
हमें लगता है कि दूसरे-तीसरे-चौथे या पांचवें-छठे सवाल घड़ीज गए होंगे। हो सकता है कि भाईसेण पहले वाले सवाल को गुड़ीमुड़ी करके वापस परोस दें। कह दें-अब क्या.. पहले लगवाते तो जाणते। हो सकता है-उधर भी सवालागिरी पक रही हो। कल को वो भी कह देंगे कि माताजी ने पहल क्यूं नहीं की। उनको चिट्ठी लिख कर पहले मैं और मेरा गीगला.. की मांग करनी चाहिए थी। अब क्या..दूसरे-दौर में वैसे भी उनका नंबर आ जाणा है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
सवालों पर जितनी चर्चा की जाए, कम है। सवाल सागर की गहराई कोई नाप नही सकता। सवाल सागर की लंबाई नापना किसी के बूते की बात नहीं। सवाल सागर की चौड़ाई किसी के पुरखे भी नाप नही सकते। पहला सवाल ये कि ये सागर कहां से आया। जवाब ये कि ये कोई सवाल नही हुआ। कल को हम भी पूछ सकते हैं कि हिन्द महासागर कहां से आया। सागर त्रिपोलिया बाजार में तो मिलता नही हैं, गए और थैली में डाल के ले आए और रख कर पानी भर दिया। लो भई बन गया सागर..। दूसरा जवाब ये कि जब गुलाब सागर हो सकता है। जब फतेहसागर हो सकता है। जब अना सागर हो सकता है। जब बत्ता सागर हो सकता है। जब उम्मेद सागर हो सकता है, तो सवाल सागर क्यूं नही हो सकता।
तीसरा सवाल ये कि क्या जिस में पानी हो, उसे ही सागर कहते हैं। इस पर लंबी-चौड़ी-मोटी-तगड़ी बहस हो सकती है। हो सकता है तारीख पे तारीख मिल जाए। जानने वाले जानते हैं कि कोर्ट चढना आसान है, फैसला कब आएगा-कोई कुछ नही कह सकता। सागर पर एक पक्ष कहेगा कि सागर वही जिस में पानी हो। दूसरे पक्ष का तर्क भी सॉलिड-तो भाई ज्ञान सागर के आगे सागर क्यूं लगाया। किसने लगाया। कब लगाया। किस को पूछ के लगाया। एनओसी ली या फल्लूबाजी हो रही है। तीसरा पक्ष यही तर्क प्रेम सागर पे दे सकता है। चौथा पक्ष गंगा सागर की नजीर पेश कर सकता है। ऐसा होने पर तारीख पे तारीख मिलने के पूरे आसार। लिहाजा अपण हथाई पे ही चिंतन-मनन-मंथन कर बीच का रास्ता निकाल लेंगे। फालतू की अड़ाअड़ी करने से क्या फायदा। हम आढ़तिए या बिचौलिए तो हैं नहीं जो किसान बन कर अड़ जाएं। कानून वापस लेने से कमतर बात ‘इज नही। अरे भाई सरकार इत्ता झुक रही है तुम भी दो कदम आगे बढो मगर वो अमचूर की तरह अकड़े बैठे हैं। हथाईबाजों को फैसला लेना आता है। इसका मतलब ये नही कि वो समानांतर शासन चला रहे हैं वरन ये कि दोनों पक्ष थोड़ी सी बड़ी विचार लें तो हर मामले का एक मिनट में सुलटारा हो सकता है।
पहला सवाल किसने किया। कब किया। ईसा पूर्व किया अथवा ईसा के बाद किया। किस मुद्दे पे किया। ‘सीÓ ने किया या ‘ही ने किया। उस का जवाब किस ने दिया। जवाब विस्तृत था या औछी में काट दी। जवाब सही था या गलत। यह जरूरी नही कि हर सवाल का हर जवाब सही हो, कई बार गलत भी हो जाते है। सवालों से दुनिया अटी पड़ी है। जवाब मिले या ना मिले-सवाल तैयार। पूरी प्रश्नावली तैयार। नए मेहमान के आगमन से लेकर अंतिम यात्रा तक सवाल ही सवाल। कई बार तो किसी के राम प्यारा-अल्लाह दुलारा होने के बाद भी सवाल तैरते रहते हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं-क्षेत्र का कोना खांचा नहीं, जहां से सवाल की आहट ना आती हो। तभी तो सवालों को सागर की सूची में स्थान देकर सागर की स्थापना की। कक्षा में सवाल। समाज में सवाल। इम्तिहान में सवाल। साक्षात्कार में सवाल। शादी-सरपण की बात चले तो सवाल। खाने-पीने पर सवाल। कुछ सवाल तो आम। खुली दीदों से दिख रहा है कि भाईजी गाड़ी धो रहे हैं उसके बावजूद पड़ोसी सवाल दाग देगा-कई सा गाड़ी धुप रही है। ऐसे में यह तो जवाब देने से रहे कि नही भाई, रोटी खा रिया हू ं। इसके इतर कई खायो। कठै-जा रिया हो। कांई हो रियो है। बैठा हो। कई खायो। कई बणाओ और आ गिया सा सरीखे सवाल आम हैं। पुलिस थानों और कोर्ट-कचहरियां तो सवालों पर ही टिके नजर आते हैं। अस्पतालों में इलाज बाद में सवाल पहले। बीमारी के बारे में पूछना तक तो ठीक है। क्या करते हो। कहंा रहते हो। शादी हो गई या कुं आरे हो। ससुराल कहां है, सरीखे सवाल बेमानी लगते हैं। सियासत में तो सवाल ठाठे मारते है।
राजनीति में सवाल खड़े करने की परंपरा रही है। खामखा के सवाल। बे-सिर-पैर के सवाल। ऐसा लगता है मानों पंचायती भुआ की पंचायत चल रही हो। कोरोना टीके को लेकर पंजावानों ने सवाल उठाए थे। उसके मुनीमों का कहना था कि पहले प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों को टीका लगवाना चाहिए था ताकि लोगों को टीके पर विश्वास हो जाता। ये कैसा सवाल भाई। कल को तो दूसरे पाले वाले कह देंगे कि तुम्हारी पार्टी की अम्मा ने यह मांग क्यूं नही उठाई कि पहले मेरे और मेरे गीगले को टीका लगाया जाए। जब पहले तय हो गया कि पेलीपोत ये-ये लोग टीका लगवाएंगे। फिर इन का नंबर-फिर उनका। पीएम का मतलब ये तो नही कि खुद की बनाई लाइन तोड़ के बीच में घुस जाए। पंजावानों को तो नियम की तारीफ करनी चाहिए थी मगर सवाल उठा दिए।
अब पीएम सर राज्य के मुख्यमंत्रियोंं-सांसदों और अन्य माननीयों की बारी आने वाली है। शंका है कि सवाली खान उसपे भी सवाल खड़े ना कर दे-‘अब लगाणे से क्या फायदा, धरते ‘ इ लगवाते तो जानते।Ó ऐसे बेतुके सवालों का जवाब किसी के पास नही।