नई दिल्ली। मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा से बातचीत की और ट्रंप की टैरिफ नीति पर चर्चा की। ब्राजील ने भी बयान जारी कर कहा कि हम ट्रंप की नीति से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं और इसे सामूहिक रूप से निपटना होगा।
ट्रंप के टैरिफ से भारतीय निर्यातकों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अमेरिका भारतीय उत्पादों का एक बड़ा खरीदार है। इससे भारत के कुछ सेक्टर, जैसे कपड़ा, आभूषण और फार्मास्यूटिकल, प्रभावित हो सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति मुख्य रूप से “अमेरिका फर्स्ट” (America First) की विचारधारा पर आधारित है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों की सुरक्षा करना है। उनकी व्यापार नीतियों की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
संरक्षणवाद (Protectionism): ट्रंप का मानना है कि अमेरिका को दूसरे देशों के साथ व्यापार घाटे को कम करना चाहिए। इसके लिए उन्होंने आयातित वस्तुओं पर टैरिफ (आयात शुल्क) बढ़ाने का सहारा लिया है। उनका तर्क है कि इससे विदेशी सामान महंगा होगा और अमेरिकी उपभोक्ता घरेलू उत्पादों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
व्यापार युद्ध (Trade Wars): अपने कार्यकाल में ट्रंप ने चीन, भारत और यूरोपीय संघ सहित कई देशों के साथ व्यापार युद्ध शुरू किया। उन्होंने इन देशों से आयात होने वाले सामान, जैसे स्टील, एल्यूमीनियम और अन्य उत्पादों पर भारी शुल्क लगाए।
दबाव की रणनीति (Pressure Tactics): ट्रंप टैरिफ को दूसरे देशों पर दबाव बनाने के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में उन्होंने भारत से रूस के साथ तेल व्यापार जारी रखने के कारण भारतीय उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की है।
घरेलू उत्पादन को बढ़ावा (Promoting Domestic Production): ट्रंप की नीतियों का लक्ष्य अमेरिकी कंपनियों को विदेश में उत्पादन करने के बजाय अमेरिका में ही उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करना है। उनका कहना है कि जो कंपनियां अमेरिका में उत्पादन करती हैं, उन पर टैरिफ नहीं लगाया जाएगा।
ट्रंप की टैरिफ नीतियों का प्रभाव:
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है, क्योंकि आयातित सामान महंगे हो जाते हैं। इससे अमेरिका में भी कुछ हद तक मुद्रास्फीति (Inflation) बढ़ सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रभाव: ट्रंप की नीतियों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता पैदा की है। इससे कई देशों के साथ अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं और कुछ विशेषज्ञ इसे “स्लोबलाइजेशन” (Globalization की धीमी रफ्तार) का दौर मान रहे हैं।