शुद्ध फरजी

पता है कि वो हमारी सलाह मानने वाला नहीं। वो अपने घरवालों की नही मानवता तो हमारी कैसे मानेगा। जब कोई अपने आप को पंैतीसमार खान समझने लग जाए तो अक्सर ऐसा ही होता है। हम चौड़े-संकरीगली। क्या पता भगवान सद्बुद्धि दे दे। हो सकता है उसकी अक्ल दाढ़ आ जाए और वो हमारी राय मान ले। हांलांकि इसकी तनिक भी गुंजाइश नहीं। चिन्नी सी भी नहीं फिर भी कल्पना करनेे में कौनसी जीएसटी लगती है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

हमें वो दिन याद है जब हम मान लीजिए और सपोज करिए से जुड़े सवालों का जवाब परीक्षा के दौरान दिया करते थे। इधर हिन्दी द्वितीय और उधर अंगेरजी सैकंड। हिन्दी में सवाल आता कि मान लीजिए आप अपने शहर से दूर किसी अन्य शहर में अध्ययन कर रहे हैं और आप को कुछ रूपयों की जरूरत है। आप अपने पिताजी को इस संबंध में पत्र लिखिए। ऐसा ही सवाल अंगरेजी सैकंड के परचे में आता तो मान लीजिए अथवा फर्ज कीजिए के स्थान पे सपोज करिए का उल्लेख होता। वही राग यहां भी लागू हो सकती है। मान लो कि वह हमारी बात मान लेे तो? इसको अगर सुर दें तो निकलेगा-‘सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो।

कई बार दिल को तसल्ली देने के लिए भी ऐसा रूप-सिणगार करना पड़ जाता है। मान लो। सोच लो। फर्ज करो। और तो और कई बार इसमें बुआसा और भूड़ोसा को भी घसीट लिया जाता है। बुआ अपने घर-परिवार में मस्त। भूड़ोसा दुकान पे। इसके बावजूद उन्हें पपलू बना दिया जाता है। कहा जाता है-‘बुआसा के मूंछें होती ता भूड़ों सा कहलाती। यह कल्पना नही तो और क्या है। जब कल्पना के तार अंकल-आंटी से जुड़ सकते हैं। तो हमारी राय मानने से क्यूं नहीं। राय-सलाह पर कोई यह ना समझे कि हम किसी केे फट्टे में टांग अड़ा रहे हैं। इस समझ का कारण ये कि आज-कल रायचंद-मश्विरानंद बनना लोगों की लत बनता जा रहा है।

महंगाई के इस आलम जो चीजें सस्ती हैं उनमें सलाह भी शामिल। सबसे सस्ती इंसान की जिंदगी। अगर कोई सिगरेट के लिए किसी के हत्या कर दे तो आप उसे क्या कहेंगे। पता है कि गुस्से और लत में मानखा अपना आपा खो देता है इसका मतलब ये तो नही कि रूपड़की-दो-पांच रूपड़की के लिए कोई किसी की जान ले ले। दूसरी सस्ती है किसी की इज्जत उछालना। जिसे देखो वो एक-दूसरे के मांजणे में धूड़ टेक रहा है। जब कुछ ना बन सके और तमाशा बना दो। अब इस सूची में राय बहादुरों का नाम भी जुड गया।

एक जमाने में हर गंभीर मसले-मुद्दे पर बड़ो-सयानों की राय ली जाती थी। घर के बुजुर्ग भी सब का मन टटोल के फैसले लिया करते थे। आज बुजुर्ग हाशिए पे। घर खाली और वृद्धाश्रम फुलमफुल। कोई राय ना मांगे तो भी देने वाले तत्पर। सलाह देने में तनिक भी मंूजीपना नहीं। कोई नहीं मांगे तो भी पुरसगारी में कमी नहीं। हम ने ऐसे भतेरे लोग देखे जिन की सलाह खुद उनके परिजन नही मानते मगर वो आस-पड़ोस में सलाह देते फिरते देखे जा सकते हैं। लोग भले ही उन्हें पंचायती लाल कहे तो कहे।

पण हथाईबाज जिस को जो सलाह दे रहे हैं उसके पत्ते खुलने पर आप खुदी कह दोगे कि बात हंडरेड परसेंट सही है। यह राय तो कब की दे देणी चाहिए। उसने जो भी किया वह नया तो है नहीं। आखी दुनिया उसके कार्य कलापों से वाकीफ है। वो भेदिया। वो विस्तारवादी। वो छलिया। वो कपटी। वो धोखेबाज। वो ठग। वे नाटकिया। जैसा वो वैसा उसका शागिर्द। जैसा गुरू वैसा चेला। दोनों शुद्ध फरजी। दुनिया मेें फरजी नंबर वन और टू।

कभी ये नंबर वन पर कभी टू पर। हमारी सलाह गुरू से कि वो अपने उत्पादों पर शुद्धता साबित करने वालों को ईनाम देने की छाप जरूर ठुकवाए। उसका माल तो डुप्लीकेट-तिप्लीकेट-चौप्लीकेट है ही, दान-भेंट में भी हंडरेड परसेंट मिलावट। गुरू-चेले मुल्क का जिक्र आने पर कई लोग समझ गए होंगे कि इशारा किस की ओर है। नहीं समझे तो हम बताय देते हैं कि गुरू चीन और चेला पाकिस्तान। अपने यहां एक कहावत आम है कि ‘डाकण भी एक घर छोड़ती है मगर चीन ने डायन को भी पीछे छोड़ दिए। उसने डायन को भी अच्छा कहला दिया।

हुआ यूं कि उसने अपने यहां निर्मित कोरोना वैक्सीन की पांच लाख डोज पाक को डोनेट की। मगर उसमें भी घपला हुई गवा। पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान और उसकी बीवी ने अपने उस्ताद देश से आई वैक्सीन लगवा ली। सोचा कि कोरोना से बचाव हो जाएगा मगर धोखा हो गया। वैक्सीनेशन के दूसरे दिन दोनो धणी-लुगाई कोरोना पॉजिटिव हो गए। वो होम आइसोलेशन में है।

ऐसे में हथाईबाजों ने चीन को अपनी राय देकर कोई गलती थोड़े ही की। उसे अपने सारे उत्पादों पर ‘शुद्ध नकली का ठप्पा ठुकवा देना चाहिए। जैसा वो-वैसे उसके उत्पाद। देने वाला फरजी और लेने वाला भी फरजी।