संस्कृति से जुड़ा हमारा संविधान

कलराज मिश्र –
राज्यपाल, राजस्थान

संविधान विधान भर नहीं है। यह भारतीय संस्कृति है। इसलिए कि भारतीय संस्कृति से जुड़ा जो दर्षन है, हमारी जो उदात्त जीवन परम्पराएं हैं-संविधान उसे एक तरह से व्याख्यायित करता है। मैं यह मानता हूं कि राष्ट्र कोई भू भाग भर नहीं होता है। यह अपने आप में विचार है। देष को विचार संज्ञा में देखने का अर्थ ही है, ऐसा राष्ट्र जिसमें स्त्री-पुरूष में, जाति और धर्म के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में किसी तरह का कोई भेद नहीं है। जहां अनुभव और ज्ञान सहभागी हैं। भारत का अर्थ ही है-ज्ञान और दर्षन की वह महान परम्परा जिसमें वैदिक ऋचाओं से लेकर आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्षन तक का सार आ जाता है। सारे विष्व को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सूत्र के साथ अपना परिवार मानने का संदेष हमारे राष्ट्र ने दिया है। हमारा संविधान इस उदात्त विचार का एक तरह से लिखित रूप है। संविधान का मूल, हमारी वह महान परम्परा है, जिसमें कहा गया है-

‘लोकाः समस्ता सुखिनो भवतु‘

लोक कल्याण में ही सबका सुख निहित है। संविधान का मूल आधार यही परम्परा है। संविधान को इसीलिए मैं भारतीय संस्कृति से अभिहित करता हूं।
भारत असल में राज्यों का संघ है। देष जब स्वतंत्र हुआ तो सबसे बड़ी चुनौती हमारे समक्ष यही थी कि कैसे कम समय में इस विषाल देष के संविधान का निर्माण किया जाए। पर यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस चुनौती को हाथ में लेते हुए संविधान बनाए जाने का कार्य प्रारभ हुआ। संविधान निर्माण के लिए बनी सभा के अथक प्रयासों से 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन तक निरंतर परिश्रम के बाद परिष्कृत होकर देष का संविधान भारत की जनता के सामने आया। संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष के तौर पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति हुई थी। दुनिया के सभी संविधानों को बारीकी से परखने के बाद हमारे संविधान को देष की विविधता की हमारी सामाजिक संस्कृति और समाज को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार कर लागू किया गया।

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि संविधान के मूल प्रारूप में भारतीय संस्कृति का कलात्मक चित्रण है। पृथिवी पर सबसे पुरानी सभ्यता के सांस्कृतिक मूल्यों के समग्र दृष्टिकोण को हमारा संविधान व्यंजित करता है। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आग्रह पर शांतिनिकेतन के कलागुरू नंदलाल बोस ने संविधान में कलात्मक चित्र उकेरे। राजस्थान के कलाकार श्री कृपाल सिंह शेखावत ने भी संविधान प्रारूप के कलात्मक स्वरूप में योगदान किया। महर्षि अरविंद के आध्यात्मिक राष्ट्रवाद, वैदिक काल से 20 वीं सदी तक की सनातन भारतीय परम्परा, भारतीय सभ्यता के आधारभूत ढांचे की समझ के साथ रामायण, महाभारत और भारतीय संस्कृति से महान परम्पराओं का संविधान के प्रारूप में विषेष चित्रण किया गया है।

मैं यह भी मानता हूं कि भारतीय संविधान विश्वभर के लोकतंत्रों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। मैंने संविधान का जितनी भी बार अध्ययन किया, यह पाया है कि देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का यह संचित प्रतिबिंब है। मानवीय अधिकारों और कर्तवयों का एक तरह से हमारा संविधान वैश्विक दस्तावेज है। इस संदर्भ में महात्मा गांधी की यह बात मुझे सदा याद आती है कि कर्तव्यों के हिमालय से ही अधिकारों की गंगा बहती है। संविधान हमें अधिकारों और कर्तव्यों के संतुलन की सीख देता है।

पूरी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तावना किसी संविधान की मानी गयी है तो वह हमारे देश की है। संविधान की प्रस्तावना में इसकी शक्ति सीधे जनता में निहित की गयी है। संविधान उद्देशिका के ‘हम भारत के लोग’ शब्दों से लोकतंत्र का आदर्श स्वतः स्पष्ट होता है। मैं यह मानता हूं कि ‘हम भारत के लोग’ केवल वाक्य भर नहीं हैं। यह हमारी महान भारतीय संस्कृति का एक तरह से जीवन दर्शन है।

मैंने राजस्थान में राज्यपाल बनने के बाद अपनी सबसे पहली प्राथमिकता विश्वविद्यालयों में संविधान पार्कों के निर्माण की रखी। इसके पीछे उद्देश्य यही रहा है कि देश की जो नई पीढ़ी है, युवा-जनमानस है-उसमें संविधान के प्रति आस्था और विश्वास जागृत हो। विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले युवा वर्ग संविधान की हमारी संस्कृति से सीधे तौर पर जुड़ सके। मुझे इस बात की प्रसननता है कि राजस्थान के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में संविधान पार्क बनाए जाने की मेरी मंशा पूरी हो रही है। मैं चाहता हूं, भारत के प्रत्येक नागरिक में यह आस्था बनी रहे। इसीलिए प्रदेश में जितने भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में मैं भाग लेता हूं, मेरा प्रयास रहता है कि वहां पर संविधान की प्रस्तावना और उद्देशिका और मूल कर्तव्यों का वाचन हो।

संविधान और शासन की मूलकार्य प्रणाली को लोकतंांत्रिक स्वरूप देते हुए हमने अपने देश को सच्चे अर्थों में गणतंत्र या रिपब्लिक घोषित किया है। गणतंत्र का तात्पर्य उस शासन व्यवस्था से है जिसका संवैधानिक मुखिया जनता के द्वारा चुना जाता है। भारत में संसदीय शासन व्यवस्था हैं इसीलिए राष्ट्रपति भारतीय गणतंत्र के सर्वोच्च नायक हैं और उनकी पद-स्थिति समस्त निर्वाचित सांसदों और विधायकों से प्राप्त विधिवत बहुमत से चुने हुए राष्ट्राध्यक्ष की होती है।

26 जनवरी 1950 से शुरू हुई भारतीय गणतंत्र की यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण रही है फिर भी भारत ने संसार में सबसे मजबूत लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की है। इसका बड़ा कारण यही है कि हमारा संविधान लोक मानस से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। संविधान के माध्यम से हमने एक लोककल्याणकारी राज्य के सर्वोत्तम स्वरूप को साकार किया है। संविधान में इसीलिए व्यावहारिक मौलिक अधिकार, कर्त्तव्य और राज्य के नीति निर्देशक तत्व दिए गये हैं।

भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। समय के जो परिवर्तन होेते हैं, उन सभी को स्वीकार करते हुए निरंतर इसमें आगे बढ़ने की प्रेरणा पर बल है। संविधान इसी की हमें निरंतर प्रेरणा देता है। भारतीय संविधान समता आधारित ऐसी व्यवस्था है जिसमें सभी को निर्भय रहते उच्च आदर्षों का जीवन जीने पर ही जोर दिया गया है। संविधान दिवस पर आईए, हम सभी महान संविधान निर्माताओं को नमन करते हुए लोककल्याण और लोकआराधन के कार्यों के साथ राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के सहभागी बनें।