हम अपने काम में इतने उलझे रहते हैं कि अपनी मेंटल हेल्थ का अकसर ध्यान रखना भूल जाते हैं। इसके कारण अकसर लोगों को एंग्जायटी, तनाव आदि का सामना करना पड़ता है, लेकिन इन सभी में सबसे आम और गंभीर समस्या है, बर्नआउट।
बर्नआउट की समस्या ज्यादा तनाव की वजह से होती है। बर्नआउट का मतलब होता है कि व्यक्ति तनाव के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से थक चुका है। उसमें खालीपन और अपने काम को लेकर असक्षम होने की भावनाएं आने लगती हैं। एक सर्वे के मुताबिक, भारतीय कर्मचारियों में सबसे ज्यादा बर्नआउट की समस्या देखने को मिलती है।
भारतीयों को होता है सबसे ज्यादा बर्नआउट
मैक्किंजे हेल्थ इंस्टीट्यूट ने साल 2023 में एक सर्वे किया था, जिसके मुताबिक 59त्न भारतीय कर्मचारियों में बर्नआउट के लक्षण देखने को मिले। इस सर्वे में यह पाया गया कि सबसे ज्यादा बर्नआउट 18 से 24 साल के कर्मचारियों, छोटी कंपनी के कर्मचारियों और ऐसे वर्कर जो मैनेजर की पोस्ट के नीचे थे, उनमें देखने को मिला। इसके साथ ही, भारतीय कर्मचारियों में सबसे ज्यादा वर्कप्लेस थकान भी देखने को मिली।
क्या है बर्नआउट?
वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, बर्नआउट एक सिंड्रोम है, जो लंबे समय से होने वाले वर्कप्लेस स्ट्रेस की वजह से होता है। जब काम की जगह पर होने वाले तनाव को ठीक से मैनेज नहीं किया जाता, तो वह बर्नआउट का कारण बन जाता है।
हालांकि, यह कोई मेडिकल कंडिशन नहीं है, लेकिन इस वजह से काफी मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। लंबे समय तक स्ट्रेस की वजह से मानसिक थकावट हो जाती है, जो धीरे-धीरे शारीरिक थकावट के रूप में भी दिखने लगती है।
बर्नआउट के प्रकार
बर्नआउट तीन प्रकार के होते हैं।
ओवरलोड बर्नआउट
अंडरचैलेंज्ड बर्नआउट
नेग्लेक्ट बर्नआउट
ओवरलोड बर्नआउट
ओवरलोड बर्नआउट में कर्मचारी पर उसके वक्त और क्षमता से अधिक काम का प्रेशर पड़ जाता है। ज्यादातर कर्मचारियों को ओवरलोड बर्नआउट की समस्या होती है। इसके कारण मेंटल हेल्थ पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस बर्नआउट से बचने के लिए रिसर्चर्स ने बताया कि अपनी भावनाओं को समझने की कोशिश करें कि उन्हें कैसा महसूस हो रहा है और वे ऐसा क्यों महसूस कर रहे हैं।
साथ ही, नेगेटिव सेल्फ टॉक से भी बचने की कोशिश करें। खुद के बारे में नकारात्मक बातें करने से आपका आत्मविश्वास कम होता है और आप खुद को कम करके आंकना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा, अपने महत्व को सिर्फ अपने काम से जोडक़र न देखें। साथ ही, किताब पढऩे, वॉक करने और एक्सरसाइज आदि के लिए भी समय निकालें।
अंडरचैलेंज्ड बर्नआउट
अंडरचैलेंज्ड बर्नआउट की समस्या तब होती है, जब आपको लगता है कि आपको कम अवसर मिल रहे हैं या आपको आपकी क्षमता से कम काम दिया जा रहा है। ऐसे में व्यक्ति को लगने लगता है कि वह अपनी प्रोफेश्नल लाइफ में कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा। जिसके कारण, वे धीरे-धीरे अपना फोकस खोने लगते हैं और मोटिवेशन भी कम होने लगता है।
इस बर्नआउट से बचने के लिए ऐसे काम करें, जिनसे आपको संतोष का एहसास हो। ऐसे में कोई नई स्किल सीखना काफी मददगार साबित हो सकता है। इससे आपका मोटिवेशन भी बढ़ेगा और आपका फोकस भी काम पर लौटने लगेगा।
नेग्लेक्ट बर्नआउट
नेग्लेक्ट बर्नआउट तब होता है, जब आपको लगता है कि आपके काम को सराहा नहीं जा रहा है या आपके काम को नजरअंदाज किया जा रहा है। ऐसे में खुद को लाचार महसूस होने लगता है। इस समय अगर सही गाइडेंस मिले तो काफी मदद मिल सकती है। इसके अलावा, ऐसे काम शुरू करें, जिनसे आपको खुशी महसूस होती है।