
किसी भी अंग के प्रत्यारोपण में उसके मूल चरित्र या गुणों को नुकसान से बचाना एक बड़ी चुनौती है। इस समस्या से निपटने के लिए कई तरह के ऐहतियाती उपाय किए जाते हैं। इस मामले में हुए एक हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक ऐसे प्रोटीन कि खोज की है, जो प्रत्यारोपण के दौरान लिवर को होने वाले नुकसान से सुरक्षा देने में मददगार है।
प्रविधि से अंग को होने वाला नुकसान कम होता है

उनके अनुसार, सीईएसीएएम नामक यह प्रोटीन प्रत्यारोपण की सफलता दर को बढ़ा सकता है। इस प्रोटीन का यह सुरक्षात्मक गुण अभी तक अज्ञात था। साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन नामक जर्नल के आनलाइन संस्करण में प्रकाशित इस शोध आलेख में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने सीईएसीएएम प्रोटीन में अंतर्निहित सुरक्षात्मक प्रविधि का मालिक्यूलर मैकेनिज्म (आणविक तंत्र) की खोज की है। इसमें वैकल्पिक जीन के जुड़ाव और मालिक्यूलर टूल का इस्तेमाल किया गया है।
प्रत्यारोपण के बाद उसका परिणाम बेहतर होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि लिवर जैसे सालिड अंग में रक्त प्रवाह नहीं होता है, इसलिए प्रत्यारोपण के पहले आक्सीजन भी नहीं होती है। प्रत्यारोपण के दौरान उस अंग में रक्त की आपूर्ति (ब्लड सप्लाई) बहाल की जाती है, लेकिन इस प्रक्रिया में सूजन या जलन होने के कारण ऊतकों को नुकसान होता है, जिस इस्केमिक रीपरफ्यूजन इंजरी या रीआक्सीजेनेशन इंजरी कहते हैं। शोध के मुख्य लेखक तथा यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया लास एंजिलिस (यूसीएलए) के सर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर केनेथ डेरी का कहना है कि चूंकि प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध होने वाले अंगों की कमी बनी हुई है, इसलिए यह एक बेहतर विकल्प है कि जो भी उपलब्ध अंग हो, उसका प्रत्यारोपण जीवन पर्यंत कामयाब रहे। लेकिन इस्केमिक रीपरफ्यूजन इंजरी के कारण ऐसा अक्सर हो नहीं पाता और प्रत्यारोपण का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। शोधकर्ताओं ने हाइपोक्सिया इंड्यूसिबल फैक्टर (एचआइएफ-1) की खोज की है, जो आक्सीजन के उपभोग को नियंत्रित करता है और सीईएसीएएम1-एस को सक्रिय करने में मदद करता है। सीईएसीएएम का ही एक संस्करण है, जिसका असर चूहों के लिवर में देखा गया है जो सेलुलर इंजरी को कम करके लिवर के कामकाज में सुधार लाता है।
कुछ इस प्रकार है अलग-अलग जीन का समीकरण
शोधकर्ताओं ने डोनर इंसानी लिवर में भी सीईएसीएएम एस तथा एचआइएफ के बीच संबंधों की खोज की है, जिससे लिवर प्रत्यारोपण तथा इम्यून फंक्शन के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इसके साथ ही एक नई जीन अभिव्यक्ति की प्रक्रिया की भी खोज की गई है, जिससे इस्केमिया तथा आक्सीजन स्ट्रेस सक्रिय होता है। यह प्रक्रिया एक वैकल्पिक जोड़ (स्प्लाइस) के रूप में जाना जाता है। इसके जरिये कोशिकाएं खतरे, इन्फ्लैमेशन या इंजरी के समय प्रोटीन की विविधता बढ़ाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि जब कोशिकाओं में आक्सीजन का स्तर कम होता है तो एचआइएफ-1 आरएनए स्प्लाइसिंग फैक्टर पालीपाइरिमिडाइन ट्रैक्ट बाइडिंग प्रोटीन (पीटीबीपी1) को रेगुलेट करना शुरू कर देता है, जो सीईएसीएएम जीन को स्प्लाइस के लिए निर्देशित करता है, जिससे सीईएसीएएम1-एस सुरक्षा को बढ़ाता है और इससे प्रत्यारोपण से जुड़े लिवर इंजरी को कम करता है। इसके उपयोग से लिवर को ज्यादा सुरक्षित और गुणवत्ता बनाए रखते हुए जरूरतमंद लोगों में प्रत्यारोपित किया जाना आसान होगा।
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