
आखिर वही हुआ, जिस की आशंका पहले ही जता दी गई थी। कई स्थानों पर तो आंकड़ा छू लिया-कई पर ‘ओळे-दोळे। बाकी जो बचे हैं, इस हिसाब से तो उनका नंबर भी देर-सवेर आ जाणा। देर की बात नहीं, सवेर जल्दी आ जाएगी। अब अगर 2025 तक छुट्टी हो जाए तो ठीक रहेगा। उतार आ जाए तो सोने में सुहागा। चढाव आ जाए तो मुश्किलें बढती सामने दिख रही है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
सौ के पार को लेकर भाई लोग सोच रहे होंगे कि उम्र का तकाजा किया जा रहा होगा। कई की सोच ये कि ऐसा करना या ऐसा होना हम-आप के बस की बात तो है नहीं जो अब की बार ऐसा किया जाए। ऐसा लगता है मानों पहले स्कोर 90-92 या 95-98 रह चुका होगा। इस बार शतक लग ही जाए। किस की कित्ती लिखी हुई है, कोई नहीं जानता। पहले भाईसेण कहा करते थे-‘जीवन और मौत ऊपर वाले के हाथ में है।
अब हालात बदले-बदले से नजर आते हैं। बच्चा एक पैदा करें या दो या कि पूरी पलटन यह पति-पत्नी पर निर्भर। पहले नारा था-‘हम दो-हमारे दो। अब उसे भी कुतर दिया-‘हम दो-हमारा एक। भतेरों ने इसे भी स्वीकार कर लिया। हम दो-हमारा एक या हमारी एक के फायदे होंगे सो होंगे। घाटे साफ तौर पे दिखाई दे रहे है। किसी के एक ही लड़का हो तो चाचा और ताऊ के बींटे गोळ। ना होगी बुआ ना होंगे फूफोसा।
किसी के एक ही लड़की हो, तो मामा और मासी के टोटे। अकेला लड़का किस से राखी बंधवाए-अकेली लड़की किस के राखी बांधे। वैसे, अपने यहां किसी की कलाई सूनी नही रहती-आस-पड़ोस के बच्चे और धरम के रिश्ते राखियों से हाथ भर देते हैं मगर एक कसक तो हमेशा बनी रहती है।
भाई-बहन हों तो एक-दूसरे से भईड़ा-जीजड़ी कह के लड़ तो सकते हैं। उनकी तरकार में भी मजा। कम से कम घर तो भरा-भरा लगता है वरना एक अकेला बच्चा करें तो क्या करे। किसी को अपने मन की बात भी नही कह सकता। लिहाजा हमारे हिसाब से दो-दो वाला टोटका सही था, किसी को एक जंचे तो मरजी उनकी।
हथाईबाज देख रहे हैं कि एक बाद परिवार नियोजन के बीसियों टोटके आजमाए जाते हैं। इसका मतलब साफ और सपाट है कि दूसरा बच्चा पैदा करें या ना करें यह पति-पत्नी की इच्छा पर निर्भर। माना कि नए मेहमान को दुनिया दिखाना या ना दिखाना दंपती के हाथ में मगर जीवन की डोर तो नीली छतरी वाले के पास। किस कि कित्ती लिखी है उसके अनुसार विदाई होती है। कामना तो ज्यादा से ज्यादा जीने की जाती है।
भगवान साजा..ताजा राखै अर हजारी करे.. का आशीर्वाद दिया जाता है। सौ बरसां पहुंचने की दुआ दी जाती है। आई-बाबा के पड़दादा-पड़दादी बनने पर सोने की सीढी चढाई जाती है। उम्र का सैंकडा जडऩे पर जलसे होते हैं। लोगों ने सोचा होगा कि शीर्षक को शतायु से जोड़कर लटकाया गया है।
किरकिट की दुनिया में सौ की अपनी शान है। हर खिलाड़ी की तमन्ना होती है कि वो सैकड़ा ठोके । स्थापित खिलाड़ी तो शतक लगाए बिना आउट ही नही होते। उनके लिए तकरीबन प्रत्येक मैच में सेंचुरी जरूरी। प्रशंसक भी उनसे यही उम्मीद रखते है। हाफ सेंचुरी के बाद खिलाड़ी जरा संभल के खेलना शुरू करता है। कभी टुक-टुक तो कभी चौका-छक्का। ज्यों-ज्यों सेंचुरी करीब आती है। डर और रोमांच बढता रहता है। दर्शकों का अपना रोमांच। सैंकड़ा ठुक जाए तो पूरा पवैलियन खड़ा हो जाता है।
खिलाड़ी बल्ला हवा में लहरा कर भगवान और दर्शकों के प्रति धिनवाद अदा करता है। वही खिलाड़ी निन्यान्वें पे बोल्ड हो जाए तो दुनिया भर की गालिएं सुनने को मिलती है। जिन्होंने कभी गिल्ली-डंडे नहीं खेले, वो कहते हैं-गलत शॉट मार दियो.. आ बॉल खेलणी भी नही चाइजे..। जो लोग कभी कंचों और मालदड़ी से ऊपर नहीं आए, वो उस की गलतिएं निकालते हैं। किस ने कित्ते अर्धशतक बनाए। किसने कित्ते शतक ठोके। इन सब का हिसाब भी किरकिट की किताब में दर्ज होवे हैं। हो सकता है कई लोग शीर्षक को किरकिट वाले शतक से जोड़ बैठें, पर ऐसा भी नही है।
हथाईपंथी जिस सेंचुरी की बात कर रहे हैं, उसमें पेटरोल आग लगा रहा है। देश के कई हिस्सों में तेल के दाम सौ रूपए प्रति लीटर हो गए तो कुछ राज्यों में सौ का आंकड़ा पार करने वाले हैं। पांच राज्यों में हुए चुनाव के बखत कीमतें स्थिर थी, जैसे ही वोटों की गरज मिटी, दाम बढने शुरू हो गए। कभी चाराने का चूंटिया तो कभी आठाने का ठोला। सरकार मे वही लोग है जो कांगरेस के जमाने में पेटरोल, डीजल और रसोईगैस सिलेंडर के दाम बढते ही सड़कों पर चूल्हा जलाना शुरू कर देते थे। आज उन्हीं के राज में पेट्रोल शतकवीर बना बैठा है और कोई चूं तक नही कर रहा।
हमने इस बारे में आगाह भी कर दिया था। चाराने-आठाने पर चुटकी लेते हुए कहा था-बंद करो ये चूंटियागिरी। एक बार में ही सौ रूपए कर दो, फिर पांच साल उसकी तरफ झांकों ‘इ मति। सरकार ने ‘सौ की तो सुन ली। पांच साल वाली बात सुनाई देगी। इसमें शक है। हाल-हूलिया यही रहा तो ‘अब की बार-सोच विचार..। पण करें क्या। ढंगढांग का विकल्प दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा।