सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति से जीवन हो सकता है अच्छा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

जलतेदीप विसं, बायड (अरवल्ली)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के संग बुधवार को प्रात:काल की मंगल बेला में सवेला से अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए और लगभग दस किलोमीटर का विहार कर बायड में पधारे तो बायडवासियों ने मानवता के मसीहा आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री बायड के श्री एन.एच. शाह हाईस्कूल परिसर में पधारे। स्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालु जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य का जीवन शांतिमय, समाधिमय, पवित्र और सदाचारयुक्त हो। भले वह गृहस्थ हो तो भी कदाचार, भ्रष्टाचार, अत्याचार से युक्त जीवन नहीं होना चाहिए। सदाचार से युक्त जीवन होना चाहिए। अणुव्रत आन्दोलन की आचार संहिता के छोटे-छोटे नियम गृहस्थ जीवन में रहते हैं तो गृहस्थ जीवन भी अच्छा रह सकता है। आदमी का विचार और आचार अच्छा होना चाहिए। आस्था व विचार के अनुसार आदमी अपने आचार को बना सकता है। विचारधारा, सिद्धांत ही गलत हो तो आचरण भी गलत ही हो सकता है।

इसलिए जीवन में सद्विचार, सम्यक् दर्शन आदि बहुत महत्त्व है। अणुव्रत आन्दोलन के संकल्प सदाचारी जीवन के बहुत उपयोगी हो सकती हैं। अति संक्षेप में बात करें तो तीन बातें सदाचार की दृष्टि से बहुत अच्छी हैं-सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति। सद्भावना अर्थात् जाति, संप्रदाय, वर्ग, पार्टी आदि को लेकर आपस में हिंसा, वैर-विरोध नहीं, सबके प्रति सद्भावना, मैत्री भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। दूसरी बात बताई गई-नैतिकता। आदमी घर, परिवार, बाजार, व्यापार कहीं भी हो, अपने भीतर ईमानदारी, नैतिकता, निष्ठा आदि रखने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो, पारदृश्यता रखने का प्रयास करना चाहिए।  तीसरी बात है-नशामुक्ति। शराब, सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, खैनी आदि से बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन नशामुक्त रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए। जो भी अहितकर नशा है, उसके सेवन से आदमी को विरत रहने का प्रयास करना चाहिए। कई बार आदमी जानकर भी लत लगने के कारण नशा करने लगता है। फिर उसे छोड़ना मुश्किल भी हो सकता है। इसलिए बचपन से ही जागरूकता आ जाए कि खराब आदत अथवा नशे की आदत पड़े ही नहीं। जहां तक संभव हो, नशा से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।

ध्यान-साधना के द्वारा भी आदमी अपने नशे को कम कर सकता है। आचार्यश्री तुलसी ने इसकी प्रेरणा दी। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान आदि के द्वारा भी नशे को कम करने का प्रयास करना चाहिए। सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति ऐसे संकल्प हैं, जिसके माध्यम से आदमी का जीवन काफी अच्छा बन सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में संयोजक श्री विशाल पितलिया, तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती गुणवंती पितलिया, सुश्री महक बोहरा, सुश्री किंजल दोसर, श्री मंथन बोहरा, स्कूल के ट्रस्टी श्री वीनूभाई पटेल व श्री अर्हम माण्डोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया।