शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने कभी लहसुन का स्वाद न चखा हो। लगभग हर भारतीय घरों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। सब्जी हो या चटनी लहसुन हर किसी का स्वाद दोगुना कर देता है। खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ ही यह सेहत को भी ढेर सारा फायदा पहुंचाता है। यही वजह है कि लहसुन के इतिहास, इसके औषधीय और खाद्य गुणों के उजागर करने के लिए हर साल 19 अप्रैल को नेशनल गार्लिक डे मनाया जाता है। इस दिन का मकसद से इसके इतिहास को जानने के अलावा, इससे होने लाभों के लिए लहसुन को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करने को बढ़ावा देना है। ऐसे में आज इस मौके पर हम आपको बताएंगे लहसुन के दिलचस्प इतिहास और इसके भारत आने की पूरी कहानी
लहसुन का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि मूल रूप से लहसुन मध्य एशिया, दक्षिण एशिया या दक्षिण-पश्चिमी साइबेरिया में पाया जाता है। हालांकि, इसकी उत्पत्ति पर अभी भी कुछ बहस चल रही है। यह दुनिया की सबसे पुरानी खेती वाली फसलों में से एक है। लहसुन प्रेमी इस तीखी जड़ी-बूटी को मिस्र, पाकिस्तान, भारत और चीन तक ले गए। कू्रसेडर्स लहसुन को वापस यूरोप ले आये। बाद में स्पैनिश, फ्रेच और पुर्तगाली निवासियों ने लहसुन को अमेरिका में लाया। लहसुन नाम अंग्रेजी नाम गार्लिक, एक पुराना एंग्लो-सैक्सन शब्द गार्लिक से पड़ा।
कई साल पुराना है लहसुन
बीते 5,000 से ज्यादा वर्षों से लहसुन का इस्तेमाल भोजन, औषधि, धन और जादुई औषधि के रूप में किया जाता रहा है। पुराने समय में माना जाता था कि लहसुन बुरी नजर से बचाता था। मध्ययुगीन निवासियों बुराई से बचने के लिए इसे दरवाजों पर लटकाते थे। ग्रीक एथलीट्स और योद्धाओं को यह ताकत और साहस देता था। बुरी बलाओं से युवतियों और गर्भवती महिलाओं की रक्षा करता था। इतना ही नहीं बैल के तेज सींगों, स्थानीय चुड़ैलों, काले प्लेग आदि से बचने के लिए लहसुन को गले में लटकाया जाता था।
वेतन के रूप में बांटा जाता था लहसुन
यह तीखी जड़ी-बूटी सबसे पुराने खेती वाले पौधों में से एक है। मिस्र के लोग इसे देवता के रूप में पूजते थे और स्थानीय मुद्रा के रूप में भी इस्तेमाल करते थे। इतना ही नहीं उस दौर में लहसुन का इस्तेमाल सैलरी के रूप में किया जाता है। यही नहीं मिस्र में जो ममी बनाई जाती थीं, उनके साथ उसमें लहसुन भी संरक्षित किया जाता था। पिरामिड बनाने वाले मजदूरों और दासों को वेतन के तौर पर लहसुन दिया या खिलाया जाता है। पिरामिड पर काम करने वालों के बीच यह इतना लोकप्रिय था कि लहसुन की कमी के कारण काम तक रुक जाता था। नील नदी की बाढ़ के कारण बर्बाद हुई लहसुन की फसल मिस्र के दो दास विद्रोहों में से एक का कारण बनी।
मंदिरों में लहसुन खाकर प्रवेश की मनाई
इतना लोकप्रिय, अहम और औषधीय गुणों से भरपूर होने के बाद भी समाज के उच्च वर्ग लहसुन को अपनी डाइट का हिस्सा नहीं बताने थे। यही वजह है कि सिर्फ निम्न वर्ग ही अपना पेट लहसुन से भर सकते थे। मिस्र के पुजारी, जो खुद लहसुन की पूजा करते थे, इसे खाना पकाने और खाने से बचते थे। सिर्फ मिस्त्र ही नहींं अन्य संस्कृतियों में भी लहसुन की धार्मिक संस्थानों में मनाई थी।
ग्रीक्स के मंदिर में प्रवेश करने के इच्छुक यूनानियों को पहले लहसुन सांस परीक्षण पास करना पड़ता था। इसमें टेस्ट में जो लोग लहसुन खाए होते थे, उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि प्राचीन भारत में भी अपर क्लास लोग इसकी गंध की वजह से इससे दूरी बनाए रखते थे। इसी तरह, किंग अल्फोंसो डी कैस्टिले के दरबार में लहसुन खाने वाले योद्धाओं को एक हफ्ते के लिए सभ्य समाज से बाहर कर दिया गया।
इन लोगों के लिए वर्जित था लहसुन
इंग्लैंड में भी लहसुन को लेकर कुछ ऐसे ही विचार थे। इसके अलावा अमेरिका ने भी इंग्लैंड की ही तरह 1940 के दशक तक लहसुन को नहीं अपनाया। लहसुन के लिए ऐसा भी माना जाता था कि यह भावनाओं को उत्तेजित कर सकता है। यही वजह थी कि कभी-कभी तिब्बती भिक्षुओं, विधवाओं और किशोरों के लिए इसे खाना वर्जित था। खुद चीन के डॉक्टर्स ‘यौन संबंधी समस्याओं’ वाले पुरुषों को लहसुन खाने की सलाह देते थे। मिस्र के बेवफा पति अपनी पत्नियों से दूसरी महिला की गंध को छिपाने के लिए लहसुन खाया करते थे।
लहसुन का जिक्र प्राचीन मिस्र, ग्रीक, भारतीय और चीनी लेखों के साथ-साथ बाइबिल, तल्मूड और कुरान में भी किया गया है। ग्रीक, मिस्र, चीनी और यूरोपीय औषधीय ग्रंथों में लहसुन को नपुंसकता, बिच्छू के काटने, हार्ट डिजीज, एनर्जी की कमी और ब्लैक प्लेग सहित कई बीमारियों के इलाज के रूप में बताया गया है।
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