राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए कौंसल जनरल को प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा

निशांत गर्ग, अंतर्राष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी, और राजेंद्र बाफऩा न्यूयॉर्क में कौंसिल जनरल रणधीर जायसवाल को राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता हेतु ज्ञापन सौंपते हुए

अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी कुछ गणमान्यों सहित न्यूयॉर्क स्थित भारतीय कौन्सिलावास में कौंसल जनरल रणधीर जायसवाल से मिले

अमेरिका से भारतीय भाषाओं के प्रोफेसर दलपत सिंह राजपुरोहित ने बताया कि राजस्थान दिवस के उपलक्ष में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रेम भंडारी कुछ गणमान्यों सहित न्यूयॉर्क स्थित भारतीय कौन्सिलावास में कौंसल जनरल रणधीर जायसवाल से मिले।

उन्होंने कौंसल जनरल के माध्यम से भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में मान्यता दिलवाने हेतु ज्ञापन सौंपा। राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए राजस्थान के नागरिक और विदेशों में बसा प्रवासी समुदाय एक बार फिर जोर-शोर से माँग उठा रहा है।

ज्ञापन के द्वारा प्रेम भंडारी ने एक बार फिर भारत के गृह मंत्री के विचारार्थ यह प्रस्ताव रखा कि 25 अगस्त 2003 को राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता हेतु राजस्थान विधानसभा के लिए गए सर्वसम्मत संकल्प को केंद्र सरकार को भेजे हुए बहुत समय हो गया है, और केंद्र सरकार को उस प्रस्ताव पर जल्द ही फैसला लेना चाहिए। पत्र में इस बात को रेखांकित किया गया कि राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए रिजर्व बैंक या संघ लोक सेवा आयोग की अनुमति जैसी कोई तकनीकी अड़चन अब नहीं रह गई है। करोड़ों राजस्थानियों की मातृभाषा होने के साथ-साथ राजस्थानी एक हजार साल पुरानी भाषा है और यह दशकों से संविधान में अपनी पहचान बनाने के लिए लड़ रही है।

गृह मंत्री के विचारार्थ सौंपे इस निवेदन पत्र में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर एक बार फिर से ध्यान दिलाया गया है। जैसे राजस्थानी इतनी समृद्ध भाषा है कि करीब दो लाख से अधिक शब्दों का इसका शब्दकोष प्रकाशित हो चुका है। राजस्थानी की लिपि देवनागरी है, जो भारत की सबसे पुरानी लिपियों में से एक है। संस्कृत, मराठी, नेपाली सहित अनेक बड़ी भाषाएँ इसी लिपि में लिखी जाती हैं जो देवनागरी लिपि की विस्तृत स्वीकृति को दर्शाता है। भारत की सबसे बड़ी अकादमिक संस्थायें ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और ‘साहित्य अकादमी दोनों राजस्थानी को एक स्वतन्त्र भाषा मान चुकी हैं।

देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में राजस्थानी साहित्य पर शोध हो रहा है और पीएचडी की डिग्रियाँ दी जा रही है। ‘राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति अकादमी व ‘राजस्थानी संगीत नाटक अकादमी पिछले चार दशकों से कार्यरत हैं। देश-विदेश में राजस्थानी भाषा में रची-बसी राजस्थानी लोक-संस्कृति पर कई कार्यक्रम हो रहे हैं। अमेरिका सहित दुनिया भर में फैली ‘लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस में भी राजस्थानी एक भाषा के रूप में दर्ज है।

इतनी समृद्ध भाषा होते हुए भी राजस्थानी आज तक संवैधानिक मान्यता की प्रतीक्षा कर रही है। राजस्थानी को कई बोलियों का समुच्चय कहकर अक्सर इसकी बोलीगत विविधता को व्यर्थ ही तूल दिया जाता रहा है। जबकि हिंदी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तमिल आदि अनेक भाषाओं की भी अपनी बोलियाँ रही हैं और ये भाषाएँ कब की संवैधानिक मान्यता पा चुकी हैं। राजस्थानी को मान्यता मिलने से इसकी सभी बोलियों को मान्यता मिलेगी।

राजस्थानी भाषा की मान्यता का सवाल राजस्थान के युवाओं के भविष्य से जुड़ा है। इस भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने से ढ्ढ्रस् परीक्षा के अलावा संघ लोकसेवा आयोग की अनेक भर्तियों में राजस्थान के युवा-वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। राजस्थानी भाषा और साहित्य का विकास होगा और उसमें शोध की सम्भावनाएँ और बढ़ेगी।

सबसे अहम बात यह होगी कि संवैधानिक मान्यता से भारत की एक पुरानी, समृद्ध और विकसित भाषा सुरक्षित हो सकेगी। इसलिये प्रेम भंडारी सहित अन्य प्रवासी गणमान्यों ने केंद्र सरकार से यह निवेदन किया कि वे राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता देने का ऐतिहासिक और पुनीत कार्य करें। तथा भारत सहित दुनिया भर में फैले राजस्थानी प्रवासी समुदाय को कृतार्थ करें।

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