नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा को भारत की विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में देखा गया है। यह यात्रा अमेरिका द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने के बाद हो रही है। भारत चीन के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है ताकि अमेरिकी टैरिफ से उत्पन्न वैश्विक व्यापार तनाव का मुकाबला किया जा सके। मोदी और शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक में व्यापार और सीमा विवाद पर चर्चा होने की संभावना है।
रूस से तेल खरीद: भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना जारी रखा है, जिसके कारण अमेरिका ने भारत पर रूस के सैन्य खजाने को वित्तीय सहायता देने का आरोप लगाया है। यह कदम भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाता है, जिसमें वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है, भले ही यह अमेरिका जैसे पारंपरिक सहयोगियों के रुख के विपरीत हो।
在天津,得到来自中国各地印度侨民热情而特别的欢迎。以下是一些精彩瞬间。 pic.twitter.com/CavM0izOyZ
— Narendra Modi (@narendramodi) August 30, 2025
- दो खेमों में सदस्यता: भारत एक साथ दो विरोधी खेमों का सदस्य है।
- अमेरिका-नेतृत्व वाला खेमा: भारत इंडो-पैसिफिक क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का सदस्य है।
- रूस-चीन-नेतृत्व वाला खेमा: भारत शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सदस्य है।
अन्य समूह: भारत I2U2 (भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका) और भारत-फ्रांस-यूएई ट्राइलेटरल इनिशिएटिव जैसे अन्य समूहों में भी सक्रिय है। ये सभी समूह अलग-अलग रणनीतिक हितों पर केंद्रित हैं।
रणनीतिक स्वायत्तता: भारत की यह नीति जानबूझकर अपनाई गई है। इसका उद्देश्य रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना है ताकि वह किसी भी गुट के दबाव में न आए और अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय ले सके। विश्लेषकों का मानना है कि इससे भारत को जोखिम के बजाय लाभ मिलता है, क्योंकि वह विभिन्न देशों से प्रौद्योगिकी, निवेश और अन्य लाभ प्राप्त कर सकता है।