विजयादशमी पर राजसी रसोई में बनाए जाते हैं ये पकवान, जाने इनकी सीक्रेट रेसिपी

विजयादशमी
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कहीं चर्चा है रावण के ऊंचे-ऊंचे पुतलों की तो कहीं दुर्गा मां की भव्य मूर्ति पर न्योछावर हो रहे हैं भक्त, मगर इन दिनों एक हलचल है राज परिवारों के भीतर भी। विजयादशमी आने वाली है, तो राजपरिवारों की रसोई में महक रही है मसालों की खुशबू और तैयारी हो रही है स्वादिष्ट व्यंजनों की। भारत में राजघरानों की पाक-कला की समृद्ध विरासत है और उनके पारंपरिक व्यंजन उत्सव का अभिन्न अंग हैं। विजयादशमी ऐसा समय है जब ये राजसी व्यंजन केंद्र में होते हैं, जहां हर व्यंजन को सटीकता और स्वयं राजपरिवारों के मुख्य सदस्यों की निगरानी में तैयार किया जाता है।

राजा राम के दरबार से

विजयादशमी
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भगवान श्रीराम भले ही राजा रहे, मगर सौम्यता में उनका कोई मुकाबला नहीं। व्यक्तित्व की यह सरलता आज भी अयोध्या के राजपरिवार में मौजूद है। अयोध्या राजपरिवार के विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र की बेटी मंजरी मिश्रा बताती हैं, ‘विजयदशमी को देवी पूजन, चंद्रपूजन, शमी पूजन के साथ ही कुलगुरु की पूजा होती है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है, जो बिना लहसुन-प्याज के तैयार होता है। इस थाली में कई तरह के व्यंजन होते हैं, जिनमें दाल का पराठा, सूरन की सब्जी, दही बड़ा आदि प्रमुख हैं, जिन्हें प्रसादस्वरूप हम भी खाते हैं।

इस भोजन में मुख्यत

मौसमी सब्जियां होती हैं। जो भी नई सब्जियां आ रही होती हैं, उन्हें अवश्य शामिल किया जाता है, क्योंकि इसमें भोग चढ़ता है। इसके साथ ही इसी मौसम में आने वाले अगस्त्य (अगस्त अथवा गाछ मूंगा) नामक फूल के पकौड़े बनाए जाते हैं। कई तरह की बेहतरीन मिठाइयां इस थाली का अनिवार्य हिस्सा होती हैं। इसमें खीर जरूर बनती है, प्रसाद के लिए हलवा बनता है। मीठा चावल बनता है, जो हमारे यहां का सदियों पुराना व्यंजन है। इसे घर की घी-मलाई के साथ लंबे समय तक दम करके विशेष सामग्रियों के साथ तैयार किया जाता है। इसके साथ ही केसर शर्बत और गुलाब शर्बत भी बनता है।’

सारी तैयारी देखती हैं रानी

बिहार में हथुआ राजपरिवार की कुलमाता कुमार रानी सुमिता साही अपनी सास रानी जनक नंदनी साही की मदद से राजपरिवार की पारंपरिक पाककला को संरक्षित करती आ रही हैं। नवरात्र और विजयदशमी पर तैयार होने वाले विशेष व्यंजनों के बारे में रानी सुमिता बताती हैं, ‘हमारे राजघराने में नौ दिन व्रत के दौरान सात्विक भोजन बनता है। अष्टमी वाले दिन देवी को बलि चढ़ाई जाती है, उस प्रसाद को नवमी को बिना प्याज-लहसुन के तैयार किया जाता है।

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