कभी ना बढऩे दें स्ट्रैस, इन तरीकों से करें कम

स्ट्रैस
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आजकल की भागती-दौड़ती लाइफस्टाइल में डिप्रेशन कई लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा है। सिर्फ बड़े ही नहीं, बल्कि युवा भी इन दिनों तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं, लेकिन आज भी समाज का एक बड़ा तबका इसे एक गंभीर बीमारी का नाम देने से कतराता है। यही वजह है कि डिप्रेशन के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है, क्योंकि सही समय पर इसकी पहचान न होने पर अक्सर व्यक्ति सुसाइड जैसी खतरनाक राह पर चल पड़ता है। ऐसे में सही समय पर इसकी सही जानकारी होना बेहद जरूरी है। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे डिप्रेशन के विभिन्न प्रकारों और उसके कुछ लक्षणों के बारे में, जिससे आप समय रहते इसकी पहचान कर गंभीर परिणामों से बच सकते हैं।

मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर

मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर
मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर

पूरे दिन ज्यादातर समय एक उदासी का एहसास होना और ऐसी स्थिति अगर दो हफ्ते तक बनी रहती है, तो ये मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर कहलाता है। इसे क्लिनिकल डिप्रेशन भी कहते हैं।

परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर

परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर
परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर

डिप्रेशन के लक्षण 2 हफ्ते से ज्यादा बने रहते हैं, लेकिन ये मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर की तरह गंभीर नहीं होते हैं, जिसके कारण यह लाइफस्टाइल का एक हिस्सा जैसे महसूस होने लगता है, जिसके कारण इनकी पहचान करना थोड़ा मुश्किल होता है।

बाइपोलर डिप्रेशन

डिप्रेशन के लक्षणों के साथ मेनिया और हाइपोमेनिया के लक्षण जब 7 दिन तक बने रहें, तो ये बाइपोलर डिप्रेशन कहलाता है। मेनिया के लक्षणों में अतिरिक्त एनर्जी, कम नींद, एक साथ बहुत सारे विचार और संवाद, खुद को हानि पहुंचाने की प्रवृत्ति शामिल हैं।

साईकोटिक डिप्रेशन

डिप्रेशन के इस प्रकार में असलियत से नाता खत्म होता महसूस होता है और व्यक्ति हैल्यूसिनेशन और डिल्यूजन की दुनिया में जीने लगता है। इसमें व्यक्ति एक जगह देरी तक बैठ कर घंटों एक ही चीज को निहार सकता है। ये लक्षण डिप्रेशन के लक्षणों के साथ मौजूद होते हैं।

पेरीपार्टम डिप्रेशन

प्रेग्नेंसी के दौरान या बच्चे के जन्म लेने के 4 हफ्ते बाद तक महसूस होने वाला डिप्रेशन पेरीपार्टम डिप्रेशन कहलाता है। आमतौर पर इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन भी कहा जाता है। महिलाओं के शरीर में हुए हार्मोनल बदलावों की वजह से यह डिप्रेशन होता है।

सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर

अक्सर मौसम में बदलाव के साथ मूड और व्यवहार में होने वाले बदलावों को सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर कहा जाता है।

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