जानें गार्लिक नान का इतिहास, कहां से हुई इसकी शुरुआत

गार्लिक नान
गार्लिक नान

भारतीय ब्रेड्स सदियों से देश की समृद्ध पाक विरासत का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं, लेकिन अब वे दुनियाभर में अपनी छाप छोड़ रही हैं। टेस्टएटलस ने हाल ही में बटर गार्लिक नान को दुनिया की सबसे बेहतरीन ब्रेड घोषित किया है, जिसे 4.7 की रेटिंग के साथ पहला स्थान प्राप्त हुआ। यह नरम, फूली हुई, मक्खन और लहसुन से भरी रोटी न केवल रेस्त्रां की जान है, बल्कि इस बात का प्रतीक है कि कैसे भारतीय स्वाद दुनियाभर के दिलों को छू रहे हैं। इस सूची में अन्य भारतीय ब्रेड्स ने भी प्रमुख स्थान पाए हैं-अमृतसरी कुलचा को दूसरा स्थान मिला, परोट्टा छठे स्थान पर और विभिन्न प्रकार की नान, पराठा और रोटी भी शीर्ष 50 में शामिल हुई हैं।

नान का शाही अंदाज

गार्लिक नान
गार्लिक नान

नान का इतिहास बेहद समृद्ध है। नान को अक्सर मुगलई व्यंजनों से जोड़ा जाता है, लेकिन इसका इतिहास उससे भी पुराना है। माना जाता है कि नान की उत्पत्ति फारस में हुई थी और 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राटों के साथ भारत आई। यह जल्द ही शाही रसोई में एक मुख्य व्यंजन बन गई, खासकर उत्तर भारत में, जहां इसे तंदूर में पकाया जाता। शुरू में यह समाज के उच्च वर्ग का व्यंजन थी, मगर धीरे-धीरे सभी वर्गों में फैल गई। इतिहास में कुलचा और नान को अक्सर सूखे मेवे या मांस से भरकर तैयार किया जाता था- यह परंपरा फारसी बेकर्स से आई थी।

कोई नहीं है टक्कर में

बटर गार्लिक नान की बढ़ती लोकप्रियता के कई कारण बताए जा सकते हैं। नमकीन लहसुन और भरपूर मक्खन का संयोजन एक क्लासिक है, जो सांस्कृतिक सीमाओं को पार करता है। बटर चिकन और दाल मखनी से लेकर मलाई कोफ्ता और शाही पनीर तक भारतीय व्यंजनों की एक विस्तृत शृंखला बटर गार्लिक नान के जोड़़ीदार के रूप में अटूट साथ निभाती है। इसकी नरम, थोड़ी चबाने वाली बनावट और ग्रेवी को सोखने की क्षमता इसे किसी भी भोजन का स्वादिष्ट हिस्सा बनाती है। रेस्त्रां की टेबल पर किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा तो बटर गार्लिक नान सुलभ विकल्प बन जाती है।

हर टुकड़े में संस्कृति का संगम

पेरिस प्रवास के दौरान मैंने भारतीय नान को एक अद्भुत फ्रेंच ट्विस्ट के साथ देखा। वहां फ्रेंच चीज के साथ बनी नान फ्रोमाज बेहद लोकप्रिय है। इसकी बनावट पारंपरिक नान जैसी होती है, लेकिन इसमें भरा पिघला हुआ चीज हर बाइट में फ्रांस और भारत के सांस्कृतिक संगम को दर्शाता है। यह पेरिस की गलियों में भारतीय व्यंजनों की नई पहचान है और दर्शाता है कि भारतीय ब्रेड्स किस तरह अंतरराष्ट्रीय स्वाद से जुडक़र नई रचना गढ़ रही हैं। इंग्लैंड और अमेरिका में इसे टार्टिला के स्थान पर नान टैको या नान पिज्जा में बदला जा रहा है। जापान और साउथ कोरिया में यह चीज और शहद के साथ मिठाई के रूप में परोसी जा रही है। तंदूर, जो पहले सिर्फ भारतीय और मध्य-पूर्वी रसोई तक सीमित था, अब यूरोप और अमेरिका में भी लोकप्रिय हो चुका है। विकसित हो रही जीवनशैली और खानपान की आदतों के चलते अब वीगन बटर नान, ग्लूटन-फ्री नान, और कीटो-फ्रेंडली नान जैसे विकल्प भी सामने आ चुके हैं।

उत्तर से लेकर दक्षिण तक

पराठा (उत्तर भारत)

‘पराठा’ शब्द संस्कृत के ‘परत (परतें)’ और ‘आटा’ से मिलकर बना है। पराठे जैसे व्यंजन का उल्लेख 12वीं शताब्दी के ‘मानसोल्लास’ ग्रंथ में मिलता है। परंपरागत पराठे गेहूं के आटे से बनते हैं, जिनमें घी या मक्खन लगाया जाता है और इन्हें तवे पर सेंका जाता है। भरवां पराठे जैसे आलू पराठा, गोभी पराठा आदि पंजाबी रसोई का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।

परोट्टा (दक्षिण भारत)

परोट्टा की जड़ें द्रविड़ संस्कृति में हैं और यह तमिलनाडु, केरल और श्रीलंका में काफी लोकप्रिय है। यह मध्य-पूर्वी एशिया फ्लैकी ब्रेड्स से प्रेरित है, जिन्हें अरब व्यापारी 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच लेकर आए थे। परोट्टा मैदे से बनता है, जिसमें तेल और अंडे को मिलाकर गूंथा जाता है। इसे परतों में बेलकर गर्म तवे पर सेंका जाता है। मालाबार परोट्टा विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसे पारंपरिक मांस के व्यंजनों के साथ परोसा जाता है।

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