आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां हर कोई वजन घटाने और फिट रहने के नए तरीके ढूंढ रहा है, ‘इंटरमिटेंट फास्टिंग’ का ट्रेंड तेजी से बढ़ता जा रहा है। यह खाने का एक स्ट्रेटजिक तरीका है जो इस बात पर जोर देता है कि आप कब खाते हैं। इसमें खाने और उपवास की अवधि को बारी-बारी से बांटा जाता है। कई लोग इसे वजन कम करने, शरीर के मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाने और ओवरऑल हेल्थ को सुधारने का एक बहुत असरदार उपाय मानते हैं। लेकिन, हर लोकप्रिय चीज की तरह, इसके भी कुछ फायदे और नुकसान हैं जिन्हें समझना बेहद जरूरी है। खासकर अगर आप इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करने की सोच रहे हैं, तो इसके हर पहलू को जानना आपके लिए अहम है। आइए जानते हैं कि आखिर यह इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है, यह कैसे काम करता है, और इसके संभावित लाभ व जोखिम क्या-क्या हो सकते हैं।
क्या है इंटरमिटेंट फास्टिंग?
इंटरमिटेंट फास्टिंग खाने का एक ऐसा पैटर्न है जहां आप निश्चित घंटों के लिए भोजन करते हैं और बाकी घंटों में उपवास रखते हैं। सामान्यतौर पर इंटरमिटेंट फास्टिंग दो तरीके से किया जाता है।
16/8 विधि- इसमें आप रोजाना 16 घंटे उपवास करते हैं और बाकी 8 घंटे में खाते हैं।
5:2 विधि: इसमें आप सप्ताह के 5 दिन सामान्य रूप से खाते हैं और किसी दो अलग-अलग दिन कैलोरी का सेवन बहुत कम करते हैं। जब आप उपवास करते हैं, तो शरीर में जमा शुगर (ग्लूकोज) का उपयोग होने लगता है। शुगर खत्म होने पर शरीर ऊर्जा के लिए फैट बर्न होना शुरू होता है, जिससे वजन कम होता है। इस प्रक्रिया को मेटाबॉलिक स्विच कहते हैं। साथ ही उपवास के दौरान शरीर में सेलुलर मरम्मत और हार्मोनल बदलाव भी होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माने जाते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के फायदे
इंटरमिटेंट फास्टिंग के कई संभावित स्वास्थ्य लाभ बताए जाते हैं-
वजन घटाना
यह स्वाभाविक रूप से कैलोरी सेवन को कम करता है और शरीर के फैट को बर्न करने में मदद करता है, जिससे वजन कम होता है।
मेटाबॉलिक स्वास्थ्य में सुधार
इंटरमिटेंट फास्टिंग इंसुलिन सेंसिटिविटी को बेहतर बनाता है और ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, जो टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम करता है।
सेलुलर मरम्मत (ऑटोफैगी)
उपवास के दौरान कोशिकाएं खुद को साफ करती हैं और क्षतिग्रस्त घटकों को हटाती हैं, जिससे कोशिका स्वास्थ्य में सुधार होता है।
मस्तिष्क स्वास्थ्य
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यह मस्तिष्क कार्य को बेहतर बनाने और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों (जैसे अल्जाइमर) के जोखिम को कम करने में सहायक हो सकता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के संभावित नुकसान
हालांकि इंटरमिटेंट फास्टिंग के कई फायदे हैं, पर यह सभी के लिए सही नहीं है और इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। शुरुआत में आपको भूख, थकान, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द और चक्कर आना जैसी दिक्कतें महसूस हो सकती हैं। अगर आप खाने की अवधि के दौरान संतुलित और पौष्टिक भोजन नहीं लेते, तो शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी का जोखिम रहता है। गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं, डायबिटीज के मरीजों, खाने के विकार वाले व्यक्तियों और बच्चों/किशोरों को इसे अपनाने से बचना चाहिए। साथ ही कुछ लोग उपवास के बाद खाने की अवधि के दौरान जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं, जिससे वजन कम होने के बजाय बढ़ भी सकता है।
सावधानियां
यह समझना जरूरी है कि उपवास तोडऩे के दौरान आप क्या खाते हैं वो भी आपके वजन निंयत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए आप डाइट में क्या खा रहे हैं ये बहुत मायने रखता है। कुछ स्टडी में ये देखने को मिला है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है, इसिलए इंटरमिटेंट फास्टिंग की स्ट्रेटजी अपनाने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लें।
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