
सुना तो हंसी आई। बात ही ऐसी। मसला ही कुछ ऐसा। बहुत कोशिश की, कि हंसी रूक जाए। मगर नहीं रूकी। पहले तो आजू-बाजू वाले भी हैरत में पड़ गए। सुना तो वो भी ठहाके मारने से बाज नहीं आए। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
पहले बात हंसी की। वह भी हमले पर आई। शायद ऐसा पहली बार हो रहा होगा। जब किसी को हमले पर हंसी आई। वरना हमले के दृश्य। मंजर। सीन की बात ही ओर। हमले भी भांत-भांत के। कोई ये ना समझे कि हमले सिरफ धां….धूं… के लिए ही होते हैं। हमले खूनी। इस में दो पार्टियां आमने-सामने। ये पार्टियां दो देशों की हो सकती है। दो देशों की सेनाएं मोर्चे पर।
एक-दूसरे के सामने। दोनों तरफ की सेनाएं तैयार। तोप-तमंचे तैयार। हाथी-घोड़े तैयार। लाव-लश्कर तैयार। हवाई जहाज तैयार। पानी के जहाज तैयार। टैंक-मिसाइल तैयार। बम-गोले-हथगोले तैयार। हमला होते ही दृश्य परिवर्तन। जंग-ए-मैदान में बारूद-बंदूकों की गूंज। धमाके। इधर-उधर छितरी पड़ी लाशें। घायलों की कराह। मैदान खून से लाल। कोई नहीं कह सकता कि जंग कब तक चलेगी। खूनी जंग में जानें जाती है। कई लड़ाके शहीद होते है। कई लड़ाके हाथ-टांग या शरीर के अन्य अंग गंवा देते हैं।
खेल के मैदान में भी किसी जंग से कम नहीं। वहां भी खेल खलास होणे तक हमलों का दौर-दौरा चलता रहता है। फुटबॉल और हॉकी मैच के दौरान होते हमले रोंगटे खड़े करने वाले। कभी ये टीम उस टीम पर हमले की जुगत में। कभी उस टीम का इस टीम पर हमला। दोनों के एक-दूजे पे हमले। दे दनादन…। जो जीता वहीं सिकंदर। रणभूमि के अलावा इश्कियापुर भी हमलों का शिकार होता रहा है। कभी आशिक पर हमला। कभी माशूक का कत्ल। अब तो कीमत युद्ध। शीत युद्ध। बाजार युद्ध। पढाई युद्ध। नौकरी युद्ध। दाखिला युद्ध सरीखे वॉर हमलों की दूसरी सीढी के रूप में बदल रहे हैं। पहली सीढी हमला। दूसरी में यलगार…।
हमले घर-परिवार। गांव-गुवाड़ी। चौक-चौबारों में भी होते रहे हैं। भाई, भाई के सामने मंड जाए तो हमला। पड़ोसी, पड़ोसी से भिड़ जाए, तो हमले की तैयारी। ससुराल और पीहर पक्ष में तनातनी हो जाए, तो हमले की तैयारी। यार-दोस्तों में दीवार खड़ी हो जाए तो, हमले की नौबत। कुल मिला कर हम कह सकते हैं कि हमला कभी भी किसी भी पक्ष पर हो सकता है। आतंकवादी हमले पर यह आशंका सौ फीसदी खरी उतरती साबित होती है।
ये तो थी आदम जमात की बात। जानवरों और पंखेरूओं की चर्चा करे तो ये कौम भी हमलावर। एक-दूसरे पर वो हमले करती ही हैं। मानखों पर करने से भी बाज नहीं आती। आए दिन तेंदुओं और बाघों की कारस्तानी के बारे में पढने-सुनने को मिलता रहा है। कभी-कभार हाथी दादा भी ट्रेलर दिखा देते हैं। भालू और बंदर मामा की गुंडागर्दी भी चौड़े आ चुकी है। उन का उत्पात कम नहीं। मौका मिलते ही पंजा तैयार। ऐसे झरूंटिएं मारें कि अब्बा हुजूर याद जावें। गधे। घोड़े। ऊंट या सांड भी कम हमलावर नहीं। गाहे-बगाहे उन के हमलों का स्वाद भी आदम जात चख चुकी है। गधे-घोड़े की लात और ऊंट के बटके। सांड की भेंटी। हमले करने में कुत्ते भी पीछे नहीं। एक ट्रेलर में चौदह इंजेक्शन। चूहों की अपनी हमलावर नीति।
लेकिन हथाईबाज जिस हमले पर हंसे। वो डंकवानों का था। हमले पर हंसी। तो आगे की कार्रवाई पर ठहाके। बात ही कुछ ऐसी थी कि मन रोणे को हुआ। मगर रूलाई की जगह हंसाई फूट गई। हवा आई यूपी से। पिछले दिनों एक सियासी रैली में मधुमक्खियों ने हमला कर दिया था। आप तो जानते ही हैं कि डंकबाज मक्खियों का हमला कैसा होता है। मधु मक्खियों ने रैली में आए कई लोगों के थोबड़े सूजा दिए। जहां-जहां डंक मारा। वहां-वहां दाफड़ हो गए। रैली में एकबारगी जोरदार अफरा-तफरी मच गई।
हिसाब से तो बात आई-गई हो जाणी चाहिए। होती तो हंसी-ठट्ठा कैसे होता। हथाई कैसे लिखिजती। मधुमक्खी हमले के बाद की दास्तां हैरतनाक। रोमांच से भरपूर। कॉमेडी सर्कस की तरह। रैली के आयोजकों को उस हमले में किसी की साजिश नजर आई। विरोधियों का हाथ दिखाई दिया। हो सकता है किसी पारटी के नेते-कार्यकर्ता ने मधुमक्खियों के छत्ते पर पत्थर मार दिया हो। उनके हुकम की तामील हुई। पुलिस में भी मामला दर्ज हो गया। अब उसकी जांच की जा रही है। है ना, हंसी की बात?