सफल बॉयोपिक बनाने के लिये उचित किरदार के चयन के साथ रिसर्च ज़रूरी: राजेश बादल

  • पारूल विश्वविद्यालय में मेकिंग बायोपिक फिल्म पर वेबीनार आयोजित
  • वेबीनार में लिया करीब 1300 प्रतिभागियों ने भाग

वड़ोदरा स्थित पारूल विश्वविद्यालय में संचालित फेकल्टी ऑफ आर्टस, पारूल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टस के तहत संचालित डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन की आरे से मेकिंग बॉयोपिक फिल्म एक दिवसीय ऑनलाईन वेबीनार का आयोजन किया गया। वेबीनार के मुख्य अतिथि देश के जाने माने पत्रकार, फिल्मकार एवं राज्यसभा टेलिविजन के पूर्व कार्यकारी निदेषक राजेष बादल ने प्रतिभागियों को सम्बोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बायोपिक बनाने के लिये पहले उचित किरदार की तलाश करे। उस किरदार पर जरूरी शोध करें। रिसर्च कार्य को क्रास चैक करें। इसके साथ ही नकारात्मक चरित्रों के नायकों पर बायोपिक नहीं बनाये। उन्होंने कहा कि विरपन्न एवं फुलन देवी पर बॉयोपिक तो बनी मगर चली नहीं। वहीं उन्होंन कहां कि वर्तमान में बॉयोपिक में कल्पनाशीलता एवं तकनीक का तड़का लग रहा है। लेकिन इसका प्रभाव तथ्यों पर कतई नहीं आता है।

वेबीनार में उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि जैसा बॉयोपिक का किरदार हो वैसा ही बॉयोपिक में अभिनेता या एक्टर का होना भी जरूरी हैं। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बायोपिक को इसी कान्टेक्स में समझाया जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के किरदार को मोदी बॉयोपिक में विवेक आबेरॉय ने किया था। उन्होंने बॉयोपिक बनाने में चुनौतियां एवं कालखंड को जीवित करने की बात कही। साथ ही बॉयोपिक बनाने में मूल्यों को जिवित करने पर भी बल दिया। उन्होंने मुंशी प्रेम चंद्र एवं रविंद्रनाथ टैगोर के जीवन के विभिन्न उदाहरण देते हुये समझाया।

इससे पहले वेबीनार में बादल ने बायोपिक निर्माण के बारे में जानकारी दी। इसके साथ ही मीडिया में कैरियर की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुये कहा कि भारत में अभी बायोपिक फिल्म उद्योग स्थापित हो रहा है। बायोपिक में रोजगार की अपार संभावनाएं है। उन्होंने कहा कि मीडिया एक जीवन शैली है। मीडिया से अच्छा एवं मीडिया मैं भी पत्रकारिता से अच्छा कोई कार्य नहीं है। यह एक आनंद देने वाला क्षेत्र है। आरंभ में राजेश बादल ने बायोपिक का अर्थ बताते हुये बायोपिक एवं डाक्यूमेंट्री में अंतर बताया। इसके साथ ही उन्होंने तकनीकी माध्यमों पर भी प्रकाष डाला। उन्होंने कहा कि यदि हम हमारे पूर्वजों एवं देश की महान विभुतियों को जानने का प्रयास करें तो इसमें भी बायोपिक एक ऐसी विधा है जिसके माध्यम से हम इन्हें जान सकते है एवं उनके संस्कारों को बायोपिक के माध्यम से लोगों तक पहुंचा सकते है। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार एवं बायोपिक फिल्म का एक अद्भुत नाता है।

संयुक्त परिवार में रहते हुये दादी नानी की कहानियों को सुनने से जो स्टोरी टेलिंग की स्किल पैदा होती है उससे नकारा नहीं जा सकता है एवं यही स्कील बायोपिक के रूप में हमारे काम में आती है। उन्होंने मुंशी प्रेमचंद को देश का प्रथम चित्र पट कथा लेखक बताया। साथ ही 113 साल पहले 1913 में राजा हरिशचंद्र नामक फिल्म जो कि दादा साहब फाल्के ने बनाई थी उसे प्रथम बॉयोपिक फिल्म बताया। इसके साथ ही उन्होंने डॉ. कोटनीज की अमर कहानी को भी पहली बायोपिक फिल्म की सज्ञा दी। फिल्म एंव बॉयोपिक की बात करते हुये उन्होंने कहा कि मिर्जा गालिब के पात्र से छेड़-छाड़ करने पर इसके प्रदर्षन पर रोक लगाकर पात्र से किसी भी प्रकार की छेड-छाड़ नहीं करते के आदेश उस समय दिये गये थे। इस दौर में मेजर ध्यानचंद एवं रविंद्रनाथ टैगोर की बॉयोपिक भी बहुत चर्चा में रही।

इस अवसर पर पारूल विश्वविद्यालय के डीन, फेकल्टी ऑफ आर्टस, प्रिंसिपल पारूल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टस एवं प्रोफेसर जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन, प्रो. डॉ. रमेश कुमार रावत ने वेबीनार के आरंभ में प्रख्यात पत्रकार राजेश बादल का स्वागत उद्बोधन के माध्यम से स्वागत कर विस्तृत परिचय दिया एवं ऑनलाईन वेबीनार के समापन पर उनका आभार जताया। इस ऑन लाईन वर्कषॉप में पारूल इस्टीट्यूट ऑफ आर्टस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र परमार, अचलेंद्र कटियार, गोपीशाह, जयभट्ट, भौतीक पटेल, इशानी इस्मिता पटेल, भूमिका दवे, पुनित पाठक, मिहिर कुमार सेठ, रेवती यादव सहित पारूल विष्वविद्यायल के विद्यार्थियों, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, अरूणाचल प्रदेष, उत्तर प्रदेष, मध्यप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर , तमीलनाडूं, केरल, मणिपुर, मिजोरम, गोहाटी, आसाम, सहित देश के विभिन्न राज्यों से करीब 1300 प्रतिभागियों, विद्यार्थियों, शिक्षकों, शोधार्थियों एवं पत्रकारों ने भाग लिया।