
शीर्षक के आगे छोड़ी गई खाली जगह को भरने का जिम्मा आप का। हमें नही लगता कि कोई बंदा इसमें असफल रहेगा। कई तो छपाक से भर देंगे। खटाक से भर देंगे। पलक झपकते ही खाली स्थान भरा हुआ मिल जाएगा। इसका मतलब यह नही कि सब को उनके हाल पे छोड़ दिया जाए। अचकच निवारण के लिए हम हैं ना। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
पहले रहते यूं तो…! के आगे जो खाली स्थान छूटा हुआ है। छूटा हुआ नही बल्कि जानबूझ के छोड़ा गया है। छूट जाना और छोड़ देना के बीच खासा फासला है। परीक्षा के दौरान बावजक्त ये दोनों ‘छछै आड़े आ जाते हैं। समयाभाव के कारण कई बार परीक्षा में सवाल छूट जाता है। ये कर लिया..। वो कर लिया..। यह कर लेंगे..। वो हो जाएगा..। इस के फेर में इक्का-दुक्का सवाल छूट जाते हैं। ऐसा होने पर पढोकड़े विद्यार्थियों को मलाल होता है, हम जैसों को परवाइज नहीं। छूट गया तो छूट गया। पासिंग माक्र्स तो आ जाएंगे। मेरिट में हमारे पुरखे भी नहीं आए जो हम से कोई उम्मीद रखे। हम ने सपलीमेंटरी आने पर मिठाई बांटी और कपलीमेंटरी में पास होने पर दोस्तों को पार्टी दी थी। इसी प्रकार छोड़ देना के तार भी उससे मिलते-जुलते। पढोकड़े विद्यार्थी धड़ाधड़ प्रश्न हल कर लेते हैं, बाज वक्त समय का ध्यान नही रहता और एकाध प्रश्न छोड़ देते हैं।
हम जैसों के लिए भावे ‘इ अंगूर खट्टे वाली स्थिति। जब सवालों का जवाब ही नही आता तो हल करना नामुमकिन, ऐसे में दो चारेक सवाल छोड़ देना मजबूरी बाकी के जस-जस कर लिए। कुछ के जवाब आते थे-कुछ टीपटाप के कर लिए। छूट गए और छोड़ दिए का नाता सीधे तौर मे खाली स्थानों से ही जुड़ा हुआ। हिन्दी द्वितीय की परीक्षा में ऐसे सवाल आना आम है। अब की तो पता नही, हमारे बखत में निबंध-प्रार्थना-पत्र-विलोम शब्द-पर्यायवाची शब्द और रिक्त स्थानों की पूर्ति करो सरीखे सवाल अनिवार्य रूप से परोसे जाते। गाय-मेरा गांव-मेरी स्कूल और माता-पिता पर लिखे लेख आज भी याद हैं। धनजी माट्साब हमें हिंदी पढाया करते थे।
उन्होंने ऐसे रट्टे मरवाए जिन्हें भूल पाना नामुमकिन। खाली जगह भरो उन्ही में से एक। रिक्त स्थान में-‘तबले जाते-क्यूं..भरा तो पूरा वाक्य हो गया- पहले रहते यूं, तो तबले जाते क्यूं..। तबला-पेटी किस के गए। कहां गए। कौन ले गया। क्यूं ले गया। कब गए इसका तो पता नही, अलबत्ता यह कहावत मुद्दत से कही-सुनी जा रही है और मुद्दत तक कही-सुनी जाती रहेंगी। इसकी शुरूआत कब हुई। किसने की। किस प्रसंग पे की। इसकी तो खैरखबर नहीं मगर इतना जरूर है कि हर कहावत की तरह इसमें भी तीर है। इसमें भी तंज है। इसमें भी कटाक्ष है। सयानों ने कहावतें शायद इसीलिए घड़ी ताकि उसके तंज से सामने वाले की तूती-बोलती बंद हो जाए। सवाल ये कि पहले रहते यूं.. कहावत को घडऩे वालों ने तबलों को ही क्यूं चुना। अपने यहां भतेरे साज हैं। मृदंग है। ढोलक है। इकतारा है। जीजे-मजीरे हैं। पेटीबाजा है। खड़ताल है। इन सब को छोड़ कर तबलों को चुनने के पीछे हो सकता है, कोई खास वजह रही हो। अपन को फिलहाल उसमें नही पडऩा। हमारा कहना सिर्फ इतना कि एक बार घरबंदी के बाद सचेत हो जाते तो फिर से यह दिन नही देखने पड़ते।
हथाईबाजों का इशारा जोधपुर में लगे दो दिन के लॉकडाउन की ओर। यहां शुक्रवार की रात दस बजे से एक बार फिर घरबंदी लागू कर दी गई जो सोमवार की तड़के पांच बजे तक जारी रहेगी। इसके माने हमें दो दिन और दो रात घरों में बंद होकर रहना पड़ेगा। जोधपुर में बढते कोरोना संक्रमण के आंकडों के कारण जिला प्रशासन को यह फैसला लेना पड़ा। हमें याद है वो दिन जब पांच-पच्चीस संक्रमितों ने सामने आने पर आखा शहर बैचेन हो जाया करता था और आज हालात ये कि रोज सैकडों मरीज सामने आ रहे हैं और हमें परवाह ‘ इज नही। हथाईबाजों ने भतेरा समझाया। रे भाई, चेत जाओ। मास्क लगाओ।
देह दूरी रखो। टेम-टेम पे हाथ धोते रहो। सेनेटाइजर का प्रयोग करो। भीड़-भड़क्के से दूर रहो। घर का खाना आरोघो। बाहरी-चट्टा चाटने से बचो। जरूरत हो तभी बाहर निकलो। शासन ने चेताया। प्रशासन ने जगाया। सेवाभावी संस्थाओं ने जनता कफ्र्यू का आह्वान किया मगर हम नही माने। हम ने लापरवाहियां जारी रखी। बेपरवाहियों का लबादा नही उतारा। इस बीच हमने अपने कई लोगों को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। हम पहले लगाए करीब ढाई माह का लॉकडाउन को भूल गए। हमें अपनी बेपरवाहियों के कारण एक बार फिर घरों में कैद होना पड़ रहा है। तो-‘पहले रहते यूं.. तो तबले जाते क्यूं.. वाली कहावत याद आई।