तारीफ सुनना किसे नहीं अच्छा लगता, लेकिन जहां कुछ लोग तारीफ सुनकर और ज्यादा एक्टिव और एनर्जेटिक महसूस करते हैं, तो वहीं कुछ लोगों के लिए ये परेशानी बन सकती है। जी हां, यूनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टर्डम में मनोविज्ञान के प्रोफेसर ब्रुमेलमैन का कहना है कि, ‘तारीफ कुछ लोगों में तनाव और असहजता की वजह बन सकती है। इसमें मनोविज्ञान, मनोभाव और संस्कृति जैसे कई कारण शामिल हैं।ज्यादा नहीं सुनें अपनी तारीफ, क्योंकि ऐसे होने से कम होने लगती है आपके सोचने की क्षमता
कई देशों में खुद को बेहतर बनाने पर फोकस
संस्कृति पर गौर करें, तो चीन, जापान जैसे और भी कई देशों में खुद को बेहतर बनाने पर बहुत ज्यादा फोकस किया जाता है। ऐसे में किसी चीज़ में दक्ष होने पर की जाने वाली तारीफ उन लोगों को असहज महसूस करा सकती है। दरअसल इन देशों में छोटी उम्र से ही कमियों पर खासतौर से ध्यान देने और निपुणता पर अहंकार नहीं करने की शिक्षा दी जाती है। कौशलता से ज्यादा व्यक्तित्व की प्रशंसा की जाती है। जो व्यक्ति के सोचने-समझने की क्षमता को धीमा करने का काम कर सकती है।
इजराइली यूनिवर्सिटी में इसे लेकर एक शोध हुई। जिसमें पुरुषोंं और महिलाओं के व्यक्तित्व के आधार पर प्रशंसा की गई। जिसके बाद इनका एक गणित का टेस्ट भी लिया गया। इस टेस्ट में किसी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। जिसने इस बात को साबित कर दिया कि तारीफ बढ़ावा देने का नहीं, बल्कि तनाव देने का काम करती है।
इसके अलावा यह भी बहुत मायने रखता है कि प्रशंसा किस मनोभाव और संदर्भ से की जा रही है। इटली में हुए एक शोध में यह पाया गया कि बिना वजह तारीफ से खासकर महिलाओं में चिंता और तनाव का स्तर एकदम से बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में तारीफ झगड़े और गुस्से की भी वजह बन सकता है, जो खतरनाक है, लेकिन साथ ही साथ प्रशंसा और चालूसी के बीच के अंतर की पहचान होना भी बहुत जरूरी है।
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