
कुचामन सिटी। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज धर्मसभा में कहा कि कोई आदमी किसी न किसी की शरण में जाता है तो यह कार्य उसकी कमजोरी को प्रदर्शित करता है। जो सक्षम हो, बलवान हो, समर्थ हो वह भला दूसरों की शरण क्यों ले? एक दृष्टिकोण से किसी को शरण देना, सहयोग देना सेवा का कार्य है। फिर भी आदमी को यह विवेक रखना चाहिए कि वह किस तत्त्व की शरण ले रहा है।
आदमी के जीवन में परस्पर सहयोग के आदान-प्रदान की अपेक्षा होती है। बिना एक-दूसरे के सहयोग के इस जगत का चलना असंभव-सा है। जिस प्रकार माता-पिता का सहयोग उसके बालक को प्राप्त होता है तो दूसरी ओर कभी संतान अपनी माता-पिता को सहयोग प्रदान करता है। गुरु अपने शिष्य को ज्ञान का सहयोग प्रदान करता है तो शिष्य गुरु के अर्थार्जन में सहयोग करता है। आदमी को एक-दूसरे का सहयोग, सेवा करने की निष्काम, निस्पृह भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु-संत भी आध्यात्मिक रूप से किसी को ज्ञान का सहयोग प्रदान त्याग, तपस्या, और आत्म कल्याण की दिशा में मोड़ते हैं, वह भी बहुत बड़ी सेवा की बात हो सकती है। आदमी का कोई बंधु, मित्र त्राण नहीं बन सकता, इसलिए आदमी को धर्म की शरण लेने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि हम तेरापंथ की राजधानी लाडनूं की ओर जा रहे हैं। जहां से तेरापंथ धर्मसंघ को आचार्य तुलसी जैसे महान संत मिले, जिन्होंने कितनी लम्बी-लम्बी यात्राएं कीं। लाडनूं मानों धर्म नगरी है। पूरे राजस्थान में धर्म और ज्ञान की गंगा प्रवाहित होती रहे। हमारा इस विद्यालय में आना हुआ है। इस विद्यालय में भी नैतिकता का द्योत होता रहे।
आचार्यश्री के आगमन से आह्लादित स्कूल की डायरेक्टर सारिका चौधरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी का हमारे विद्यालय में पधारना हमारे जीवन की सर्वोपरि सुअवसर है, जिसका प्रभाव पूरे जीवन बना रहेगा। हम आपके दर्शन कर धन्य हो गए। आचार्यजी! आपके प्रवचन से जो जीवनोपयोगी शिक्षा प्राप्त हो रही है, वह हम सभी का कल्याण करने वाली है। आपकी इस शिक्षा की आवश्यकता आज है शैक्षणिक संस्थान को है। मेरा तो कहना है कि आपश्री जैसे संतों का नियमित रूप से इस स्कूल में आगमन होता रहे, ताकि हमारे विद्यार्थियों में ऐसी धार्मिक चेतना का विकास हो, ताकि उनके जीवन का सर्वांगीण विकास हो सके। आपकी अहिंसा यात्रा मंगलमय हो। मैं एकबार पुन: आपश्री व आपकी अहिंसा यात्रा का अपना स्कूल परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागत करती हूं।