता हुआ शराबी बड़बड़ाया-‘सब कुछ घूम रहा है साब। मेरा मकान आएगा, तो अंदर घुस जाऊंगा। हथाईबाजों ने शराब पीकर हुड़दंग मचाते लोगों के खटके देखे। ठोकापिंजी करते शराबी देखे। गिरते देखे। पड़ते देखे। पर वो खटका सब से अलहदा। सब से निराला। हवा आई स्पेन की राजधानी मैड्रिक से। वहां इंग्लैण्ड के-मैनचेस्टर में रहने वाले जेम्स बी.एन. नाम के एक बुजुर्ग ने जोरदार खटके दिखाए।


जेम्स मैड्रिक से अपने शहर मैनचेस्टर जाने के लिए हवाई अड्डे पर आए। इससे पहले उनने जम कर शराब पी। हवाई अड्डे पहुंचते-पहुंचते उन की खटकाबाजी शुरू हो गई। न उन ने फितूर किया। न हुड़दंग मचाया। न कोई धमाल किया, वरन जो सामने आया। उसे दान के रूप में पौंड देते गए। हवाई अड्डे के बाहर से लेकर अंदर पहुंचते पहुंचते उन ने 52 हजार पौंड दान कर दिए। भारतीय मुद्रा में यह रकम करीब चालीस लाख रूपये बैठती है। हथाईबाजों ने तभी तो चस्के की जगह खटके को महिमामंडित किया।
चलते-चलते
एक शराबी ने सौ का नोट एक भिखारी के कटोरे में डाल दिया और बड़बड़ाया- तुम्हारी ये हालत कैसे हुई भाई?
‘मैं भी तुम्हारी तरह पी कर लोगों को भीख दिया करता था। भिखारी ने जवाब दिया।

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