
लंदन में रहकर भी दिल में बसता है राजस्थान
प्रवासी राजस्थानी लंदन में रह रहे दिलीप पुंगलिया का राजस्थानियों को संदेश – राजस्थान की भाषा, संस्कृति, इतिहास को संजोकर रखो और नई पीढ़ी को हस्तान्तरित करो
राजेन्द्र सिंह गहलोत
प्रवासी राजस्थानियों में कई ऐसे भी है जो कर्मभूमि के साथ-साथ जन्मभूमि को भी उतना ही प्यार करते हैं उतना ही सम्मान देते हैं। जिनका कहना है कि कर्मभूमि नेे शान से जीवनयापन करने लायक बनाया है तो जन्मभूमि ने भी तो जन्म दिया, संस्कार दिये तो उसका भी तो हम पर ऋण है, जिसे चुकाना हमारा फर्ज बनता है। ऐसे ही विचारों के साथ साक्षात्कार हुआ प्रवासी राजस्थानी दिलीप पुंगलिया से, जो लंदन में रहते हैं । दिलीप पुंगलिया कहते हैं कि मेरा जन्म तो 11 दिसम्बर 1975 को बाड़मेर के धारीमना गांव में हुआ, वहीं पर सरकारी स्कूल से प्राईमरी शिक्षा प्राप्त की। 14 साल की उम्र में जोधपुर आ गया, जोधपुर में सर प्रताप स्कूल से सैकेण्डरी की। 1997 में महाराष्ट्र के अमरावती विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की। अमरावती विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग करने के बाद मैंने इन्फ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट का पारिवारिक व्यवसाय संभाला। मेरी मां ने कहा और कहीं प्रयास करो तो मैं दिसम्बर 1998 में बॉम्बे आ गया, रात में आई.टी. का कोर्स करता और दिन में जॉब ढूंढता, वह मेरा संघर्ष का दौर था, एक जगह तो बिना वेतन के भी काम करना पड़ रहा था। फिर जहाँ बिना वेतन के काम कर रहा था उन्होंने कहा कि आप कंपनी के मार्फत आई.टी. प्रोडक्ट चलाओ, मैंने उनके कहे अनुसार काम करना शुरू किया जो उन्होंने मुझे पहली बार 13 हजार रूपये प्रतिमाह वेतन देना शुरू कर दिया। इतने कम वेतन का कारण यह था कि उस समय आई.टी. इंडस्ट्री मुश्किल दौर से गुजर रही थी। मैं स्टॉक ब्रोकर अनिल सोढ़ानी के यहां काम करता था।
राजस्थान फाउंडेशन का जताया आभार
मैं राजस्थान फाउंडेशन और उनके कमिश्नर धीरज श्रीवास्तव जी का विशेष आभारी हूं कि उन्होंने मुझे राजस्थान सरकार और दुनिया भर के प्रवासियों से जोड़ा। उन्होंने मुझे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से वर्चुअल संवाद में अपनी बात रखने का मौका दिया। यह मेरे लिये गौरव की बात थी। हम कई योजनाओं में राजस्थान फाउंडेशन के साथ जुड़ कर कार्य कर रहे है।
भारत से लंदन की उड़ान
लंदन में श्री निवासन के यहां पेईंग गेस्ट के तौर पर रहता था, और वहीं जितेन्द्र मिस्त्री को बॉम्बे से ही जानता था, उनसे बातें होती थी तो उन्होंने कहा कि तुम यहीं आ जाओ। अंतत: मुझे भी लगा कि मुझे लंदन शिफ्ट हो जाना चाहिये और वर्ष 2007 में मैं लंदन में शिफ्ट हो गया। लंदन में बतौर फ्रीलांस काम करना शुरू किया, कई उतार चढ़ाव आते रहे लेकिन मैं धीरे धीरे आगे बढ़ता गया। 2008 में मैं लंदन में पूरी तरह व्यवस्थित हो गया।
संयुक्त परिवार का सफलता में महत्वपूर्ण योगदान

मैं संयुक्त परिवार में पला बढ़ा, मेरे पापा मम्मी, दो चाचा और उनका परिवार साथ रहते हैं, हम पांच सगे भाई है, लेकिन चाचा के बच्चों को मिलाकर दस भाई और दो बहनें हैं, आज भी हमारा परिवार संयुक्त परिवार है। पिता रामजीवन पुंगलिया, चाचा विष्णु प्रसाद पुंगलिया, बड़े भाई मनोहर लाल पुंगलिया ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है। वी.पी.आर.पी. इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इंजीनियरिंग के नाम से आज भी हमारा पारिवारिक व्यवसाय है, मेरा पूरा परिवार समाजसेवा में लगा रहता है। अमरावती विश्वविद्यालय में ही कविता कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग कर रही थी, कविता का परिवार तो जोधपुर का ही थी लेकिन वे लोग अमरावती मेें बस चुके थे, तो कविता से वर्ष 2000 में मेरी शादी हो गई। कविता लंदन में स्टॉक ट्रेडिंग करती है, एक बेटा है दिवेश जो इंजीनियरिंग कर रहा है। वर्ष 2000 में ही मेरी शादी हुई और उसी वर्ष मुझे बॉम्बे में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में काम करने का अवसर मिला, वह अनुभव बहुत अच्छा रहा, शेयर मार्केट कैसे रन करना है, शेयर मार्केट को देखने समझने का एक अलग नजरिया मिला। इसी बीच मैंने दूसरी कंपनी ज्वाइन की नेस टेक्नॉलजी जो यूरोपियन बिजनेस के लिये काम करती थी, तो यू.के., फ्रांस और अन्य देशों में कंपनी के मार्फत जाने का मौका मिला।

कोरोनाकाल में जन्मभूमि राजस्थान के साथ लंदन में भी की सेवा
कोरोनाकाल में सबसे ज्यादा मार जिस वर्ग पर पड़ी वह मीडियम लोअर क्लास पर पड़ी, क्योंकि अपर क्लास के पास तो काफी पैसा था वह लॉकडाउन में घर बैठना अफोर्ड कर सकते थे, लोअर क्लास की मदद सरकार और भामाशाह कर रहे थे, लेकिन मीडियम लोअर क्लास की न सरकार ने किसी तरह की मदद की, न किसी भी भामाशाह ने किसी प्रकार की मदद की, लॉकडाउन ने इस वर्ग के काम धंधे और रोजगार छीन लिये, यह वर्ग स्वाभिमानी होता है तो यह किसी से मदद भी नहीं मांगता, तब हमने इस वर्ग की सहायता करना शुरू किया । इसके अलावा हम इस वर्ग के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाने के लिये मिर्ची बड़ा फेस्ट आयोजित करने लगे, जिसमें हमने लंदन के आसपास इस वर्ग के पास 250 मिर्ची बडे पैकेट में भिजवाये। दूसरी बार मिर्ची बड़ा फेस्ट किया जो 3000 मिर्ची बडे और 80 किलो बूंदी बांटी। 400 यूनिफॉर्म भारत में भिजवाई और 300 यूनिफॉर्म बच्चों के लिये लंदन में बांटी। कोरोनाकाल ने दुनिया बदल दी, सब अनिश्चित हो गया, घर से काम करने लगे, सब परेशान थे। भारत के स्टूडेंट्स और घूमने आये पर्यटक, रोज खाने कमाने वाले, हमने सबकी मदद की, उस समय सबकुछ बंद था तो हमने भोजन के पैकेट, राशन बांटा, कुछ भामाशाहों के फ्लैट खाली थे तो उनसे बात करके जरूरतमंदों को वहां रहने का इंतजाम किया, हमने हर मजबूर की सहायता की बिना उसकी जाति, धर्म और देश को देखे हुए हमने सेवा की। कर्मभूमि के लिये तो सभी करते हैं, लेकिन जन्मभूमि के बारे में कोई नहीं सोचता, हमने लंदन के साथ ही राजस्थान के पाली और नाथद्वारा के बीच आदिवासी क्षेत्र में भी सहायता पहुंचाई, जयपुर और जोधपुर में भी सहायता पहुंचाई।
राजस्थानी भाईयों को संदेश
हमारा राजस्थानी भाईयों को यही संदेश रहता है कि अपनी राजस्थान की भाषा, राजस्थान की संस्कृति, राजस्थान का इतिहास संजोकर रखो और सिर्फ अपने तक ही संजोकर मत रखो, बल्कि इसे नई पीढ़ी को भी हस्तान्तरित करो, क्योंकि सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी बोलने से ही कुछ नहीं होगा, आपकी आन बान शान तो राजस्थान है, राजस्थानी है। आज भी महिने में 4-5 बार लंदन में हमारे घरों में बाजरे की रोटी, गट्टे की सब्जी, कढ़ी बनती है। हमने बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़ रखा है और सिखाया है कि समाज के हित में लगे रहो, समाज मतलब इंसानी समाज, जो भी जरूरतमंद हो उसकी मदद करो फिर चाहे वह किसी भी जाति का हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी देश का हो, बस जरूरतमंद होना चाहिये, तुम्हें उसकी जाति, धर्म, देश देखकर मदद नहीं करनी है, तुम्हें उसकी जरूरत देखकर मदद करनी है। यही राजस्थानियों की इंसानियत है।
लंदन में मनाते हैं सभी भारतीय त्यौहार
लंदन में मेरे पड़ौसी बहुत अच्छे मिले, वे सुन्दरकांड, रामायण के पाठ करते। फिर कुछ माहेश्वरी बंधुओं के साथ माहेश्वरी महासभा यू.के. की स्थापना की, जिस महासभा का मैं 2011 से 2014 तक प्रेसिडेंट भी रहा। फिर मैंने अपने आपको सोशली कनेक्ट करना शुरू किया। हम राजस्थानी एसोसिएशन यू.के. के लिये दो कार्यक्रम करते हैं गणगौर और जीमण। महिलाएं गणगौर की पूजा करती है, सवारी निकलती है, लंदन में पर्यावरण को लेकर काफी सजगता है तो परात में ही पानी भरकर गणगौर का विसर्जन किया जाता है, उसके लिये मिट्टी की छोटी गणगौर होती है। जीमण में राजस्थानी भाईयों के लिये पूरा राजस्थानी माहौल तैयार किया जाता है, राजस्थानी वेशभूषा, राजस्थानी संगीत, राजस्थानी इतिहास की बातें, राजस्थानी भोजन, राजस्थानी परम्परा के अनुसार जमीन पर पंगत में बैठकर खाना, सबको बहुत अच्छा लगता है। हम लंदन में सभी भारतीय त्यौहार धूमधाम से मनाते हंै। ऑनलाइन वेबिनार से राजस्थानी कल्चर को प्रमोट किया, कवि, साहित्यकार, किसान, समाजसेवी सबको जोड़ा, कार्यक्रम का नाम रखा गैलेक्सी ऑफ स्टार्स। इस कार्यक्रम से भाजपा के सतीश पूनिया, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे, राजा हसन, सैम पित्रोदा, कश्मीर के महाराजा हरिसिंह के बेटे करण सिंह, इनके अलावा और भी नामचीन लोगों को कनेक्ट किया।
राजनीति अपनी जगह और देश अपनी जगह, कांग्रेस और बीजेपी को एक मंच पर लाये

राजस्थान में पांच साल भाजपा की सरकार रहती है, पांच साल कांग्रेस की सरकार रहती है, तो हमने सोचा कि दोनों ही पार्टिया साथ बैठकर कंस्ट्रक्टिव वर्क करे, राजनीति अपनी जगह है, देश अपनी जगह है तो दोनो ही पार्टियों को आपस में जोडऩेे के उद्देश्य से हमने कांग्रेस के सचिन पायलट और बीजेपी के सतीश पूनिया को लंदन बुलाया कार्यक्रम में, राजस्थान के इतिहास में 5 दिसम्बर, 2019 को दिन याद किया जायेगा जब पहली बार हमारे प्रयासों से सचिन पायलट और सतीश पूनिया ने मंच साझा किया, यह हमारी एक बड़ी उपलब्धि रही। दिलीप पुंगलिया जैसे प्रवासी राजस्थानी जो जन्मभूमि के साथ कर्मभूमि का भी ऋण चुकाते हैं, ऐसे ही लोग राजस्थान की संस्कृति की पताका देश विदेश में फैलाते हैं और लंदन के लोग भी चर्चा करते हैं कि इतने उदार होते हैं राजस्थानी।