टीकाकरण का फोटोकरण

‘जितने मुंह उतनी बातें। यह मुहावरा किसने घड़ा। कब घड़ा। किस प्रसंग पर घड़ा। यह कहावत है या मुहावरा। कहावत है तो उसपे भी वही सवाल जो मुहावरे पे लपेटे गए थे। ना उस का जवाब ना कहावत का। जब सच्चाई और हकीकत खुद जवाब हैं तो उन्हें दूसरे जवाबों की दरकार ही नहीं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

कब-क्यूं और कहां से चक्कर में ना फंस के साफ और स्पष्ट रूप से सोचा जाए-समझा जाए और उसके बाद सवाल खड़े किए जाएं तो ज्यादा बेहतर होगा। आज-कल सवाल खड़े करने का चस्का कुछ ज्यादा ही मचल रहा है। हम इसमें सियासत को नहीं लाना चाहते थे, मगर निगोडी ने यहां भी पैर पसार लिए। देश-दुनिया का ऐसा कोई कोना-खांचा नहीं जो सवालों से अछूता हो। हथाईबाज इस मसले पर इससे पूर्व भी कई बार चर्चा कर चुके हैं हर क्षेत्र में सवालों की घटा बनती है-बिगड़ती है।

सवालों के बादल छाते हैं-बिखरते हैं। हम यह नही कहते कि सवालों का साया लंबा नही होना चाहिए। आप सवाल कीजिए। शौक से कीजिए। आप प्रश्न खड़े कीजिए। आराम से कीजिए। आप पूरक प्रश्न पूछिए। मस्ती के साथ पूछिए मगर बेतुके सवाल करना अपने आप में घटियापन है। सवालों के लिए सवाल खड़े करना अपने आप में सवाल है। सियासत में पिछले लंबे समय से ऐसा ही हो रहा है। एक दल तो इसमें रच-बस गया लगता है।

हमारा सवाल ये कि उस दल का नाम बताइए। क्लू के तौर पे बताए देते हैं कि उसकी मुखिया टीम से लेकर चंगु-मंगु सवाल सागर में डूबे हुए हैं। कई गोते लगा रहे हैं तो कई सागर में कलाबाजिएं दिखा रहे है। पहले मुखिया शुरू होते हैं-उसके बाद चंगु-मंगु टर्राते हैं। आजकल एक लोकगीत कुछ ज्यादा ही मचल रहा है। बोल है-मेरी-‘ए सास के पांच पुत्तर थे, दो, देवर-दो जेठ सुणियो.. मेरे ‘रे करम में बावळिया लिखा था।

उसी तर्ज-तरन्नुम में कह सकते हैं कि मेरी ‘ए टीम में चार मुखिया थे..दो जीजा-साले, दो मां-बेटी सुणियो..। पहले टीम का एक सरदार शुरू होता है उस के बाद आदि-इत्यादि। सरकार के हर कदम पर सवाल खड़े करना उनकी लत बनता जा रहा है। आतंकवाद का सिर कुचलों तो सवाल। आतंकवादियों को मसलो तो सवाल। सर्जिकल स्ट्राइक पे सवाल। एयर स्ट्राइक पे सवाल। गुंडों-बदमाशों की अक्ल ठिकाने लगाओ तो सवाल। घुसपैठियों को ठोको तो सवाल। कार्रवाई नही करो तो सवाल। कार्रवाई करो तो सवाल। टीका ना लगवाया तो सवाल। लगवाया तो सवाल। क्यूं ना उसका नाम सवाल पार्टी रख दिया जाए। जहां एक सपा वहां दो। एक समाजवादी पार्टी-दूसरी सवाल पार्टी।

हथाईबाजों का सवाल ये कि कहीं जित्ते मुंह और उत्ती बात वाला प्रश्न उन्हें सामने बिठा कर तो खड़ा नही किया गया है। वो मुहावरा है तो है-कहावत है तो है। है तो सच्चाई से लबरेज। कई बार तो मुंह से ज्यादा बातें बहती दिख जाती है। लोग सामने क्या कहते हैं-पीठ पीछे कुछ और। कई लोगों के अंग-अंग में जुबान होती है। मुंह कुछ कहता है, आंखों में नाचता भैरू कुछ और संदेश देता है। हाथ कुछ कहता है-पांव कुछ और। आज कल जो चल रहा है उसपे भी चासागिरी कम होने का नाम नहीं ले रही। कोई कहता है-फोटो सेशन। किसी ने कहा-सेल्फी विद वेक्सीनेशन। कोई कहता है-टीके का फोटोकरण। कही से आवाज आती है-बिन फोटो सब सून। हो सकता है सबूत गंैग इस पर भी सबूत मांग ले लिहाजा भाईसेण फोटोज के साथ वीडियोपंथी भी तैयार रखते हैं।

देश में इन दिनों कोरोना वेक्सीनेशन का मौसम चल रहा है। पहला दौर शांतिपूर्वक तरीके से निपट गया अब दूसरा ऊफान पर। पहले दौर में जिनने टीके लगवाने थे, लगवा लिए। कई ने तो दूसरा टीका लगवा के कोर्स पूरा कर लिया। दूसरे दौर में भी फोटो’ज पर जोर। जैसे स्वच्छता अभियान के दौरान लोगों ने झाडू-तसले के साथ फोटो खिंचवाने पे जोर दिया था।

ठीक वैसे टीके का फोटो सेशन हो रहा है। क्या नेते-क्या अभिनेते। क्या आम-क्या खास। क्या लोग-क्या लुगाइयां। टीका लगवाते समय पूरा ध्यान कैमरे-मोबाइल की ओर। फोटो खिंचवाने के फेर में सूई का दर्द हवा। फोटो के बाद प्रतिक्रिया और संदेश अलग से। जब मतदान करने के बाद अंगुली पे लगा आसमानी टीका बताया जा सकता है, यहां तो सच्ची-मुच्ची का टीका लग रहा है, लिहाजा फोटो तो बनती है।

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