
अब कई का रूख आराम की ओर तो कई की जुबान से ‘तांतो मिटियो की लहरियां फूटना तय। भतेरे कहेंगे- शांति हुई। कहीं से ‘नैछो हुओ उछलेगा। कई को दक्षिण की ओर जाना पड़ेगा। भले ही वो तनिक सुस्ताना चाहें पर नौकरी इजाजत नही देती। एक सरकारी नौकर और दूसरे नेताराम। उनकी जुबां पे-‘दक्षिण चलें हम..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
शर्तिया तौर पे तो नहीं, मगर दावा कर सकते है कि नाइनटी नाईन प्वाइंट नाईन परसेंट लोग ऊपर का पैरेग्राफ पढते ही समझ गए होंगे कि चप्पू किस दिशा में चल रहे हैं। कुछ लोगों को चप्पू की दिशा पर आपत्ति हो सकती है। इस पर कहा जा सकता है कि हौवे तो हौवे..। हम पहले ऐसा कर चुके हैं। भाई लोगों ने सिर्फ विरोध के लिए विरोध किया तो सब से पहले हमने उसका विरोध किया। हम कई काम सीधे-सवेें करते हैं तो कुछ गलत भी हो जाते है। गलती की अपनी धाराएं। गलती करना मानवीय प्रवृति है। हो जाती। गलती से मिस्टैक हो जाती है। बच्चे नादानी-डेढ हूशियारी, बुरी संगत और दिवानगी के कारण गलतियां करते रहे हैं। कर रहे हैं।
ठीक कर लें तो उन्हीं की सेहत के लिए ठीक रहेगा वरना जैसा चल रहा है , वैसा चलने दो। मासूम बच्चों की नादानी और ना समझी। किशोरों की अणूती हूशियारी और गलत सोहबत तथा युवकों की दिवानगी उनसे गलतियां करवा देती है। गलतियां होना स्वाभाविक है। काम करेंगे तो हो सकता है कुछ गलतियां हो जाएं। दूसरी वो गलती जो जानबूझकर कर की गई हो। यह गलत है। इसे गलती नही कहते। यह किसी को सताने-परेशान करने के लिए किया गया सूगला काम है। सरकारी कारिंदे कई बार ऐसी हरकतें जानबूझ के करते है। जो उनके के मुजब ना चले तो ऐसी देग चढती है कि हाथ जोडऩे पड़ते है। लल्ला-पुच्चू के अलावा अन्य खिदमत करनी पड़ती है। श्यामलाल के पापा का नाम चंपालाल और उन्होंने चंपक लाल बना दिया अब लगे रहो संशोधन करवाने में। तुम ने तो भूल चूक लेनी-देनी कह के छुट्टी कर ली अगली पारटी को कितनी परेशानी हुई अथवा होगी या कि भविष्य में अवश्यंभावी हैं, वही जानती है।
हमने चप्पू लिख कर गलती नही कि जबकि उनका यह कहना कि इसकी जगह नाव होनी चाहिए भी। अरे भाई नाव उसी दिशा में बहती है जिस दिशा में चप्पू चलेंगे। चप्पू चलेंगे तभी तो नाव चलेगी। इस बावजूद किसी को तसल्ली नही, तो उसकी तसल्ली के लिए हम वही किए देते हैं, जो वह चाहते हैं। तो यूं कह दें कि समझने वाले समझ गए होंगे कि नाव किस दिशा में जा रही है। हमने उनकी बात मानी अब उन्हें भी मानना पड़ेगा कि नाव उसी दिशा में बढ रही है-जिस दिशा में चप्पू बढाना चाहते हैं।
कुल जमा समझ मे आ गया कि कौन , क्या कहना चाहता है। तांतों मिटियो से लेकर दक्षिण चलें हम..पर पत्रवाचन तैयार। इशारा मिलते ही रिडिंग शुरू। इसकी जरूरत इसलिए नही कि ‘शांति हुई-नैछो हुओ सरीखे शब्द निकालने पड़ रहे है। इसके अपने कारण है। आम दिनों में हम सब शांति और सद्भाव कायम रहने की कामना करते रहे है। ‘नैछो हुओ भी शांति के ऐडे-नेड़े यानी कि तसल्ली हुई। वरना मांगीलालों ने तंग कर के रख दिया था।
शहरवासी पिछले हफ्ते-दस दिन से शांति और तसल्ली के साथ कोई भी काम नही कर पा रहे थे। यहां तक कि नित्य कर्म में भी बाधाएं। महिलाएं तो इतनी दुखी हो गई कि दरवाजे पर लगी घंटी का खटका बंद कर दिया। कई महिलाओं को मुख्य द्वार पे ताला लगा के पीछे या साइड वाले दरवाजे से भीतर जाकर अपने कामों में लगना पड़ा। चैन से चाय पीना दुश्वार। रोटी खाना मुहाल। नहाना-धोना तक कजा हो गया। सुबह होते ही वोटो के मांगणियार आने शुरू होते और रात पड़े तक आगमन जारी रहता। कभी पंजे वाला आया तो कभी कमल वाला। निर्दलीय भी कम नहीं। कई तो अपने चुनाव चिन्ह के साथ धमक जाते। बल्ले वाला बल्ले के साथ और गुब्बारे वाला गुब्बारे के साथ। किसी के ठेले पर रसोई गैस का खाली सिलेंडर तो किसी के गले में कैमरा लटका हुआ। हर प्रत्याशी के अपने लटके। प्रत्याशियों के समर्थकों के अपने झटके।
अब आधे शहर में शांति। शहरपनाह एकदम शांत। नगर निगम उत्तरी जोन के वोट पडऩे के बाद सब कुछ ठहर सा गया। प्रत्याशी थाकेला उतारेंगे। लोग कहते हैं तांतों मिटियो.. ‘नैछो हुओ। पर पार्टियों से बंधे नेतों को कहा शांति। पुलिस और प्रशासन के मुनीम गुमास्तों को कहां शांति। अब सब के सब दक्षिण की ओर, जहां एक नवंबर को वोट पडऩे हैं। जिन्हें सुस्ताना है-सुस्ताएंगे। जिन्हें थाकेला उतारना है-उतारेंगे। जो लोग दक्षिण की ओर कूच करने हैं उन पर शीर्षक रूपी नारा जोरदार फबेगा।