रिया की विदाई कंगना स्थापित

इसका मतलब या पर फिलहाल विराम और ना ना की राग शुरू। इसका टे्रलर आज दिख ही गया। टे्रलर क्या पूरी फिलिम दिख गई। यह फिलिम कब तक चलेगी और कितनी चलेगी उसकी झलक भी दिख गई। झलक कहती है कि लड़ाई लंबी चलनी है। एक तरफ ना और दूसरी तरफ भी ना अब देखना है कि इसका नतीजा क्या निकलेगा। फिलहाल खबरिया चैनल्स पर या की विदाई और ‘ना का राग शुरू। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


किसी ने सोचा भी नही था कि कहां से शुरू हुई लड़ाई कहां पहुंच जाएगी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि जंग का रूख एकदम पलट जाएगा। किसी ने सोचा भी नही था कि एक ना से बदला लेने के लिए दूसरी ना इस हद पर उतर जाएगी। हम तो समझे थे कि हलकी भाषा का इस्तेमाल चुनावों के दौरान ही होता है। समझ में इसलिए आया कि हमने आज तक ऐसा ही होते देखा। जब-जब चुनाव आते हैं, नेतों की जुबान हलका स्तर धारण कर लेती है। हम आगे-आगे वैसी जुबान सुन चुके हैं। ऐसा नही कि जुबान थम जाएगी वरन आने वाले चुनावों के दौरान बदजुबानी फिर ठाठे मारेगी। कई लोग चुनावों को गालियों का मौसम मानते हैं। चुनावों के दौरान क्या-क्या होता है, इस पर ज्यादा मगजमारी करने की जरूरत नहीं। सब जानते हैं कि चुनावों की धमक कैसी होती है। हांलांकि उस दौरान आचार संहिता लागू रहती हैं, मगर कई अवसर ऐसे आते हैं जब आचार संहिता का अचार-मुरब्बा सब बन जाता है।


चुनावों के दौरान चाटण-भाषण होते हैं। रैलियां-सभाएं होती है। बैठकें होती है। नारे लगते हैं। पोस्टर-बैनर्स लगते हैं। झंडे लहराते हैं। फरिए लटकती है। भाडे पर कार्यकर्ता जुटाए जाते हैं। पार्टियों के चुनावी कार्यालयों के आजू-बाजू लंगर चलते हैं। सुबह से लेकर शाम तक रौनक। आरोप तो यहां तक लगते हैं कि रात को ‘पार्टी-सार्टी भी होती है। ऐसे मंजर भी दरपेश आए जब कई बंदों को सुबह का खाना इस पार्टी के लंगर में खाते देखा जाता है। शाम को उस दल के लंगर में। सुबह की चाय इस टेंट में शाम की उसमें। अमल इन का-दारू उनकी। चुनावों के दौरान कई लोगों को रोजगार मिलता है। टेंट से लेकर फोटो कॉपी वाले।

फोटोग्राफर से लेकर वीडियोग्राफर। चाय-गुटखे वाले। फरियों-झंडियों-झंडे वाले। चुनाव सामग्री बेचने वाले। सिलाई करने वाले। फ्लैक्स-बैनर्स वाले। यहां तक कि ठाले बैठे छोरों-छपाटों को चुनावों के दौरान रोजगार मिलता है। कई लोग रोज हिसाब करते हैं। कई को हफ्तावारी भुगतान किया जाता है। इन सब के इतर नेतों की बदजुबानी भी जोरों पर। हमने चुनावों के दौरान ऐसे-ऐसे गंदे बोल सुन रखे हैं जो आज भी कानों में गरम सीसा उड़ेलते हैं। चुनावों के दौरान शाब्दिक गंदगी पसरती जाती है। धीरे-धीरे सब सामान्य। चुनाव खल्लास-बदजुबानी बंद मगर इस बार ना कहीं चुनाव ना कहीं चुनावी हवा। बिहार में चुनावों की घोषणा होणी है मगर मुंबई में ना चुनाव-ना किसी चुनाव की हलचल। मुंबई में ना उपचुनाव-ना कॉरपॉरेशन के चुनाव। इस के बावजूद बद्जुबानी चरम पर। उस बद्जुबानी ने ना को ना के सामने खड़ा कर दिया। ना के बदलापुर ने या की विदाई कर ना को स्थापित कर दिया। हथाईबाजों की सोच है कि अब एक ना के सामने दूसरा ना ताल ठोकेगा और यह ताल एक नया इतिहास लिखेगी।


हमें लगता हैं कि या और ना-ना के बारे में पढ-सुन कर समझने वाले समझ गए होंगे कि हथाईबाज क्या कहना चाहते हैं। नही समझें तो हम समझा देते हैं। या की बात करें तो खबरिया चैनल्स से रिया की विदाई। सुशांत कांड को लेकर फिल्म अभिनेत्री रिया का रट्टा हर चैनल मार रहा है। हम बोर हो गए। हमारे कान पक गए। खबरिया चैनल्स ने उसका ऐसा महिमामंडन किया मानो वो देश की कोई बहुत बड़ी हस्ती हो, अब रिया की जगह कंगना ने ले ली। एक तरफ फिल्म अभिनेत्री कंगना और दूसरी तरफ शिवसेना। इधर भी ना उधर भी ना।

इस जंग की घटिया शुरूआत ना नेता संजय राउत ने की। उन्होंने ना के लिए ऐसे घटिया शब्दों का इस्तेमाल किया जिनका उपयोग कच्ची बस्ती मे रहने वाला कोई नशेड़ी करता है, तिस पर राउत तो राज्यसभा सांसद हैं। उनकी जुबान इतनी गंदी हो गई कि सुन कर शरम आई। देशवासी उनका घमंड देख चुके हैं। ना की मुंबई में गुंडागर्दी देख चुके हैं। उनका बड़बोलापन देख चुके हैं। महाराष्ट्र में सरकार क्या बना ली, बहन-बेटियों के खिलाफ इस हद पे उतर आए। उसके बाद क्या हुआ। बुधवार को खबरिया चैनल्स पर आखे देश ने देखा। कंगना के मुंबई स्थित ऑफिस में बीएमसी ने जिस प्रकार तोडफ़ोड़ की वह बदले की कार्रवाई है।


हथाईबाजों ने देखा कि अभिनेत्री ना के साथ लगभग पूरा देश खड़ा है। सियासी ना के प्रति खुद मुंबई वाले में गुस्सा उबल रहा है। अभिनेत्री ना की हूंकार के सामने सियासी ना भीगी बिल्ली बनी नजर आ रही है। आने वाले दिनों में कंगना शिवसेना को चुनौती देगी। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि बीएमसी का हथोड़ा-बुलडोजर कंगना के दफ्तर पर नहीं वरन शिवसेना पर चला है। कंगना के तेवर भी यही दिखा रहे हैं कि वह ना पर भारी पड़ जाएगी। उधर चैनल्स पर रिया की विदाई और कंगना स्थापित। उसके बाद कोई और राग..।