अगर केरल ‘ईश्वर का अपना देश’ है, तो कालीकट अथवा कोझिकोड ‘साहित्य का शहर’। यूनेस्को की इस आधिकारिक मुहर के साथ ही यह एक खास प्रकार की किस्म-किस्म की मिठाइयों का शहर भी है। यह है ‘हलवा’, मध्य-पूर्व एशिया से भारत आई इस मिठाई के यहां 50 से अधिक प्रकार मिलते हैं- काला हलवा से लेकर नारियल हलवा तक। कालीकट में एक प्रसिद्ध सडक़ एसएम स्ट्रीट भी है, जिसे ‘हलवा बाजार’ कहा जाता है। हलवा कालीकट का एक विश्वप्रसिद्ध सांस्कृतिक प्रतीक है। यहां यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा है और त्योहारों, समारोहों व परिवारिक मिलनों में अक्सर परोसा जाता है। यहां हर खाने में, नाश्ते से लेकर रात तक, हलव अवश्य परोसा जाता है। मलयाली दुनिया भर में, खासकर पूर्वी एशिया, यूरोप, अमेरिका और पश्चिम एशिया में फैले हुए हैं। परदेस में बसे मलयाली अपने साथ भारतीय मसाले ही नहीं, कालीकट का परंपरागत मीठा हलवा भी ले जाते हैं। केरल के सभी प्रमुख व्यंजनों की तरह, कालीकट का सफेद हलवा भी नारियल के तेल में पकता है। यह हलवे को स्वास्थ्यवर्धक बनाता है और इसकी विशिष्ट सुगंध को निखारता है। इसे बनाने में लगभग दो घंटे लगते हैं। इसकी शेल्फ लाइफ कमाल की है। यहां का लाल हलवा अरबी नहीं, अपितु मूल मलाबर व्यंजन है। प्राकृतिक फलों से बना हलवा 30-45 दिनों की अवधि तक बढिय़ा रहता है, जबकि बिना प्राकृतिक फलों के हलवे की अवधि 60 दिनों की होती है। जानें क्या है हलवे का इतिहास, कालीकट की देन है ये
मजे से भरी मिठाई गली
कालीकट की व्यस्त मट्टई थेरुवु (मिठाई गली), जिसे एसएम स्ट्रीट भी कहा जाता है, की दुकानों में रंगीन हलवे के टुकड़ों का ढेर लगा रहता है। इस हलवा बाजार में इनकी कीमतें सामान्यत: 180 रुपये से 450 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होती हैं, जो विभिन्न स्वादों को पूरा करती हैं। अगर कभी भी कालीकट जाइए, तो इस मिठाई गली का अवश्य आनंद लीजिए और इस क्लासिक मिठाई की समृद्ध परंपरा और स्वाद का अनुभव कीजिए!
किस्म-किस्म के स्वाद
कालीकट में बनने-बिकने वाले कुछ लोकप्रिय हलवे हैं: कालीकट काला हलवा, लाल हलवा, हरा हलवा, सफेद हलवा, नारियल हलवा, अनार हलवा, केला हलवा, काला मसाला हलवा, खजूर का हलवा, थाई मिर्ची हलवा, येल्लू हलवा (तिल, घी, सूखे मेवे का हलवा), केसरी बादाम हलवा, पिस्ता हलवा।
मध्य-पूर्व से आई मिठास
‘हलवा’ शब्द अरबी शब्द ‘हल्व’ से उपजा है, जिसका अर्थ है ‘मिठाई’। यह शानदार मिठाई अरब व्यापारियों की जड़ें चिन्हित करती है, जो नौवीं शताब्दी में केरल के पश्चिमी तट पर मसालों के व्यापार के लिए आए थे। प्रचलित मान्यता के अनुसार, हलवा अरब व्यापारियों द्वारा कालीकट के शासक जमोरिन को भेंटस्वरूप दिया गया था। इस मिठाई की प्रसिद्धि धीरे-धीरे पुर्तगालियों और ब्रिटिशों के दिलों में भी घर कर गई।
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