जाने कब है गणगौर पूजा और क्यों सुहागिन महिलाएं पति से छिपा कर रखती हैं व्रत

हर साल गणगौर पूजा की जाती है। वैसे यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। वैसे इस बार गणगौर का त्योहार 15 अप्रैल को मनाया जाएगा।

होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक,18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं, चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।

गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है।

ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस दिन को क्यों रखा जाता है पतियों से गुप्त।

पति से छिपकर किया जाता है व्रत

हालांकि इस व्रत की सबसे बड़ी खासियत ये है कि सुहागिन महिलाएं इस व्रत को पति से छिपकर रखती हैं। पति को व्रत के बारे में कुछ भी नहीं बताना होता और यहां तक कि पूजा का चढ़ाया गया प्रसाद भी महिलाएं पति को नहीं देती हैं। गणगौर का व्रत खासतौर पर राजस्थान और मध्य प्रदेश की महिलाएं रखती हैं और इस दिन गणगौर माता यानी माता पार्वती की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है।

ऐसे होती है गणगौर की पूजा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती होली के दूसरे दिन अपने मायके चली जाती हैं और 8 दिनों के बाद भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं, इसलिए यह त्योहार होली के दिन से यानी चैत्र महीने की प्रतिपदा से आरंभ हो जाता है।

इस दिन से सुहागिन महिलाएं और कुंंवारी लड़कियां मिट्टी के शिव जी यानि गण और माता पार्वती यानि गौर बनाकर रोजाना उनकी पूजा करती हैं। इसके बाद चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज की पूजा की जाती है।

इन 17 दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठकर दूब और फूल चुनकर लाती हैं और उन दूबों से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन किसी नदी, तालाब के पास जाकर अपनी पूजी हुई गणगौर को पानी पिलाती हैं।

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया की शाम को गणगौर का विसर्जन कर दिया जाता है। गणगौर व्रत के दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु और कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।

पढ़े गणगौर व्रत की कथा

एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए। वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे। उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी।

थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची। इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है।

इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा। किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी। जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया।

पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो। तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई। स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया।

भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा। भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए।

इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी।

शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया।