108 वर्ष प्राचीन गुरुकुल की नई यज्ञशाला वास्तुशास्त्र के अनुसार बन रही

नर्मदा तट पर स्थित 108 वर्ष प्राचीन गुरुकुल में विश्व कल्याण के लिए वर्ष के 365 दिन ब्रम्ह मुहुर्त में यज्ञ होता है। शहर के साथ प्रदेश व देश के अनेक लोगों से सीधे जुड़ाव वाले गुरुकुल की यज्ञशाला में गुरुकुल के प्रधानाचार्य,आचार्य, व सभी ब्रम्हचारी सूर्योदय से पूर्व यज्ञशाला में वेद मंत्रोच्चार के साथ हवन करते हैं।

गुरुकुल परिसर के मध्य में 50 वर्ष प्राचीन आकर्षक यज्ञशाला थी। जो कुछ क्षतिग्रस्त होने लगी थी। गुरुकुल के अध्यक्ष स्वामी ऋतस्पति परिब्राजक ने बताया कि एक दिन यज्ञ शाला में दरार नजर आई तथा एक टुकड़ा गिरते हुए दिखा तब विचार आया कि दूसरी यज्ञ शाला का निर्माण इसी स्थान पर किया जाए। यज्ञशाला वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाई जा रही है।

24 खंभे की अष्ठकोणीय यज्ञशाला होगी

गुरुकुल के प्रधानाचार्य सत्यसिंधु महाराज ने बताया कि गुरुकुल अध्यक्ष स्वामी जी के मार्गदर्शन में ऋषि दयानंद सरस्वती के द्वारा अर्थव वेद के कांड 9 से लिए गए वास्तुशास्त्र के अनुसार ही यज्ञशाला का निर्माण किया जा रहा है। जिसमें 24 खंभे होंगे। उसके अंदर 16 खंभ व अष्टकोणीय मुख्य यज्ञशाला रहेगी। पूर्व की यज्ञशाला से नई यज्ञशाला बड़ी रहेगी।

अब ज्यादा लोग छोड़ सकेंगे आहुतियां

गुरुकुल की यज्ञशाला में कई लोग हवन करने को आतुर होते हैं। यहां वेद मंत्रों से रोजाना हवन होते हैं। खासकर गुरुकुल महोत्सव के दौरान शहर तथा अन्य स्थानों से आने वाले सैंकडों लोग ब्रम्चारियों के परिजन व शहर के अनेक लोग चाहते हैं कि वे भी यज्ञशाला आहुतियां छोड़ें। नई यज्ञशाला में अब उन्हें भी आहुतियां छोडऩे का मौका मिल सकेगा।

अस्थायी यज्ञशाला में हो रहे हवन

आचार्य अनिल देव आर्य ने बताया कि बिना हवन के गुरुकुल की दिनचर्या नहीं हो पाती है। इसलिए नई यज्ञशाला बनने तक एक अस्थायी यज्ञशाला बनाई गई है। जिसमें प्रतिदिन सुबह निर्धारित समय पर हवन किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि नई यज्ञशाला पूरी तरह नवंबर के आख्ररी तक बनकर तैयार हो जाएगी। दिसंबर में गुरुकुल महोत्सव मनाया जाएगा।