कुपोषण अब सिर्फ कमजोरी की निशानी नहीं, बल्कि मोटापे और डायबिटीज जैसे गंभीर रोगों का बड़ा कारण बनता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पोषण की कमी और खराब खानपान मिलकर एक ‘साइलेंट हेल्थ क्राइसिस’ को जन्म दे रहे हैं, जिससे बच्चों और युवाओं में बीमारियों का खतरा दोगुना हो गया है।
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कुपोषण से मोटापा: पोषण की कमी अब सिर्फ दुबलापन नहीं, मोटापे की वजह भी बन रही है।
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डायबिटीज का खतरा बढ़ा: कुपोषण के कारण शरीर में मेटाबॉलिज्म गड़बड़ा रहा है, जिससे डायबिटीज का खतरा दोगुना।
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बच्चों पर असर: कुपोषित मांओं के बच्चों में मोटापे की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
जब भी ‘कुपोषण’ शब्द आता है, ज़हन में एक कमजोर और दुबला-पतला इंसान दिखाई देता है। लेकिन अब वक्त बदल चुका है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यही कुपोषण आज मोटापा और डायबिटीज जैसे गंभीर रोगों की नींव बन चुका है। यानी अब कमजोर दिखने वाला ही बीमार नहीं, बल्कि मोटा व्यक्ति भी कुपोषित हो सकता है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि 2025 तक स्कूल जाने वाले बच्चों में मोटापे की समस्या पहली बार कम वजन से भी बड़ी बन गई है। इसका मतलब है कि हम बच्चों को खिलाने के नाम पर जो भी दे रहे हैं, उसमें पोषण नहीं, बल्कि खाली कैलोरी हैं — जो धीरे-धीरे उनकी सेहत को खा रही हैं।
डॉ. राजीव जयादेवन बताते हैं कि अक्सर गरीब और कम जागरूक लोग सस्ते खाद्य पदार्थों का चयन करते हैं, जैसे तले हुए स्नैक्स, शुगर ड्रिंक्स और पैक्ड फूड — जो स्वाद में अच्छे लेकिन पोषण में शून्य होते हैं। यही चीजें शरीर में फैट जमा करती हैं, मेटाबॉलिज्म को गड़बड़ करती हैं और मोटापा बढ़ाती हैं।
‘सेल मेटाबॉलिज्म’ नामक जर्नल में छपी एक स्टडी में बताया गया कि चूहों की 50 पीढ़ियों पर किए गए रिसर्च में यह सामने आया कि कुपोषण सिर्फ तत्काल नहीं, बल्कि पीढ़ियों तक असर करता है। यानी कुपोषित माता-पिता की संतानें भी मेटाबॉलिक बीमारियों से ग्रस्त हो सकती हैं।
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शिव नादर यूनिवर्सिटी के डीन डॉ. संजीव गालांडे का कहना है कि इसे ‘डबल बर्डन ऑफ मालन्यूट्रिशन’ कहा जाता है। मतलब एक ही शरीर में पोषण की कमी और फैट की अधिकता — दोनों एकसाथ मौजूद होते हैं। और जब ऐसे व्यक्ति को बाद में भरपूर खाना और आराम वाली लाइफस्टाइल मिलती है, तो वह मोटापे, डायबिटीज और हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों का शिकार हो जाता है।
खासतौर पर बच्चों में यह खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पोषक तत्वों की जगह अगर उन्हें सिर्फ पैकेट वाला खाना और सोडा मिलेगा, तो उनकी सेहत नहीं, बीमारियां पनपेंगी। ऐसे में माता-पिता, स्कूल और सरकार — तीनों को मिलकर कदम उठाने होंगे, वरना अगली पीढ़ी की सेहत एक स्थायी संकट बन सकती है।