आवारा कुत्तों से जुड़ा मुद्दा इन दिनों सुर्खियों में है। 11 अगस्त को एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली-एनसीआर के आवारा कुत्तों को पकडक़र स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखा जाए और उन्हें दोबारा सडक़ों पर न छोड़ा जाए। यह आदेश कुत्तों के काटने के बढ़ते मामले और जानलेवा रेबीज संक्रमण से होने वाली मौतों को देखते हुए दिया गया था। गुरुवार (14 अगस्त) को इसी मामले को लेकर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। गौरतलब है कि आवारा कुत्तों के काटने के मामले देश में हाल के महीनों में काफी तेजी से बढ़े हैं। इसी तरह के एक मामले में उत्तर प्रदेश के राज्य स्तरीय कबड्डी खिलाड़ी बृजेश सोलंकी (22) की हाल ही में कथित तौर पर रेबीज से मौत हो गई थी। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक उन्हें कुत्ते ने काट लिया था, हालांकि इस घटना के बाद किन्हीं कारणों के चलते उन्हें एंटी-रेबीज इंजेक्शन नहीं लग पाया था। इस वजह से बीमारी के लक्षण तेजी से बढऩे लगे जिससे उनकी मौत हो गई। इस तरह के मामले अक्सर आप भी सोशल मीडिया पर वायरल होते देखते रहे होंगे। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, रेबीज एक घातक वायरल बीमारी है जिसके शिकार लोगों की जान बचा पाना लगभग मुश्किल होता है।
कुत्ते के काटने के मामले
एक अनुमान के मुताबिक रेबीज के कारण दुनियाभर में हर साल 59,000 लोगों की मौत होती है। हालांकि रेबीज को टीकाकरण और संक्रमित जानवरों के काटने के बाद इलाज के जरिए रोका जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों के मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि हमने ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती एक व्यक्ति की मेडिकल रिपोर्ट जमा की है, इंसान परेशान हैं। हर 24 लोगों पर एक आवारा कुत्ता है। साल 2024 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस साल अकेले देशभर में कुत्तों के काटने के 37 लाख से ज्यादा मामले रिपोर्ट किए गए, इनमें से करीब 54 लोगों की संदिग्ध रूप से रेबीज के कारण मौत हो गई। इतना ही नहीं अकेले जनवरी 2025 में ही महाराष्ट्र-गुजरात में कुत्तों के काटने के 50 हजार से ज्यादा मामले रिपोर्ट किए गए।
क्यों इतना खतरनाक माना जाता है रेबीज?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, रेबीज एक घातक वायरस है जो संक्रमित जानवरों की लार से लोगों में फैलता है। सबसे गंभीर बात ये है कि एक बार जब किसी व्यक्ति में रेबीज के लक्षण दिखने लगते हैं, तो यहां से जान बचा पाना लगभग कठिन हो जाता है। यही कारण है कि जिन लोगों को रेबीज होने का खतरा हो सकता है (जैसे कुत्ते और अन्य जानवरों के संपर्क में रहने वाले लोग) उन्हें सुरक्षात्मक रूप से रेबीज के टीके लगवाने की सलाह दी जाती है। रेबीज के कारण मृत्युदर 100 फीसदी के करीब रहता है, मतलब अगर किसी को रेबीज हो जाए तो इसका इलाज लगभग असंभव हो जाता है। रेबीज के कारण रोगियों को हाइड्रोफोबिया होने का खतरा अधिक रहता है, जिसमें व्यक्ति को पानी से डर लगने लगता है, इसके अलावा कुछ भी खाने में दिक्कत होने लगती है।
सिर्फ कुत्ते ही नहीं अन्य जानवरों भी हो सकता है रेबीज
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ अनुज कुमार बताते हैं, रेबीज को सिर्फ कुत्तों के काटने से होने वाली समस्या माना जाता रहा है, हालांकि बिल्ली-बंदरों के काटने, चमगादड़, लोमड़ी और रैकून के कारण भी इसका संक्रमण फैल सकता है। इन जानवरों से भी बचाव करते रहना जरूरी है। अगर आप जानवर पालते हैं या किसी ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पहले किसी को रेबीज हो चुका है तो इसके लिए प्री-एक्सपोजर वैक्सीन लगवानी चाहिए। ये पहले डोज के बाद सातवे, 21वें और 28वें दिन लगाई जाती है। वहीं अगर आपको किसी रेबीज संभावित जानवर ने काट लिया है तो खास ध्यान देना चाहिए, इसके लिए वैक्सीन की पांच खुराक दी जाती है।
पालतू कुत्तों को भी लगवाएं वैक्सीन
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, जिन लोगों के घरों में पालतू कुत्ते हैं, उन्हें पशु चिकित्सकों की सलाह पर जानवर को टीके लगवाने चाहिए ताकि वह रेबीज संक्रमित न हों और उनसे आपको या आसपास के लोगों को कोई खतरा न हो। पालतू कुत्तों को दिए जाने वाले मुख्य टीके डीएचपीपी (जिसे डीए2पीपी या डीएपीपी भी कहा जाता है) और रेबीज के टीके हैं। डीएचपीपी की टीके कुत्तों को डिस्टेंपर, एडेनोवायरस, पैराइन्फ्लुएंजा जैसे रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं रेबीज का टीका जन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो कुत्तों को रेबीज से बचाता है और इससे उनके आसपास रहने वाले लोग भी सुरक्षित होते हैं।
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