जनता के दुख-दर्द को भूल डाक्टर्स को बस अपने स्वार्थ की चिंता
आशुतोष गर्ग
जनता की सेवा करने की कसमें (शपथ) खाने वाले चिकित्सक आज अपने स्वार्थ के लिए सड़क उतरे हुए हैं। राज्य सरकार द्वारा लाए गए राइट टू हैल्थ बिल को लागू करने का विरोध कर रहे हैं। मरीजों की चिंता तक नहीं है। अस्पतालों में मरीज तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे हैं और धरती के भगवान पत्थर दिल बने यह तमाशा देख रहे हैं। उन्होंने अपनी हठधर्मिता अपनाते हुए साफ कह दिया है कि जब तक सरकार बिल वापस नहीं लेती तब तक उनका विरोध-प्रदर्शन जारी रहेगा और वे मरीजों का इलाज नहीं करेंगे।
उन्हें कौन समझाए कि यह बिल सरकार उन्हीं की सहमति से तो विधानसभा में लाई थी और सर्वसम्मति से उसे पास भी कराया था। बिल पास होने के बाद प्रदर्शन करना चिकित्सकों की ही किरकिरी करा रहा है। अब अपनी साख बचाने के लिए डॉक्टर्स और निजी अस्पतालों के मालिक बिल को जनविरोधी बता रहे हैं। राइट टू हैल्थ बिल जनविरोधी होता तो क्या प्रदेश की जनता इतनी मूर्ख और अंधी है कि वह यह तमाशा देखती रहती। तुम्हारी तरह वह भी सड़क पर उतर आती, लेकिन ऐसा नहीं है। यह बिल कोई जनविरोधी नहीं है। यह बिल उन निजी अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए है, जो समय पर मरीजों का इलाज नहीं करते और उनके परिजनों के साथ लूट-खसौट मचाते हैं।
जान लेवा हुई डॉक्टर्स की हड़ताल
चार महीने के मासूम बच्चे से सांसे छीन लीं, माता पिता की मैरिज एनिवर्सरी के दिन घर आई बच्चे की लाश। हड़ताल के कारण रोजाना सैंकड़ों ऑपरेशन और जांचें टल रही हैं। जिनमें कैंसर, किडनी सहित गंभीर व अन्य बीमारियों के मरीज शामिल हैं। ऐसी अनगिनत घटनाओं का जिम्मेदार इन स्वार्थी डॉक्टर्स और अस्पतालों को बनाना चाहिए। जनता तो इन पर हत्या का मुकदमा चलना चाहती है ।
कोराना काल में निजी अस्पतालों की लूट-खसोट लोगों को याद है
आज निजी अस्पतालों की मनमानी किसी से छिपी नहीं है। कोराना काल के वे स्याह काले दिन भले अस्पताल मालिक भूल गए हों, लेकिन वे लोग शायद ही भूलें जो अस्पतालों की लूट-खसोट के शिकार हुए हैं। एंबुलेंस मालिकों और चालकों की मनमानी क्या कभी भूली जा सकती है। मात्र कुछ दूरी के लिए कैसे उन्होंने हजारों रुपयों की वसूली की थी। अखबारों की सुर्खियां बने वे चित्र आज भी हमारे जेहन में जीवित हैं, जिनमें मरीजों के परिजन एंबुलेंस के लिए गिड़गिड़ाते रहे थे, रो रहे थे। तब अस्पतालों के मालिक कहां थे।
कोरोनाकाल में अस्पतालों के रवैये और मनमानी पर खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक नाराजगी प्रकट कर चुके थे, लेकिन एक भी अस्पताल मालिक टस से मस नहीं हुआ। किसी को मरीजों पर दया नहीं आई। पैसे के अभाव में मरीज तिल-तिल मरते रहे और अस्पताल उन्हें दुत्कार कर भगाते रहे। अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए आज सरकार जब राइट-टू-हैल्थ बिल लेकर आई तो इनकी घिग्घी बंधी हुई है। एकजुट होकर सड़क पर उतर आए हैं। होना तो यह चाहिए था कि सरकार को बिल में कोई संशोधन ही नहीं करना चाहिए था और लड़ाई आर-पार की होनी चाहिए थी। अब जब बिल पास हो गया है तो सरकार को सख्त रवैया अपनाना चाहिए। क्योंकि आम जनता का पूरा समर्थन इस मामले में सरकार के साथ है और प्रदेश के हर नागरिक इन अस्पतालों की मनमारी परेशान हो चुका है।
सरकारी अस्पतालों की बदहाली सुधरे तो निजी अस्पतालों की मनमानी स्वत: बंद हो जाये
चिरंजीवी योजना, आरजीएचएस (राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम) और अब राइट-टू-हैल्थ बिल प्रदेश को निरोगी बनाने के मुख्यमंत्री के सपने को साकार करेंगे। इसलिए जरूरी है कि राजकीय चिकित्सालयों के रख-रखाव पर भी ध्यान दिया जाए। उनकी बदहाल स्थिति सुधरे। वहां दी जाने वाली सुविधाएं में इजाफा हो। अस्पतालों में रिक्त पड़े पद भरे जाएं। मरीजों को बेहतर इलाज की सुविधा मिले। यदि वाकई ऐसा हो तो निजी अस्पताल खुद-ब-खुद घुटनों पर आ जाएंगे। सरकारी अस्पतालों की बदहाली सुधरने से जनता को राहत तो मिलेगी, निजी अस्पतालों की मनमानी स्वत: बंद हो जाएगी।
ऐसे स्वार्थी डॉक्टर्स और निजी अस्पतालों पर होनी चाहिए करवाई
कोई परेशान जनता की तकलीफों देखे और पूछे तो अब ऐसे स्वार्थी डॉक्टर्स को धरती के भगवान कहने में भी शर्म आये। सरकार को ऐसे डॉक्टर्स और निजी अस्पतालों पर करवाई करनी चाहिए। जनता अगर न्यायालय में जाये तो इन तथाकथित डॉक्टर्स और अस्पतालों का क्या हाल होगा ये भी इन्हें सोचना चाहिए।