मेधा पाटकर को पांच माह की कैद, 10 लाख रुपए का जुर्माना

मेधा पाटकर
मेधा पाटकर

दिल्ली की साकेत कोर्ट ने मानहानि मामले में मेधा पाटकर को सुनाई सजा

नई दिल्ली। दिल्ली के साकेत कोर्ट ने दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दाखिल मानहानि मामले में दोषी करार मेधा पाटकर को पांच महीने कैद की सजा सुनाई है। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को जुर्माना की रकम दस लाख रुपए का भुगतान वीके सक्सेना को करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने सजा को 30 दिनों तक निलंबित रखा

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अधिकतम सजा दो साल की होती है, लेकिन पाटकर के स्वास्थ्य को देखते हुए पांच महीने की सजा दी जाती है। कोर्ट ने इस सजा को 30 दिनों तक निलंबित रखने का भी आदेश दिया। कोर्ट ने 7 जून को सजा की अवधि पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। 30 मई को शिकायतकर्ता वीके सक्सेना की ओर से पेश वकील ने पाटकर को अधिकतम सजा देने की मांग की थी। भारतीय दंड संहिता में आपराधिक मानहानि के मामले में अधिकतम दो साल की कैद की सजा का प्रावधान है।

कोर्ट ने कहा था: पाटकर ने सिर्फ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए आरोप लगाए

साकेत कोर्ट ने 24 मई को पाटकर को दोषी करार दिया था। कोर्ट ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दोषी करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये साफ हो गया है कि आरोपित मेधा पाटकर ने सिर्फ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ गलत जानकारी के साथ आरोप लगाए।

मेधा पाटकर ने यह लगाए थे आरोप

पाटकर ने 25 नवंबर, 2000 को अंग्रेजी में एक बयान जारी कर वीके सक्सेना पर हवाला के जरिए लेनदेन का आरोप लगाया था और उन्हें कायर कहा था। पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे। ऐसा बयान वीके सक्सेना की ईमानदारी पर सीधा-सीधा हमला था।

मेधा पाटकर ने कोर्ट में कहा था: सक्सेना ने 2002 में किया था शारीरिक हमला

पाटकर ने कोर्ट में दर्ज अपने बचाव में कहा था कि वीके सक्सेना वर्ष 2000 से झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं। पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना ने 2002 में उन पर शारीरिक हमला भी किया था, जिसके बाद मेधा ने अहमदाबाद में एफआईआर दर्ज कराई थी। मेधा ने कोर्ट में कहा था कि वीके सक्सेना कॉरपोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और वे सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों की मांग के खिलाफ थे।

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