राजस्थानी भाषा के विद्वान, साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार जुगल परिहार का निधन

जुगल परिहार 1984 से राजस्थानी भाषा की एकमात्र पत्रिका ‘माणक’ के कार्यकारी संपादक थे। वह अंतिम समय तक ‘माणक’ का संपादन करते रहे बल्कि ‘दैनिक जलतेदीप’ के स्थायी स्तंभ ‘दसवां वेद’ का भी लेखन करते रहे

राजस्थानी भाषा के प्रकांड विद्वान साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार जुगल परिहार का निधन हो गया। परिहार राजस्थानी भाषा की एकमात्र पत्रिका ‘माणक’ के उप संपादक और दसवां वेद के स्तंभकार और दैनिक संपादकीय लेखक थे। 68 वर्षीय परिहार 21 अगस्त को कोरोना से संक्रमित पाए गए थे, इसके अलावा वह निमोनिया से भी ग्रस्त थे। उनके निधन की खबर सुनते ही पत्रकारिता और साहित्यिक जगत में शौक की लहर दौड़ गई। परिहार अपने परिवार में पत्नी और तीन पुत्रियां छोड़कर गए हैं। एमजीएच में ही परिजनों द्वारा उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी करने के बाद कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए सिवांची गेट स्थित स्वर्गाश्रम में उनका अंतिम संस्कार किया गया।

20 वर्षों से जुड़े रहे ‘माणक पत्रिका’ और दैनिक जलतेदीप से
परिहार ने राजस्थानी भाषा को लेकर भी खूब काम किया साथ ही उन्होंने लंबे समय तक ‘माणक’ पत्रिका में अपनी सेवाएं दी हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी ओर अपने सरल स्वभाव के कारण वह लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। परिहार 1984 से राजस्थानी भाषा की एकमात्र पत्रिका ‘माणक’ के कार्यकारी संपादक थे। वह अंतिम समय तक माणक का संपादन करते रहे बल्कि दैनिक जलतेदीप के स्थायी स्तंभ ‘दसवां वेद’ का भी लेखन करते रहे। करीब बीस वर्षों से दसवां वेद रचने वाले परिहार राजस्थानी भाषा के साथ जोधपुर के इतिहास के भी ज्ञाता थे।

‘माणक पत्रिका’ परिवार ने दी श्रद्धांजलि
जुगल परिहार का इस तरह चले जाना किसी अपूरणीय क्षति से कम नहीं है। माणक परिवार उनके योगदान के लिए हमेशा ऋणी रहेगा। माणक परिवार उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता है और ऐसे कर्मवीर को शत शत नमन करता है।

‘माणक’ अर ‘मायड़ भाषा’ सारू जुगल जी आपरी आखी जिंदगी खपाय दीवी। माणक परिवार ऋणी है उणां रै ताउम्र योगदान रौ । इण अपूरणीय क्षति सूं हिरदै में घणी पीड़ा है। भगवान वां री आत्मा नै शांति प्रदान करै। पदम मेहता