एआई से मीडिया में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी लेकिन गुणवत्ता में आएगा निखार: यशवंत व्यास

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भोपाल। एआई एक अच्छा साथी या सेवक हो सकता है। इसका मुकाबला ईमानदारी जैसे गुणों से किया जा सकता है। एआई से घबराने की कोई जरूरत नहीं। प्रिंट मीडिया को एआई से बहुत फायदा होगा। एआई के इस दौर में हाइपर लोकल दुनिया बहुत महत्वपूर्ण है, इससे भविष्य में प्रिंट मीडिया में फील्ड रिर्पोटिंग के जॉब्स बढ़ेंगे। उक्त बातें एमसीयू के सत्रारंभ कार्यक्रम ‘अभ्युदय’ के दूसरे दिन के पहले सत्र में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक यशवंत व्यास ने कही। वे बतौर मुख्य वक्ता ‘एआई के दौर में प्रिंट मीडिया’ विषय पर व्‍याख्‍यान दे रहे थे।

एमसीयू के सत्रारंभ कार्यक्रम के दूसरे दिन आज विभिन्‍न सत्रों में वरिष्‍ठ पत्रकार यशवंत व्‍यास, वरिष्‍ठ रेडियो उद्घोषक कमल शर्मा, जनसम्‍पर्क विशेषज्ञ डॉ. समीर कपूर, संस्‍कृतिधर्मी डॉ. सच्चिदानंद जोशी, पद्मश्री विजयदत्‍त श्रीधर एवं वरिष्‍ठ पत्रकार एवं उद्घोषक विनय उपाध्‍याय के व्‍याख्‍यान हुए। प्रारंभिक सत्र में बोलते हुए यशवंत व्‍यास ने कहा कि आधुनिक तकनीक और मानव सभ्यता के विकास में इंटेलिजेंस कोसेंट, फिजिकल कोसेंट, इमोशनल कोसेंट और स्प्रिचुअल कोसेंट जैसे मानवीय गुणों के संदर्भों में कहा कि मशीनें या तकनीक मानव का मुकाबला नहीं कर सकतीं। यह बात जरूर है कि हमारे कई कामों जैसे कि श्रम वाले क्षेत्रों में तकनीक का दखल बढ़ा है। बहुत हद तक आईक्यू आधारित काम में भी इसका समावेश बढ़ रहा है। लेकिन अभी भी मानवीय गुण बहुत बुनियादी हैं और एआई जैसी तकनीकें इसका मुकाबला नहीं कर सकती हैं। प्रिंट मीडिया में इन्हीं मानवीय गुणों जैसी प्रीमियम वैल्यू पैदा करनी होगी।

सूचनाओं की दुनिया में मीडिया को विश्वसनीयता को बढ़ाना होगा। श्री व्यास ने एमसीयू में पत्रकारिता के इतिहास पर केंद्रित प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के ऐतिहासिक घटनाओं के कवरेज के प्रथम पन्नों की गैलरी की प्रशंसा भी की।इस अवसर पर स्वागत भाषण में कुलगुरू श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि पत्रकारिता खासकर प्रिंट मीडिया की पत्रकारिता बहुत विशिष्ट रही है। बहुत से समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने इस क्षेत्र में मानदंड स्थापित किए हैं। अपने पत्रकारीय जीवन के अनुभवों को साझा किया और बताया कि किस तरह प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने उनके लेखन में अहम भूमिका का निर्वाह किया है।

‘आवाज की दुनिया’ विषय पर अपने विचार रखते हुए प्रख्‍यात रेडियो उद्घोषक श्री कमल शर्मा ने कहा कि शब्‍द ‘बम’ का काम भी करते हैं और ‘मरहम’ का भी। अच्‍छा बोलना चाहते हैं तो अच्‍छा सुनना सीखिये। शब्‍द उदास भी करते हैं और शब्‍दों में वह ताकत भी होती है जो खुशी से भर दे। शब्‍द ब्रम्‍ह भी है जिसकी हम प्राण प्रतिष्‍ठा करते हैं। अच्‍छी भाषा के साथ अच्‍छा बोलने का संस्‍कार ही उद्घोषक को सफल बनाते हैं। उन्होंने कहा कि शब्द की प्राण प्रतिष्ठा वाणी से ही होती है और वह प्रभावशाली हो जाता है।

बोलते वक्त व्याकरण का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है। उन्होंने ऑडियो मीडियम में आ रहे बदलावों सहित वाइस प्रोजेक्शन, रेडियो के लिए लेखन आदि विषयों पर विस्तार से बात की।इसी सत्र में संवाद कौशल पर वरिष्ठ पत्रकार और कला समीक्षक श्री विनय उपाध्याय ने कहा कि संसार में भाषा के आने से पूर्व भी ध्वनियां मौजूद थीं। यही ध्वनि भाषा की मातृभूमि हैं और शब्द उसकी पृष्ठभूमि। ज्ञान परंपरा का निर्माण वाचिक और शब्द जैसे अलग-अलग माध्यमों से हुआ है। शब्द के पास वाचिक शक्ति होती है। उन्होंने कहा कि शब्द हमारी स्मृति में ठहर जाते हैं। इसलिए अच्छा संवाद करने के लिए अच्छे शब्द हमारे पास होना जरूरी है। इसके लिए अच्छा पढ़ना और सुनना बहुत आवश्यक है।