राजस्थानी भाषा को उसका यथोचित सम्मान लौटाने की जरूरत

डॉ शिवदान सिंह जोलावास

आजादी की लड़ाई से लंबी राजस्थानी भाषा की लड़ाई

आदिम सभ्यता के बाद जैसे ही मनुष्य गुफाओं से बाहर निकला सामाजिक संरचना का विकास हुआ। वह अपने भाव प्रकट करने के लिए संकेत काम में लेता था लेकिन कालांतर में वह संवाद प्रक्रिया में विकसित हुई और दुनिया के अलग अलग क्षेत्रों में सभी ने अपनी जुबान/भाषा व लिपि का विकास किया। सभ्यता और संस्कृति के विकास क्रम में भाषाएं उसका प्राण है जो समुद्र की गहराई तक मनुष्य के अंतर्मन में बैठी हुई है। दुनिया की किसी भी भाषा में एकरूपता नहीं मिलेगी लेकिन मनुष्य के विकास के साथ भाषाओं ने अपने शब्दों का आदान प्रदान किया है, इसलिए राजस्थानी जैसी भाषा के शब्द फ्रेंच और अरब के साथ रूस की कई घुमंतू जातियों तक पहुंचे। राजस्थान विश्व के समक्ष वह अनूठा प्रदेश है जो वीरता का पर्याय माना गया। यहां की संस्कृति शौर्य, साहित्य और कला का केंद्र है। देश धर्म की रक्षा के लिए गौरवपूर्ण आहूति देने वाले युवाओं की जन्मभूमि, अनगिनत नारियों के शौर्य से सिंचित इस तीर्थ को विदेशी लेखक थर्मोपोली की संज्ञा देते हैं। राजस्थान के आठ करोड़ प्रदेश वासियों की अपनी भाषा है जिसका विकास वैदिक काल से हुआ है।

राजस्थानी भाषा का विकास
राजस्थानी भाषा के विकास क्रम में इसका नाम मरू भाषा था, सन् 778 वि.संवत 835 में रचित कुवलयमाल ग्रंथ की रचना जैन संत उद्दतन सूरी ने कर तत्कालीन प्रचलित 18 भाषाओं के नाम भी उसमें उद्धृत किए। भाषा विज्ञानी जॉर्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक ऑफ सर्वे ऑफ इंडिया में राजस्थान प्रांत की भाषाओं का नाम राजस्थानी दिया। भारतीय भाषा परिवार में राजस्थानी का छठा और दुनिया में सोलहवां स्थान है। यूनेस्को की एटलस ऑफ वल्र्ड लैंग्वेज इन डेंजर के हिसाब से विश्व की 230 भाषाएं समाप्त हो गई है। भारत की 197 भाषाओं के साथ 2064 भाषाएं अपने पतन की और बढ़ रही है, समय पर इनका संरक्षण नहीं किया गया तो यह लुप्त हो जाएंगी। विद्वान लोग इसका सबसे बड़ा कारण भाषा को रोजगार की भाषा नहीं बनाना बताते हैं। इन भाषाओं में विशिष्ट पुरस्कार भी है, एक समृद्ध साहित्य लिखा जा रहा है, लेकिन रोजगार का अभाव है। चीन, जापान, कोरिया जैसे कई देश ने निरंतर तरक्की कर अपनी मातृभाषा के साथ शिक्षा, तकनीक और रोजगार का प्रबंधन किया है।

राजस्थानी भाषा के लिए विशिष्ट प्रयास की जरूरत
व्यक्ति की मातृभाषा में शिक्षा नहीं देना उसके साथ छल है व उसके मौलिक अधिकारों का हनन भी है। राजस्थानी भाषा के व्याकरण में विशेषकर मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाड़ौती, वागडी, ढूंढाडी, शेखावटी, मालवी, मेवाती, बृज आदि बोलियां है इन सब से मिलकर राजस्थानी भाषा बनी है। राजस्थानी भाषा की पुरानी लिपि मुडिय़ा नाम से पहचानी जाती थी जिस के अन्य नाम मोडकी, महाजनी और वाणीयावटी है। इस लिपि का विकास डॉ. मोती लाल मेनारिया अकबर के दरबारी कवि टोडरमल को मानते हैं। इस लिपि में अक्षर के ऊपर बिना मात्रा लगाएं लिखा जाता है। आधुनिक काल के साथ राजस्थानी के रचनाकार देवनागरी लिपि में साहित्य सृजन करने लगे हैं। आठवीं अनुसूची में सम्मिलित 22 भाषाओं में से 9 भाषाएं देवनागरी में लिखी जा रही है। राजस्थानी वर्णमाला की अपनी विशेषता होने से इसका व्याकरण अपना वजूद रखता है। इसकी स्वर और व्यंजन की पृथक पृथक ध्वनियां हैं, जिसका व्याकरण बहुत गहरा है। राजस्थानी भाषा के सम्मान और मान्यता की लड़ाई देश की आजादी के पहले से चल रही है। दुनिया के प्रमुख उद्योगपति प्रवासी मारवाड़ी/राजस्थानी है। सन 1950 से लेकर 80 के दशक तक सिनेमा के गीत राजस्थानी में देखने सुनने को आते हैं। राजस्थानी यहां के रोजगार की भाषा बने यह बहुत आवश्यक है। यूनेस्को की विलुप्त होने वाली सूची में इसे बचाने के लिए जिस तरह अरुणाचल प्रदेश की वांचो भाषा और बवंग लोसू नाम से नई लिपि की रचना कर दी गई, उत्तराखंड में गढ़वाली को रोजगार से जोडऩे के प्रयास किए गए, वहीं मणिपुर में स्थानीय भाषा कोक-बोरोक के विकास के लिए विशिष्ट प्रयास किए गए शासकीय कर्मचारी, विशिष्ट अधिकारी और जनप्रतिनिधियों की स्थानीय भाषा में शिक्षण हेतु कक्षा लगाई गई ऐसी ही जरूरत राजस्थानी के साथ लगती है।

आईएएस को 2 साल के अंदर उस प्रदेश की भाषा सीखनी होती है
भारत के कई राज्यों में प्राथमिक शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दी जाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी इसी की पालना के लिए कहती है, इसलिए रोजगार की संभावनाएं बढ़ती जाती है। तेलुगु सम्मेलन के उद्घाटन में मातृभाषा पर गर्व करते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति महोदय ने रोजगार के लिए तेलुगु अनिवार्य करने का सुझाव दिया। वहीं पंजाब में और महाराष्ट्र में साईन बोर्ड से लेकर नौकरी भी स्थानीय भाषाओं में रोजगार सर्जन कर रही है। तमिलनाडु सरकार राज्य की सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में तमिल भाषा की अनिवार्यता पर बल देती है। राजस्थान प्रदेश में किसी भी राज्य का अभ्यर्थी परीक्षा दे रोजगार ले सकता है। यहां के भाषा संस्कृति और ज्ञान की किसी प्रकार की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है। संघ लोक सेवा आयोग की सेवा में भी आईएएस को 2 साल के अंदर उस प्रदेश की भाषा सीखनी होती है तभी उसे फील्ड पोस्टिंग दी जाती है, लेकिन राजस्थान में इसका अभाव है। राजस्थानी बोली के साथ यहां की संस्कृति अनूठी पहचान रखती है। 1936 से 1955 तक राजभाषा आयोग बना, तत्पश्चात हिंदी के प्रवेश के साथ राजस्थानी को चतुराई से बाहर कर दिया गया। राजस्थानी साहित्य के लेखकों को पद्मश्री जैसा पुरस्कार दिया जाता है, लेकिन रोजगार के नाम पर कोई विशेष आरक्षण नहीं। राजस्थान का लोक संगीत घूमर संसार के 10 बड़े नृत्य में चौथे स्थान पर है। यहां का कालबेलिया नृत्य विश्व विरासत की सूची में है। ढाई लाख से अधिक शब्दों वाला शब्दकोश पद्मश्री सीताराम लालस द्वारा बनाया गया। अमेरिका की लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस की 13 समृद्ध भाषाओं में राजस्थानी का स्थान है। 2011 की जनगणना में 4 करोड़ 50 लाख से अधिक लोगों ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी लिखवाई। राजस्थानी भाषा में यूजीसी नेट की परीक्षाएं होती है, फेलोशिप दी जाती है नेपाल और मॉरीशस देश में जिसे मान्यता दे रखी है, तथा साहित्य अकादमी के पुरस्कार दिए जाते रहे हैं।

राजस्थानी भाषा का विगसाव
विस्तृत फलकपर देखा जाए तो दिल्ली का धौळा कुआं, उत्तराखंड की नैनी ताळ और हरियाणा की पीळी भींत शब्दों ने राजस्थानी की विस्तार की यात्रा को स्वत: प्रमाणित किया है, यह राजस्थानी के देशज शब्द हैं लेकिन इतनी दूर इनका स्थायित्व राजस्थानी भाषा का विगसाव है। 25 अगस्त 2003 से जिसकी मान्यता के संबंध में राज्य सरकार द्वारा सर्व सम्मत प्रस्ताव केंद्र में भिजवा रखा है। राजस्थानी भाषा की अकूत साहित्य संपदा है, उसे संवैधानिक दर्जे के अभाव में राजस्थान का नौजवान पिछड़ता जा रहा है। राजस्थानी की कोई लिपि नहीं होना बताकर भ्रम पैदा किया जा रहा है, जबकि देश प्रदेश के कई संग्रहालय में लाखों बहिया और पांडुलीपियां राजस्थानी की मौजूद है जिसे पढऩे वाले और समझने वाले नहीं है। राजस्थानी की मान्यता के साथ रोजगार के दरवाजे खुलेंगे। राजस्थानी नाटक, लोक कला की परंपराओं, रंगमंच, रेडियो उद्घोषक, पत्रकार, लेखक, सिनेमा उद्योग, कहानीकार, निर्देशक आदि के लिए रोजगार के अवसर मिलेंगे। पर्यटन विभाग राजस्थानी के कार्यक्रम से लोक कला और संगीत का प्रचार प्रसार कर देश में पर्यटन को बढ़ावा दे सकेगा। आधुनिक तकनीक के साथ अनुवाद का सॉफ्टवेयर भी तैयार किया जा सकता है। राजस्थानी के अखबार टीवी चैनल आदि के साथ साथ विद्यालय महाविद्यालय में अध्यापक प्राध्यापक के पदों की भर्ती के अवसर मिलेंगे। 21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की सार्थकता तभी रहेगी जब 8 करोड़ लोगों को उसकी मां भाषा का सम्मान मिलेगा।

राजस्थानी भाषा को उसका यथोचित सम्मान लौटाएं
राजस्थानी के लिए 156 विधायकों ने अपनी भावना से मुख्यमंत्री महोदय को अवगत कराया है। इस संबंध में 2022 के बजट सत्र में इस विषय पर बिहारीलाल बिश्नोई ने लंबी तर्कसंगत बहस विधानसभा में प्रस्तुत करी इससे पहले शीतकालीन सत्र में भी विधायक जोगेश्वर गर्ग ने पुख्ता प्रमाण के साथ राजस्थानी पर अपनी बात रखी लेकिन राज्य सरकार ने इस विषय को युवाओं के रोजगार से नहीं जोड़ा। अन्य राज्यों की भांति राजस्थानी को प्रदेश की राजभाषा बनाकर यहां के नौजवानों के लिए रोजगार के अधिक अवसर विकसित किए जा सकते हैं, जैसा कि झारखंड में 18 भाषाओं को प्रदेश की राजभाषा बनाया गया है। केंद्र सरकार में भेजा गया प्रस्ताव लंबे समय से अनुत्तरित है। इस विषय पर गंभीरता नहीं दिखाने से लाखों प्रवासी राजस्थानी के श्रम और शक्ति को सम्मान नहीं मिल पा रहा है। प्रवासी राजस्थानी भाषा के राजदूत के साथ विदेशों में आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहे हैं। वे सफल उद्यमी के रूप में तो है ही परंतु अपनी मातृभाषा से भी उतना ही प्रेम करते हैं। प्रत्येक राजस्थानी अपनी मां भाषा का सम्मान चाहता है, वह देश की रक्षा पंक्ति में अग्रणी स्थान पर बना हुआ है। महावीर और परमवीर चक्र की सूची में उसका सर्वोच्च स्थान है। अपनी कला और संस्कृति के साथ वह राजस्थानी भाषा में शिक्षा का विकल्प तलाश रहा है। सरकारों को चाहिए अति शीघ्र राजस्थान के लोक कला, संगीत, सिनेमा के लिए विशेष प्रबंधन करते हुए प्रदेश के नौजवानों हेतु शिक्षा और रोजगार में विशेष आरक्षण की व्यवस्था देवे, राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में जोड़ें। राजस्थानी प्रदेश की राजभाषा बने, प्राथमिक शिक्षा में उसे लागू किया जाए और तृतीय भाषा के रूप में प्रदेश में अध्ययन अध्यापन कराया जाए जिससे भावी पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक गौरव का आभास होगा। संसद के मानसून सत्र 2022 में राजसमंद सांसद दीया कुमारी जी द्वारा लाया गया निजी विधेयक इसी बात को बल देता है कि अति शीघ्र जन भावनाओं का सम्मान करते हुए गणतंत्र में जनता की मांग को प्रखरता से स्थान दिया जावे यदि समय रहते इन सभी पहलुओं पर उचित कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी एवं राज्यसभा सभापति श्री जगदीप धनकड जी के योगदान पर भावी पीढ़ी प्रश्नचिह्न लगाएगी। देश के सर्वोच्च सदन में उनके जनप्रतिनिधि अपने लोगों की जन भावनाओं को सम्मान नहीं दे सके। विशेषकर सदन की कार्यवाही में भाग लेने वाले सांसद भी राजस्थानी में अपनी बात पटल पर नहीं रख पाएंगे इससे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। यह आम राजस्थानी की अस्मिता उसके श्रम कल्याण और सांस्कृतिक गौरव की बात है। राजस्थानी को रेडियो टीवी, विश्वविद्यालय आदि राजकीय संस्थाओं में गरिमा पूर्ण रूप से प्रयोग में लिया जा रहा है उच्च कक्षाओं में अध्ययन कराया जा रहा है। पद्मश्री कन्हैया लाल सेठिया, पद्मश्री सीताराम लालस, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष एवं लोकसभा सांसद पद्मश्री रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, के सृजन एवं लेखन को सम्मान नहीं मिलना एक प्रदेश के प्रदेशवासियों के मानवाधिकार का हनन है और भावी पीढ़ी की जड़े काटने का जतन है। अपेक्षा है सरकार इन सभी बिंदुओं पर गंभीरता पर रखते हुए अति शीघ्र राजस्थानी भाषा को उसका यथोचित सम्मान लौटाएगी।

राष्ट्रीय अध्यक्ष
राजस्थानी मोट्यार परिषद्
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