
दुबई क्वालिटी अवॉर्ड का बना रखा है ज्यूरी मेम्बर
ग्लोबल पीस फाउंडेशन के जरिये विश्व शांति के लिये प्रयासरत
राजेन्द्र सिंह गहलोत
डॉक्टर कनक मादरेचा राजस्थान के जिला उदयपुर के वल्लभनगर गांव के निवासी है, जो आज दुबई में रहकर राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। समाज सेवा और आत्म संतुष्टि के लिये मादरेचा ने ग्लोबल पीस फाउंडेशन की स्थापना की, जो विश्व शांति के लिये काम कर रही है जिसका उद्देश्य हैं शांति बनाये रखने की कोशिश करो, जैसे घर में बड़ा बूढ़ा होता है तो घर के झगड़े वही निपटा देता है, ऐसे ही गांव में मुखिया होता है वह गांव के झगड़े निपटा देता है, इसी तरह संयुक्त राष्ट्र संघ है जो उसके सदस्य देशों के झगड़े निपटाता है, उनकी नहीं मानी जाती तो आगे कानून के रास्ते हैं झगड़ा निपटाने के, तो मैंने 55 देशों में शांतिदूत नियुक्त कर रखे हैं।
उच्च शिक्षित और उच्च कोटि का अनुभव : डॉक्टर कनक का कहना है कि मैं वल्लभनगर में 1959 में जन्मा, पिता की वहां किराने की दुकान थी, प्राइमरी और हायर सैकेण्डरी की पढ़ाई वल्लभनगर से ही की, मेरे पास साइंस मैथ्स विषय था, 11वीं में राजस्थान बोर्ड में मेरी सातवीं रैंक थी, फिर बिट्स पिलानी में बैचलर ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग का पांच साल का कोर्स बी.ई किया जिसमें मेरी पांचवीं रैंक थी, वहां कुल 400 सीट थी जिसमें 200 को ही इंजीनियर बनाते थे । उसके बाद पोस्ट ग्रेज्युएशन करने के लिये बंबई राजकीय औद्योगिक तकनीकी प्रशिक्षण संस्थान गया, वह आजकल के आईआईटी संस्थान की तरह था, जिसमें दो साल का कोर्स था, कुल 48 सीट थी, और पूरे भारत के 200 इंजीनियरिंग कॉलेज के गोल्ड मेडलिस्ट एडमिशन के लिये अप्लाई करेंगे और 48 को ही प्रवेश मिलेगा, वहां से मैंने एम.टेक. की डिग्री ली। उसके बाद रिलायंस उस समय छोटा ग्रुप था उससे बड़ा ग्रुप था मफतलाल ग्रुप जो मशीनरी बनाते थे उसमें डेढ़ साल काम किया, साढ़े तीन साल फिलिप्स इंडिया में काम किया, फिलिप्स कंपनी जो बल्ब और ट्यूबलाइट बनाती है। फिर मैंने जहां से एम.टेक. किया उसी संस्थान में प्रोफेसर बन गया और 7 साल पढ़ाया, इसके अलावा मैं हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड जो अब वेदांता हो गया वहां कंसलटेंसी का कार्य करता था, जर्मनी की कंपनी एक सॉफ्टवेयर बनाती है जिसको टाटा, बिड़ला, रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियां काम में लेती है, उस सॉफ्टवेयर को मैं कंपनियों को रिकमंड करता, उस कंपनी में मैंने डेढ़ साल तक काम किया।
उसके बाद दुबई की कंपनी में 1994 में काम मिल गया, 13 साल मैं एक कंपनी का मैनेजर रहा, मैं कंपनी को दुबई क्वालिटी अवॉर्ड के लिये तैयार करवाता था जिससे दुबई सरकार की ओर से दिया जाने वाला वह अवॉर्ड कंपनी को मिल जाये, 1996 में मैं दुबई क्वालिटी अवॉर्ड की कमेटी में आ गया वहां दुबई सरकार की तरफ से अलग-अलग कंपनियों में जाकर उनका पांच साल का कार्य देखता था कि कौनसी कंपनी को अवॉर्ड मिलना चाहिये। 2010 में मुझे दुबई सरकार ने प्रोमोशन करके दुबई क्वालिटी अवॉर्ड का ज्यूरी मेम्बर बना दिया जो सीधे हिजाइनेस उपराष्ट्रपति को रिपोर्ट करते हैं।
मैंने प्राइवेट सेक्टर में भी काम किया और पब्लिक सेक्टर में भी काम किया, कॉमर्शियल काम पैसा कमाने के लिये किया और वॉलेन्टियरी काम समाजसेवा के लिये और आत्म संतुष्टि के लिये किया। मैं 200 देशों की कंपनियों के साथ कॉमर्शियल काम करता था जितना माल उनका बिकेगा, उतना पैसा मिलेगा, वे कंपनियां एक तरह से यूं कह लीजिये बनिये की दुकानें थी। इसके अलावा सुबह 5.30 से 6.30 बजे तक दुबई में योग की कक्षाएं लेता हँू, जिसका कोई शुल्क नहीं लेता, मैं समझाता हँू कि आसन योगा नहीं है बल्कि मन और शरीर का योग योगा है, जीवन की हर गतिविधि योगा है बशर्तें मन और शरीर एक समय में एक ही कार्य में लिप्त हो। चल रहे हैं तो सिर्फ चलने में ध्यान है, खाना खा रहे हैं तो सिर्फ खाने में ध्यान हैं, किसी की बात सुन रहे हैं तो सिर्फ उसकी बात सुनने में ध्यान हैं, कुछ पढ़ रहे हैं तो सिर्फ पढऩे में ध्यान है, यही योग है शरीर और मन का, दोनो एक जगह स्थित होने चाहिये, इससे आपका कार्य 100 प्रतिशत सफल होगा और जीवन में कभी भी आपको असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। आज 62 वर्ष की उम्र में भी मैं प्राकृतिक चिकित्सा, ध्यान और इस तरह के योग के कारण ही हैल्थ, हैप्पीनेस, पीस और प्रोस्प्रेटी का जीवन जी रहा हँू यही मेरे जीवन की सफलता का मूल मंत्र है।

गेहूं छोडक़र मक्की खाणों, वल्लभनगर छोडर कठै ही नहीं जाणो
जब मैं छोटा था तो दादी मेरे पिताजी से कहती थी कि घर के दरवाजे खुले रखो, कोई भी जरूरतमंद दरवाजे पर आ जाये तो पानी के लिये जरूर पूछते, खाने का समय हो तो खाने के लिये बोलते थे, दादी पिताजी को वल्लभ नगर के बाहर काम करने नहीं जाने देती थी और कहती थी ‘गेहूं छोडक़र मक्की खाणों, वल्लभनगर छोडक़र कठै ही नहीं जाणो’, इसका मतलब कि वे कम में भी संतुष्ट रहते थे और कहते थे कि हमारे पास खुद का खाने का है, दरवाजे पर कोई भी जरूरतमंद आ जाये उसको खिलाने का है तो और क्या चाहिये जो बाहर जाकर काम करें। मेहमान आते तो चावल बनते, हम बच्चे किसी से कहते कि आज चावल खाकर आये हैं तो वह पूछ लेते कि आज कौन मेहमान आया है। दाल बाटी बनती और खिचड़ी बनती तो खिचड़ी को हाथ से घुमाते और परसगारी करने वाला बाल्टी और मग में देशी घी लेकर घी डालता, तीन आदमी बैठे हो तो एक बार में 300 ग्राम घी डाल देता जिसे सारा चाट जाते।
समाजसेवा बड़े शहरों की जरूरत, छोटी जगह भुखमरी नहीं
छोटी जगह कोई कभी भूखा नहीं मरता, सबको पता होता है कि किसके घर में आज क्या बना है, कौन मेहमान आया है, किसी के घर खाना नहीं बना तो भी पता होता है तो दूसरे उसका सम्मान रखते हुए कि आज ज्यादा सब्जी बन गई थी तो ये ले लो, मदद भी कर देते हैं और अहसान भी नहीं जताते, मदद के नाम पर उसके सम्मान पर आंच भी नहीं आने देते, तो मैं मानता हूं कि छोटी जगह, गांवों में सब एक दूसरे की मदद कर देते हैं बिना जतलाये, बिना गिनाये कि हमने तुम्हारी मदद की, और बड़े शहरों में लोग भूखों मर जाते हैं, सब कुछ गाड़ी बंगला सब लोन पर, जिसकी किस्तें जा रही है, अब किसी को कह भी नहीं सकते कि खुद ही भूखे मर रहे हैं तो जरूरतमंद पड़ौसी की मदद कैसे करें तो वहां पर समाजसेवकों द्वारा, भामाशाहों द्वारा, सरकार द्वारा मदद की जरूरत पड़ती है। राजस्थान के गांवों में आज भी शादी ब्याह होते हैं तो जब बैठकर जीमण कराया जाता है तो वॉलेन्टियर की कमी नहीं पड़ती, सब पुरसगारी करने लग जाते हैं, शहरों में तो ऐनटाईम पर सूटबूट पहनकर बाबूजी बनकर जाते हैं सीधे खाना खाते हैं और आते समय औपचारिक तौर पर मिलकर लिफाफा पकड़ा कर आ जाते हैं, इसलिये शहरों में ही समाजसेवा की जाती है और वहीं वॉलेन्टियर की जरूरत पड़ती हैं।
राजस्थान और राजस्थानियों का भविष्य उज्ज्वल
राजस्थान और राजस्थानियों का भविष्य हमेशा ही उज्ज्वल है, क्योंकि राजस्थानी जो ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं, स्वाभिमानी होते हैं, परिश्रमी होते हैं, हर परिस्थिति में ढ़लने वाले होते हैं, उनमें कुछ भी करने की सामथ्र्य हैं, उनको धोती और लोटा देकर भी देश से निकाल दिया जाये तो वह सफल होकर दिखा देते हैं, मैं खुद दुबई में एक हजार दिहराम दुबई की मुद्रा और एक अटैची लेकर आया था, और यहां जो भी किया अकेले किया, खुद ने किया, राजस्थानी पत्थर भी फोड़ेगा तो पत्थर में से भी पानी निकाल लेगा, वह दुनिया के किसी भी कोने से अपने को स्थापित कर सकता है।
राजस्थानी की आन-बान-शान निराली
राजस्थानी का पहनावा, उसके जीने का तरीका उसकी ईमानदारी की तुलना हो ही नहीं सकती, इसीलिये राजस्थानी पर पूरी दुनिया में कोई भी विश्वास कर लेता है कि ये व्यापारी हैं और ईमानदारी इनकी सर्वोत्तम नीति है, यह इज्जत को बड़ा मानते हैं। चित्तौड़ के महाराणा प्रताप तो इसका उदाहरण हैं कि जब वह जंगलों में थे और घास की रोटी खाते थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, कविता भी है ‘अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावडौ ले भाग्यो, नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।’ उन्होंने अपने पुत्र को भी घास की रोटी खिलाना मंजूर किया लेकिन अपनी आन-बान-शान पर आंच नहीं आने दी, तो राजस्थानी गरीब भी होगा तो भी उसकी आन-बान-शान ही निराली है।