गेंहू से बनते हैं आटा-मैदा, फिर भी आटा फायदेमंद, मेंदा नुकसानदायक

आटा
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मैदा और गेहूं का आटा हमारे रोजमर्रा के खाने का एक अहम हिस्सा हैं। नान, कुलचा, समोसा, भटूरा, केक और कुकीज जैसी डिशेज में मैदे का खूब इस्तेमाल होता है। वहीं रोटी, पराठा, पूड़ी और फुल्का जैसी डिशेज के लिए गेहूं का आटा ज्यादा पसंद किया जाता है। हालांकि ये दोनों ही गेहूं से बनते हैं, फिर भी इनकी न्यूट्रिशनल वैल्यू, पाचन पर असर और लंबे समय में सेहत पर प्रभाव बिल्कुल अलग होता है। डाइजेस्टिव हेल्थ, डायबिटीज और वेट मैनेजमेंट के मामले में यह फर्क और भी ज्यादा मायने रखता है। गेंहू से बनते हैं आटा-मैदा, फिर भी आटा फायदेमंद, मेंदा नुकसानदायक

मैदा और गेहूं के आटे में क्या मूल अंतर है?

मैदा
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मैदा सिर्फ गेहूं के एंडोस्पर्म (गेहूं के अंदर का सफेद, स्टार्च वाला हिस्सा) से बनाया जाता है। इसे ज्यादा प्रोसेस कर महीन, सफेद और मुलायम आटे में बदला जाता है, जिससे इसमें फाइबर, विटामिन और मिनरल्स बहुत कम रह जाते हैं। वहीं गेहूं का आटा पूरे दाने को पीसकर बनाया जाता है, जिससे यह ज्यादा पौष्टिक, फाइबर युक्त और पाचन के लिए बेहतर होता है। नीचे दिए ग्राफिक से इसके मूल अंतर को समझिए।

मैदा और गेहूं के आटे की न्यूट्रिशनल वैल्यू में क्या अंतर है?

मैदा में मुख्य रूप से स्टार्च बेस्ड कार्बोहाइड्रेट होते हैं। हालांकि प्रोसेसिंग के दौरान चोकर और अन्य पोषक हिस्से हट जाने के कारण इसमें फाइबर, विटामिन और मिनरल्स न के बराबर बचते हैं। यही कारण है कि यह पचने में हैवी और न्यूट्रिशन में कमजोर होता है। वहीं गेहूं का आटा साबुत गेहूं से बनता है, जिसमें फाइबर, प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम और जिंक जैसे जरूरी पोषक तत्व होते हैं। इसमें विटामिन क्च-कॉम्प्लेक्स और विटामिन श्व भी मौजूद होते हैं, जो पाचन, एनर्जी और ओवरऑल के लिए फायदेमंद हैं। नीचे दिए ग्राफिक से 100 ग्राम मैदा और गेहूं के आटे की न्यूट्रिशनल वैल्यू समझिए-

मैदा और गेहूं के आटे के क्या फायदे और नुकसान हैं?

गेहूं के आटे में मौजूद फाइबर कब्ज से राहत देता है और पाचन तंत्र को बेहतर बनाए रखता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स मैदे की तुलना में कम होता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल स्थिर रहता है। साथ ही यह पेट को लंबे समय तक भरा रखने में मदद करता है, जिससे ओवरईटिंग की संभावना कम हो जाती है। ये आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और क्च-कॉम्प्लेक्स विटामिन्स जैसे न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है, जो शरीर को एनर्जी देने और हार्ट डिजीज से बचाने में मदद करते हैं। हालांकि ग्लूटेन सेंसिटिव वाले लोग या जिन्हें सीलियक डिजीज है, उन्हें इससे परहेज करना चाहिए। कुछ लोगों को गेहूं से एलर्जी भी हो सकती है। वहीं मैदे का इस्तेमाल बेकिंग और स्नैक्स में किया जाता है क्योंकि यह चीजों को सॉफ्ट और आकर्षक बनाता है। इसके नियमित सेवन से डाइजेस्टिव सिस्टम खराब हो सकता है और ब्लड शुगर बढ़ सकता है। कैलोरी ज्यादा और न्यूट्रिशन कम होने से वजन बढऩे और गट हेल्थ प्रभावित होने का रिस्क रहता है। इसके अधिक सेवन से मोटापा, हार्ट डिजीज, टाइप-2 डायबिटीज और फैटी लिवर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए मैदे का इस्तेमाल संयमित और कभी-कभार ही करना बेहतर होता है।

मैदा और गेहूं का आटा दोनों में से क्या खाना ज्यादा हेल्दी है?

मैदा सिर्फ एनर्जी देता है, जबकि गेहूं का आटा एनर्जी के साथ-साथ पोषण भी देता है। इसलिए रोजमर्रा की सेहतमंद डाइट में गेहूं का आटा बेहतर विकल्प है।

मैदे की जगह और कौन से हेल्दी ऑप्शन हो सकते हैं?

हम अपनी रोजमर्रा की डाइट में मैदा की जगह कुछ अन्य विकल्पों को शामिल कर सकते हैं, जो पोषक तत्वों से भरपूर और पेट के लिए फायदेमंद हैं।
रागी का आटा: कैल्शियम और आयरन का अच्छा सोर्स, हड्डियों और एनीमिया के लिए फायदेमंद।
जौ का आटा: फाइबर रिच और डाइजेस्टिव हेल्थ के लिए फायदेमंद।
ज्वार का आटा: ग्लूटेन-फ्री और फाइबर रिच।
बाजरा का आटा: गट-फ्रेंडली और पोषक तत्वों से भरपूर।
ओट्स आटा: हाई फाइबर कंटेंट, पेट के लिए फायदेमंद।
बादाम या नारियल आटा: लो-कार्ब और ग्लूटेन-फ्री विकल्प।

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