शारदीय नवरात्र सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि इसके पीछे एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कथा छुपी है। राम-रावण युद्ध के समय मां दुर्गा की अकाल आराधना से शुरू हुई यह परंपरा आज भी शक्ति, विजय और भक्ति का प्रतीक बनी हुई है। अलग-अलग राज्यों में इसे विविध सांस्कृतिक रंगों के साथ मनाया जाता है।
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शारदीय नवरात्र की शुरुआत: श्रीराम द्वारा अकाल बोधन से शुरू हुई परंपरा।
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नवरात्र का महत्व: शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक पर्व।
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दुर्गा पूजा की परंपराएं: देशभर में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में उत्सव।
रामायण से जुड़ा है शारदीय नवरात्र का रहस्य
शारदीय नवरात्र की शुरुआत सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक घटनाक्रम से जुड़ी है। त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम लंका में रावण का वध करने पहुंचे, तब देवताओं ने उन्हें मां दुर्गा की उपासना करने की सलाह दी। लेकिन उस समय दक्षिणायन काल था, जिसमें देवता योगनिद्रा में रहते हैं और पूजन वर्जित होता है।
जब श्रीराम ने तोड़ी परंपरा, और रचा इतिहास
विजय की कामना के साथ श्रीराम ने मां दुर्गा की अकाल आराधना की — यानी देवी को समय से पूर्व जगाया। उनके द्वारा शुद्ध हृदय और श्रद्धा से की गई पूजा से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। नतीजतन, दशमी के दिन रावण का वध हुआ और तभी से इस दिन को विजयदशमी या दशहरा कहा जाने लगा।
शारदीय नवरात्र की शुरुआत यहीं से मानी जाती है
रामायण की इस प्रेरणादायक घटना के बाद शारदीय नवरात्र का चलन शुरू हुआ। यह माना जाता है कि जब भी जीवन में कोई बड़ा संकट आए, मां दुर्गा की सच्चे मन से आराधना करने से शक्ति और विजय प्राप्त होती है। इसलिए आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले इन नौ दिनों को शक्ति उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
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ये पर्व सिर्फ पूजा नहीं, सांस्कृतिक एकता का भी संदेश है
भारत के हर राज्य में नवरात्रि के रंग अलग होते हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में भव्य पंडालों और मूर्तियों से पूरा माहौल जगमगा उठता है। गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया की धुनों पर रात भर थिरकते लोग इसे सांस्कृतिक उत्सव का रूप दे देते हैं।
उत्तर भारत में रामलीला बनती है नवरात्र की खास पहचान
वहीं उत्तर भारत में नवरात्र के दौरान रामलीला मंचन और रावण-दहन की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। ये आयोजन न केवल धार्मिक आस्था को जगाते हैं, बल्कि सामाजिक जुड़ाव और लोक परंपराओं को भी जीवित रखते हैं। यही कारण है कि शारदीय नवरात्र सिर्फ एक पर्व नहीं, एक साझा सांस्कृतिक अनुभव है।