
विधानसभा में गूंजा राजस्थानी भाषा को मान्यता दिये जाने का मुद्दा
जयपुर। इतनी समृद्ध भाषा होते हुए भी राजस्थानी आज तक संवैधानिक मान्यता की प्रतीक्षा कर रही है। राजस्थानी को कई बोलियों का समुच्चय कहकर अक्सर इसकी बोलीगत विविधता को व्यर्थ ही तूल दिया जाता रहा है। राजस्थानी को मान्यता मिलने से इसकी सभी बोलियों को मान्यता मिलेगी। स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत केंद्र सरकार को दो तीन बार पत्र लिखकर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिए केंन्द्र सरकार को लिख चुके हैं लेकिन केंद्र ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाला हुआ है। वहीं राजस्थानी भाषा के प्रेमी कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि मुख्यमंत्री गहलोत भी राजस्थानी भाषा को बहुत चाहते हैं और इसको संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। लेकिन राजस्थानी भाषा को पहले प्रदेश में राजभाषा का दर्जा दिया जाये तो यह एक सकारात्मक कदम होगा। इस कदम के बाद केंद्र सरकार पर इसे मान्यता देने के लिए विशेष दबाव डाला जा सकता है। राजस्थान ने लोकसभा के सभी 25 सांसद केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा की झोली में डाले हैं । देश की अन्य भाषाओं जैसे हिंदी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तमिल आदि की भी अपनी बोलियां रही हैं और ये भाषाएं कब की संवैधानिक मान्यता पा चुकी है। राजस्थानी को मान्यता मिलने से इसकी सभी बोलियों को मान्यता मिलेगी। जो कि नई शिक्षा नीति का भी प्रमुख उद्देश्य है। अब राजस्थान विधानसभा में भी इस मुद्दे को लेकर लंबी लंबी चर्चाएं हो रही हैं और सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हर और राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग जोर पकड़ रही है। नोखा से विधायक बिहारी लाल विश्रोई ने इस और अपना ध्यानी खींचा है। विश्रोई ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए राजस्थान विधानसभा में मायड़ भाषा में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि यह सदन संकल्प करता है कि राजस्थानी भाषा के उन्नयन और प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिये राज्य सरकार राजस्थानी भाषा को प्रदेश में द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिये जाने हेतु आवश्यक कदम उठाये।
बिहारीलाल (नोखा): अध्यक्ष जी, अभी सदन के वरिष्ठ सदस्यों ने चर्चा करते हुए कई शब्द बोले। आदरणीय कटारिया ने कहा कि हमें संकल्प लेना चाहिये। उधर से धारीवाल जी ने कहा कि हमें प्रण लेना चाहिये। राजेन्द्र राठौड़ साहब ने कहा कि हमें सौगंध लेनी चाहिये और महेश जी ने कहा कि हमें पक्का इरादा रखना चाहिये। मेरा जो संकल्प है, वह राजस्थानी भाषा को द्वितीय राजभाषा की मान्यता देने का है। राजस्थानी वास्तव में कितनी समृद्ध भाषा है, सगला प्रण रहे चाहे संकल्प रहे, चाहे सौगंध है, चाहे पक्की बात है, अ सगला राजस्थानी का ही शब्द
मेरे संकल्प की शुरुआत करते हुए कहना चाहूंगा कि हरेक मिनख रे सगले जीवण काल मां, मायड़ भौम अर मायड़ भाषा रो घणो महत्व रहवै। श्रीमान जी मैं आपने आ बात केवणी चाहूं के जिण प्रकार सुं महाराष्ट्र सरकार आपरे अठ हर सरकारी अर गैर सरकारी संस्थानां मांय आपरी मातृभाषा मराठी नै अनिवार्य रूप सूं लागू करी। इणी भांत हरियाणा में हरियाणवी, छतीसगढ में छत्तीसगढ़ी अर झारखंड में झारखंडी, तो 16 भाषावां ने दूजी राजभाषा रो दरजो है। अर अबार थोड़ा दिना पेला दिल्ली री सरकार आपरे अठे मैथिली-भोजपुरी भाषा ने शिक्षा में लागू करी है। आर री घड़ी राजस्थान रा 200 में सुं 140 विधायक अर मंत्री राजस्थानी भाषा ने प्रदेश री दूसरी राजभाषा बणावण सारू माननीय मुख्य मंत्री जी रे नांव पत्र लिख चुक्या है सा। विधायकां री मांग जनता-जनार्दन री मांग हवे है। अत: आपसुं म्हारो घणे मान निवेदन है के आप आपणे राजस्थान रे माय अठे रे लोगां री जन-भावना रो सम्मान करता थकां राजस्थानी भाषा ने राज भाषा रो दरजो देओ अर प्राथमिक शिक्षा में मायड़ भाषा ने घणे मान लागू करो सा। जिणसुं अठे रे नौजवानां ने रुजगार राजस्थान मां
राजस्थान विधान सभा की कार्यवाही का वृत्तान्त
घणा अवसर मिलसी
आदरणीय सभापति महोदय, संसद द्वारा पारित स्टेट आर्गेनाइजेशन एक्ट, 1956 द्वारा सभी प्रान्तों का पुनर्गठन भाषायी आधार पर किया गया था। दूसरी तरफ तत्कालीन राजस्थान सरकार ने बिना जनमत संग्रह कराये, बिना विधान सभा में प्रस्ताव पारित किये महामहिम राज्यपाल के हस्ताक्षरों से दिनांक 26.12.1956 को राजस्थान की देशी रियासतों E SIGFRINGI HUT on The Rajasthan Official Language Act, 1956 (Act No. 47 of 1956) के द्वारा Repeal करके हिन्दी भाषा को राज्य की राजभाषा घोषित किया था। 25.08.2003 को इसी विधान सभा ने, इसी सदन में एक शासकीय संकल्प पारित किया था, आज तो हमारा प्राइवेट मेम्बर डे है, हम प्राइवेट संकल्प लेकर आये हैं। उस वक्त तो तब के शिक्षा मंत्री जी और अब के शिक्षा मंत्री जी, बी.डी.कल्ला साहब ने 25.08.2003 को सर्वसम्मति से शासकीय प्रस्ताव पारित किया था। कल्ला जी को तो बखूबी याद होगा। शासकीय प्रस्ताव में कहा था, अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी अनुमति से निम्नलिखित संकल्प विचार एवं पारण हेतु प्रस्तुत करता हूं। ‘राजस्थान विधान सभा के सभी सदस्य सर्वसम्मति से यह संकल्प पारित करते हैं कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया जाए। राजस्थान में विभिन्न जिलों में बोली जाने वाली बोलियां यथा- बृज भाषा, हाडौती, बागड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाड़ी, मेवाती, मारवाड़ी, शेखावाटी, आदि शामिल है।’ उस समय राजेन्द्र राठौड़ साहब ने कहा कि बागड़ी भी शामिल है क्या? कल्ला साहब ने कहा कि हां बागड़ी भी शामिल है। अजमेर से आने वाले माननीय सांवर लाल जी जो आज हमारे बीच इस दुनिया में नहीं हैं, सांवर लाल जी ने बोला कि राठौड़ी, मेरवाड़ी भी लिखो साहब। अजमेरी भाषा भी इसमें शामिल करो। आदरणीय कल्ला जी, यह आपका 19 वर्ष पहले का संकल्प है।
हमने संकल्प पारित कर दिया 19 वर्ष पहले कि केन्द्र की आठवीं अनुसूची में इसे शामिल किया जाय लेकिन राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में इसलिए शामिल नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यह भाषा श्री सीताकांत महापात्र की समिति की सिफारिशों के अनुसार राजस्थान में शिक्षण माध्यम के रूप में संचालित नहीं है। वैकल्पिक विषय अवश्य है। इस तथ्य को राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय गृह मंत्रालय, नई दिल्ली को दिनांक 23.8.2013 को भिजवाई गई रिपोर्ट में स्वीकारा गया है।
माननीय सभापति महोदय, उत्तर प्रदेश में उर्दू भाषा को, दिल्ली में उर्दू एवं पंजाबी, दोनों भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा है। दिल्ली सरकार ने दोनों भाषाओं को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देते हुए 2003 में यह नोटिफिकेशन किया था। मैं चाहता हूं कि राजस्थानी भाषा को भी राज्य की द्वितीय भाषा घोषित करते हुए नोटिफिकेशन जारी करें या The Rajasthan Official Language Act, 1956, में एक नई धारा जोड़कर वैधानिक मान्यता प्रदान की जानी चाहिये।
कई विधायकों व संगठनों ने भी पत्र लिख कर मुख्यमंत्री से की मांग
राजस्थानी भाषा को द्वितीय राजभाषा बनाने की मांग कई विधायकों व कई समाजिक संगठनों आदि ने पत्र लिख कर मुख्यमंत्री से की है। पत्र लिखने वालों में मुख्यरूप से विधायक मानवेंद्र सिंह, (पूर्व सांसद- बाड़मेर-जैसलमेर), विधायक शोभा चौहान (सोजत, पाली), विधायक मनीषा पवार (जोधपुर), विधायक अशोक डोगरा (बूंदी), विधायक समाराम गरासिया (पिण्डवाड़ा, आबू), विधायक फूलसिंह मीणा (उदयपुर ग्रामीण), लालाराम नायक (पीसीसी सदस्य), विधायक पदमाराम मेघवाल (चौहटन, बाड़मेर), रामचंद्र जारोड़ा (पूर्व विधायक मेड़ता, नागौर), विधायक जगसीराम कोली (रेवदर आबूरोड, सिरोही), राजस्थान प्रदेश माली (सैनी) महासभा, विधायक इंदिरा देवी बावरी (मेड़ता,नागौर), विधायक नारायाण सिंह देवल (रानीवाड़ा), आखिल भारतीय बिश्नोई महासभा व समस्त राजस्थानी भाषा प्रेमियों ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर राजस्थानी भाषा को द्वितीय राजभाषा घोषित करने की मांग की है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिख चुकी हैं पत्र
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर राजस्थानी भाषा को राजभाषा बनाये जाने की मांग की है। मुख्यमंत्री गहलोत को लिखे पत्र में वसुंधरा राजे ने कहा कि राजस्थान की मातृभाषा दुनिया की समृद्धतम भाषाओं में से एक है। इससे हमारी संस्कृति की पहचान है और हमारी भावनाएं जुड़ी हुई है। इसलिए प्रत्येक राजस्थानी का सपना है कि राजस्थानी भाषा को राजभाषा बनाया जाए।उन्होंने पत्र में लिखा कि ‘मैं यहाँ उल्लेख करना चाहूंगी कि गोवा में, गोवा, दमन-दीव, राजभाषा अधिनियम (1987) द्वारा कोंकणी भाषा, छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ राजभाषा अधिनियम संशोधन (2007) द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा और झारखण्ड में, बिहार राजभाषा (झारखण्ड संशोधन) अधिनियम 2018 द्वारा मगही, भोजपुरी सहित 17 भाषाओं को राजभाषा बनाया गया है। इसी प्रकार मेघालय राज्य में, मेघालय राज भाषा अधिनियम (2005) द्वारा खासी व गारो भाषा, सिक्किम राज्य में, सिक्किम भाषा अधिनियम (1977) द्वारा भूटिया, लेपचा व नेपाली भाषा तथा पश्चिम बंगाल राज्य में, पश्चिम बंगाल राजभाषा अधिनियम द्वितीय संशोधन बिल (2018) द्वारा खमतपुरी, राजबंशी भाषा को भी बिना संवैधानिक मान्यता के राजभाषा घोषित किया गया है। इसलिए आपसे निवेदन है कि उक्त तथ्यों पर ध्यान देते हुए राजस्थानी भाषा को राज्य की राजभाषा बनवा कर समस्त राजस्थानियों को अनुगृहित करे।’