मिजोरम के विकास को पटरी पर लायेगा बैराबी-सैरांग रेल ट्रेक, जानिए क्यों थी इसकी जरूरी

यह रेल परियोजना मिजोरम की देश के अन्य हिस्सों से कनेक्टिविटी के अलावा, आर्थिक विकास, समय और पैसों की बचत के साथ माल ढुलाई, सुरक्षित यात्रा और पर्यटन को बढ़ावा देने वाली पहल साबित होगी

दीपक मेहता

आइजोल/जयपुर। हमारे देश का एक ऐसा हिस्सा जो विकास और पर्यटन की दृष्टि से पिछड़ा और अलग थलग रह गया था। जहाँ आज भी रोजमर्रा के सामान महँगा है क्योंकि उसे यहाँ तक पहुँचाने की कीमत ओर लागत काफी आती है। मगर अब यह सब बदल रहा है, यहां का विकास पटरी पर लौट आया है, अब यहां भी देश के अन्य राज्यों की तरह पर्यटन पनपेगा, वस्तुओं की दरें सामान्य होगी और यहां के लोग भी मुख्य धारा से जुड़ सकेंगे।

पूर्वोत्तर का जुड़ाव ऐतिहासिक

भारत सरकार की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी और विकास को बढ़ावा देने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। मिजोरम, जो अब तक केवल हवाई या सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ था, पहली बार भारतीय रेलवे के ब्रॉड गेज नेटवर्क से जुड़ गया है। यह उपलब्धि बैराबी-सैरांग ब्रॉड गेज रेल परियोजना के पूरा होने से संभव हुई है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद, अब पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में से 4 की राजधानियां (असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, और मिजोरम) भारतीय रेलवे नेटवर्क से जुड़ चुकी हैं। नागालैंड और मणिपुर की राजधानियों को भी जल्द ही इस नेटवर्क से जोड़ने पर काम चल रहा है।

1999 का सपना 2025 में हुआ साकार

इस महत्वाकांक्षी परियोजना की कल्पना सबसे पहले 1999 में की गई थी। इसके बाद, कई सर्वेक्षण और मूल्यांकन हुए, और 29 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी। विभिन्न भौगोलिक चुनौतियों, जैसे भूस्खलन, भारी बारिश, और दुर्गम इलाकों के कारण निर्माण कार्य काफी कठिन था, लेकिन 2025 में यह परियोजना पूरी हो गई। रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने 10 जून 2025 को इसके संचालन की अनुमति दी, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 सितंबर 2025 को इसका उद्घाटन करने जा रहे है।

मिजोरम के विकास को पटरी पर लायेगा बैराबी-सैरांग रेल ट्रेक, जानिए क्यों थी इसकी जरूरी

मिजोरम की सबसे बड़ी जरूरत

यह 51.38 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन हैं। यह रेल परियोजना मिजोरम के लिए सिर्फ एक नई परिवहन सुविधा नहीं है, बल्कि यह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। क्योंकि सही मायनों में यह रेल परियोजना मिजोरम की जरूरत है। देश के अन्य हिस्सों से कनेक्टिविटी के अलावा, समय और पैसों की बचत के साथ माल ढुलाई, सुरक्षित यात्रा और पर्यटन को बढ़ावा देने वाली पहल साबित होगी। आइये जानते हैं …

बैराबी-सैरांग ब्रॉड गेज रेल परियोजना से मिजोरम को क्या होंगे फायदे

समय और धन की बचत: अब सिलचर से आइजोल तक की सड़क यात्रा, जिसमें 7 घंटे लगते थे और ₹1000 तक खर्च होते थे, ट्रेन से केवल 3 घंटे में और लगभग ₹100-150 में पूरी हो जाएगी।

सुरक्षित यात्रा: बरसात के दिनों में भूस्खलन के कारण अक्सर सड़कें बंद हो जाती थीं, लेकिन अब ट्रेन से यात्रा साल भर सुरक्षित और आसान हो जाएगी। इलाके के कई लोग रोजी-रोटी के लिए मिजोरम के विभिन्न इलाकों में रहते हैं, उनका जीवन आसान तो होगा।

आर्थिक विकास: ट्रेन से माल ढुलाई आसान और सस्ती हो जाएगी, जिससे स्थानीय उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में वस्तुओं की कीमतें भी कम होंगी।

पर्यटन-रोज़गार को बढ़ावा: मिजोरम को “द लैंड ऑफ हिल्स” के नाम से जाना जाता है। रेलवे की योजना इस मार्ग पर विस्टाडोम ट्रेनें चलाने की है, जो पर्यटकों को 360 डिग्री का शानदार दृश्य पेश करेंगी। राजधानी आइजोल तक ट्रेन का संपर्क बेहतर होने से यहां का पर्यटन बढ़ेगा। इसकी खूबसूरती निहारने के लिए दूरदराज से पर्यटक आएंगे। यहां की सभ्यता, संस्कृति को समझने के लिए लोग पहुंचेंगे तो इसका फायदा मिजोरम को रोज़गार के रूप में मिलेगा।

सामरिक महत्व: म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा से सटे होने के कारण यह रेलवे लाइन भारत की सामरिक रणनीति को मजबूत करती है। सरकार इसे म्यांमार सीमा तक बढ़ाने की भी योजना बना रही है, जिससे भविष्य में दक्षिण-पूर्व एशिया से संपर्क स्थापित हो सकेगा।

पुल और सुरंगें: इस रेलखंड पर 48 सुरंगें (कुल 12.85 किमी लंबी) और 55 बड़े व 87 छोटे पुल बनाए गए हैं। सबसे ऊँचा पुल 104 मीटर ऊँचा है, जो दिल्ली के कुतुबमीनार से भी ऊँचा है।

स्टेशन: इस मार्ग पर तीन नए स्टेशन बनाए गए हैं – होरतकी, कवनपुई, और मुआलखांग। सायरंग मिजोरम की राजधानी आइजोल का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बन गया है।

₹8,100 करोड़ की रेल परियोजना: रेल परियोजना को ₹8,100 करोड़ की लागत से बनाया गया है। पहले परियोजना की लागत 6,547 करोड़ आंकी गई थी. लेकिन विभिन्न वजहों से काम बंद होने और फिर कोविड की वजह से इसमें देरी होती रही और लागत भी बढ़ती रही।

1999 का सपना 2025 में हुआ साकार
इस महत्वाकांक्षी परियोजना की कल्पना सबसे पहले 1999 में की गई थी। इसके बाद, कई सर्वेक्षण और मूल्यांकन हुए, और 29 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी। विभिन्न भौगोलिक चुनौतियों, जैसे भूस्खलन, भारी बारिश, और दुर्गम इलाकों के कारण निर्माण कार्य काफी कठिन था, लेकिन 2025 में यह परियोजना पूरी हो गई। रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने 10 जून 2025 को इसके संचालन की अनुमति दी, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 सितंबर 2025 को इसका उद्घाटन करने जा रहे है।