विधायक जी बाड़े में

होता है.. कभी-कभी ऐसा भी होता है। होता है.. कभी-कभी वैसा भी होता है। लोग मजाक समझते हैं। लोग व्यंग्य समझते हैं। लोग समझते हैं कि सामने वाला ताने मार रहा है या तंज कस रहा है-लेकिन उसके पीछे सवा सौ फीसदी हकीकत नजर आती है। अब फेहरिस्त बढ रही है। पहले उसमें तेल था अब बाड़ा भी जुड़ गया। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

ऐसा होता है-वैसा होता है के माने यह नहीं कि तुम होती तो अइसा होता.. तुम होती तो वइसा होता। भाई, यह अइसा-वइसा रील वाला हैं रियल लाइफ में कोई यह दावा नही कर सकता कि ऐसा ही होगा या वैसा ही होगा। लग जाए तो तीर नितर तुक्का। ऐसा होना नया नही है। भविष्यवेता और मौसम पंडित इन की सबसे बडी मिसालें। सियासी पंडित भी खुद को किसी से कम नहीं आंकते। हमने लॉकडाउन काल में अखबारों में छपने वाले राशि फलों का वाचन बड़े गौर से किया। एक फोरी सर्वे के अनुसार करीब 60-65 प्रतिशत पाठक अखबार खोलते ही सबसे पहले अपनी राशि पढते है। यह जरूरी नही कि मराज ने जो कह दिया वो फुल एंड फाइनल हो। एक राशि के करोड़ों लोग, उनमें से हजार-दो हजार पर भविष्यवाणी सही साबित हो जाए तो कोई चमत्कार नही। ऐसे टोरे तो हम भी मार सकते हैं। इसके बावजूद लोगों में एक धारणा बनी हुई है। हम उनकी धारणा- भावना का सम्मान करते हैं। साथ ही यह आग्रह भी कि विश्वास और अंधविश्वास में फरक महसूस करना सीखो, इसमें सब की भलाई है।

हम जानते हैं कि कई लोग अपने दिन की शुरूआत राशि पढने के बाद करते हैं। उनके वास्ते यह विश्वास हो सकता है, हमारे लिए अंधविश्वास। इसकी पुष्टि लॉकडाउन काल में और ज्यादा पुख्ता हो गई। ऐसा नही कि हम-आप ने कभी अपनी राशि का वाचन ना किया हो। किया, अवश्य किया। हमने किया-आप ने किया। आप की आप जाणो, हम ने तो उसके अनुसार काम का बिस्मिल्लाह नहीं किया। हम लकीर के फकीर ना कभी बने, ना बनेंगे। लॉकडाउन के दौरान पूरा देश घरों में दुबका था। बाजार बंद। ऑफिस बंद। रेलें-बसें बंद। नगरीय परिवहन सेवा बंद। टैक्सी-टैम्पो बंद। दुकानें बंद।

कल-कारखाने बंद। चारों ओर बंद ही बंद और राशि ने फरमाया-‘विदेश जाने के योग है। अरे यार यहां सिटी बसें तकातक बंद है और मराज हवाई जहाज से विदेश जाने के योग बता रिए हैं। एक बार राशि आई-‘कीमती वस्तु खरीदेंगे। यहां गुटका नहीं मिल रहा है और मराज हीरे-मोती की खरीद का योग बता रहे हैं। उनके मुंह में घी-गुड़। उनकी लिखाई स्वर्ण अक्षरों में। पता नही उनकी भविष्यवाणी कब सही साबित हो जाए मगर जिस काल-परिस्थिति में उन्होंने राशि परोसी उसका सच्चाई के साथ अवैध संबंध भी नहीं। सामान्य दिनों में भले ही लाखों-करोड़ों की राशि पांच-पच्चीस पर खरी उतर जाए। इसी प्रकार मौसम विज्ञानी जबरदस्त बारिश की चेतावनी देते हैं पर कहीं छांटे भी नहीं पडते। सियासी पंडित फलां की जीत का दावा करते है, उसकी जमानत भी नही बचती। कुल जमा तेल देखो और तेल की धार देखो।

तेल की बात पर व्यंग्य-तंज याद आ गया। अपने यहां ‘तेल लेणे गए को उपहास के रूप में लिया जाता है। फलाण जी कहां गए। तेल लेणे। इसके तार तंज गुस्से और व्यंग्य से जुड़े हुए। यदि मांगीलाल जी वाकई में तेल लेणे गए हों और पीछे से कोई उन्हें पूछने आ जाए तो जवाब मिलेगा-‘काकोसा तेल लेणे गए हैं। इस सच्चाई को भी तंज-व्यंग्य के रूप में ले लिया जाता है। अब उसमें बाड़ा भी जुड गया। बाड़े के बारे में सुनकर भांत-भांत के बाड़े आंखों के सामने घूम जाते हैं। गायों के बाडे। भैंसों के बाड़े। पशुओं के बाड़े। और कोई रह गया हो तो आप जोड़ लेना। किसी ने सोचा भी नही था कि आदरणीय विधायकों के लिए भी बाड़े सज जाएंगे। बाड़ा तो बाड़ा है। तबेला है तो बाड़ा है। फाइव स्टार होटल है तो बाडा है। बाड़ा के माने क्या-जहां बंद किया जाए वो बाड़ा। बाड़ा के माने क्या-जहां रखा जाए वो बाड़ा। कई शहरों में जातिगत बाड़े-पाए जाते हं। जहां फलां कौम-जात का बाहुल्य वहां उसका बाड़ा।
राजस्थान में इन दिनों ‘बाड़ा-बाड़ा.. खेल जोरों पर है। एक बाड़ा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का-दूसरा पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का। इनके बाड़े में इत्ते विधायक-उनके बाड़े में उत्ते। वो भले ही फाइव-सेवन-नाईन-इलेवन स्टार्स सुविधाओं में डूबे हुए हों। भले ही वो वहां मलगोजे मार रहे हों। भले ही वो वहां ऐश-मस्ती कर रहे हों। ठप्पा तो बाड़े का। ऐसे में कोई उन के घर जाकर पूछे-विधायक जी है क्या। तो क्या जवाब मिलेगा। जवाब देने वाला सच्चा हुआ। जवाब देने वाला खरा हुआ। जवाब देने वाला मासूम हुआ तो कही कहेगा-‘साब/मैडम तो बाड़े में है।
पूछने वाले सोच में। समस्या लेकर जाने वाला सकते मे। हमने तो उन्हें विधानसभा में भेजा था और वो बाड़े में चले गए। वाह री सियासत..। वाह री राजनीति..। वाह रे विधायक..।